Air Pollution: अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशा-निर्देशों को पूरा किया जाता है, तो वायु प्रदूषण औसत भारतीय के जीवन (Life Expectancy) को पांच साल तक कम कर देता है. ये बात शिकागो (Chicago) यूनिवर्सिटी के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) के विकसित किए गए वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI ) में सामने आई है.


शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर प्रदूषण का मौजूदा स्तर ऐसे ही बना रहता है तो उत्तर भारत के भारत-गंगा (Indo-Gangetic) के मैदानी इलाकों के 510 मिलियन निवासी, जो भारत की आबादी के लगभग 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं, ये आबादी वायु प्रदषण की वजह से औसतन अपने जीवन प्रत्याशा के 7.6 साल खोने की राह पर हैं, यानि वह अपने जिंदगी में लगभग साढ़े सात साल कम जी पाएंगे. 


वायु प्रदूषण पर क्या है WHO की गाईडलाइन्स


पिछले साल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने (WHO) ने कण प्रदूषण मानदंडों (Particulate Pollution Norms) के मानव के संपर्क में आने के सुरक्षित स्तर को लेकर अपनी गाईडलाइन में संशोधन किया था. इसमें PM 2.5 को 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर किया गया. जिससे वायु प्रदूषण के मामले में वैश्विक आबादी का 97.3 प्रतिशत असुरक्षित क्षेत्र के दायरे में में आ गया.


प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभावित है दक्षिण एशिया


EPIC की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र की तुलना में प्रदूषण का घातक असर सबसे अधिक दक्षिण एशिया देता है, जहां प्रदूषण का आधा से अधिक जीवन बोझ होता है. यहां जीवन का आधे से अधिक हिस्सा प्रदूषण के बोझ तले हैं. वर्तमान में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषित देश है. वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI ) पर आई रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013 के बाद से दुनिया के प्रदूषण में करीब 44 फीसदी बढ़ोतरी भारत की वजहसे हुई है. 1998 के बाद से, भारत के औसत वार्षिक कण प्रदूषण (Annual Particulate Pollution) में 61.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो मौजूदा समय में दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है.


COVID-19 के बाद भी नहीं घटा प्रदूषण का प्रभाव


AQLI के अनुसार, COVID-19 महामारी के पहले साल के दौरान, दुनिया की अर्थव्यवस्था धीमी हो गई, लेकिन इसके बाद भी वैश्विक सालाना औसत कण प्रदूषण (Particulate Pollution) PM2.5  साल 2019 के स्तर से काफी हद तक बदला नहीं, यानि प्रदूषण के स्तर में कोई खास कमी दर्ज नहीं की गई. इस दौरान वायु प्रदूषण के बेहद कम स्तर पर होने के सबूतों के बाद भी इससे मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है.


आंतकवाद और नशे से भी खतरनाक प्रदूषण


प्रदूषण धूम्रपान, शराब और गंदा पानी पीने की तुलना में जीवन प्रत्याशा ( Life Expectancy ) को तीन गुना अधिक नुकसान करता है. इससे इंसान की जिंदगी तीन गुना कम हो जाती है. इसके अलावा एचआईवी, एड्स की तुलना में ये छह गुना और संघर्ष और आतंकवाद की तुलना में 89 गुना अधिक हानि मानव जीवन को पहुंचाता है. 


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