नई दिल्लीः काबुल एयरपोर्ट पर नाज़ुक हालात के मद्देनजर अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को निकालने का काम मुश्किल में पड़ रहा है. फ्लाइट शेड्यूलिंग की समस्या के कारण अफ़ग़ानिस्तान भेजा गया भारतीय वायुसेना का विमान गुरुवार रात उड़ान नहीं भर सका है.
विमान फिलहाल ताजिकिस्तान के दुशांबे में है और काबुल के लिए उड़ान का सिग्नल मिलने का इंतजार कर रहा है. वहीं करीब 200 से अधिक भारतीय और कुछ अफगान नागरिक भारत आने की बेसब्री से बाट जोह रहे हैं. इस बीच भारतीयों की निकासी के लिए मिशन काबुल की रफ्तार बढाने को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के विदेशनमंत्री टोनी ब्लिंकन से बात की है. ऐसे में उम्मीद है कि शुक्रवार देर शाम तक यह विमान उड़ान पर सके. ऐसे में C17 विमान के शनिवार सुबह हिंडन एयरफोर्स स्टेशन पहुंचने की उम्मीद है.
इस बीच करीब 200 से अधिक भारतीय दो-तीन समूहों में काबुल एयरपोर्ट से करीब के अलग अलग स्थानों पर हैं. क्योंकि इतने लोगों के साथ अफरा-तफरी भरे काबुल एयरपोर्ट पर न तो इंतज़ार करना न मुनासिब है और न मुमकिन. महिलाओं और छोटे बच्चों के साथ यह समूह बस इंतज़ार कर रहा हैं. भारतीय नागरिकों के साथ साथ कुछ अफ़ग़ान नागरिक भी हैं जो भारत आना चाहते हैं.
एबीपी न्यूज़ से बातचीत में भारतीय सेना के पूर्व सैनिक अनुराग गुरुंग ने बताया कि सभी लोग जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं. काबुल एयरपोर्ट पहुंचने के बाद जब यह पता चला कि विमान गुरुवार को उड़ान नहीं भर पाएगा तो सभी लोग मायूस भी हुए और परेशान भी. तब हमने नज़दीक के इलाके में एक सुरक्षित स्थान पर जाने का फैसला किया. काबुल के असुरक्षित माहौल में महिलाओं और छोटे बच्चों के साथ सीमित जगह में ठहरना काफी कठिनाई भरा है. सभी लोग बस भरोसे के साथ इंतज़ार कर रहे हैं कि जल्द से जल्द वायुसेना विमान के लिए उड़ान का समय तय हो और अपने देश लौट सकें.
दरअसल, 200 से अधिक लोगों को पहले विभिन्न इलाकों से एयरपोर्ट तक पहुंचाना, उन्हें एयरपोर्ट के सैन्य इलाके में दाखिल कराना और फिर विमान में बैठाना एक मुश्किल प्रक्रिया है. खासतौर पर तब जबकि एयरपोर्ट पर अव्यवस्था ही अव्यवस्था फैली हो. चुनौती तब और भी बढ़ जाती है जब ग्राउंड ज़ीरो पर कोई भी भारतीय अधिकारी मौजूद नहीं है और इस मिशन को संभाल रहे अधिकारियों को काबुल में मौजूद स्थानीय अफ़ग़ान स्टाफ के साथ दिल्ली तथा दुशांबे से तालमेल बैठाकर काम करना पड़ रहा हो.
सूत्रों के मुताबिक समस्या एयरपोर्ट पर सैन्य विमानों की उड़ान में तालमेल को लेकर आ रही है. काबुल के अपेक्षाकृत छोटे सैन्य रनवे क्षेत्र में किसी भी विमान को उतरने, यात्रियों को बैठाने व उड़ान भरने के लिए बेहद कम समय दिया जा रहा है. चूंकि फिलहाल सैन्य उड़ानें ही हो रही हैं इसलिए सभी देशों के सैन्य विमानों का दबाव है. ज़ाहिर तौर पर भारत को विमान के एयरपोर्ट पहुँचने और बड़ी संख्या वाले यात्री दल को बैठाने के लिए कम से कम दो घण्टे का समय चाहिए.
इस बीच अमेरिका के साथ साथ अब काबुल एयरपोर्ट के प्रबंधन में तुर्की की बढ़ती भूमिका भी मुश्किल बढ़ा रही है. क्योंकि इससे पहले सिंगल पॉइंट के तौर पर भारत को अमेरिका से ही डील करना था. हालाँकि अभी भी काबुल एयरपोर्ट का अधिकतर प्रबंधन अमेरिकी सैनिकों और सुरक्षा दल के ही नियंत्रण में है. यही वजह है कि अमेरिका के साथ उच्च स्तरीय सम्पर्क करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी समकक्ष टोनी ब्लिंकन से बात की है. यह एक हफ्ते में दूसरा मौका है जब दोनों विदेश मंत्रियो के बीच बात हुई है. इससे पहले 17 अगस्त को विदेश मंत्री जयशंकर की टोनी ब्लिंकन से और एनएसए अजीत डोवाल की अमेरिकी समकक्ष जैक सुलिवन से बात हुई थी.
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