Supreme Court: 'कुछ लोगों के कलेजे पर चुभ रहा AMU...', सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोला ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया है. AIPLB के जनरल सेक्रेटरी मौलाना यासूब अब्बास शिया ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है.
Supreme Court on AMU: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (8 नवंबर ) को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाया है. इस फैसले से यह साफ हो गया है कि AMU एक अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी रहेगी. इस बीच, ऑल इंडिया शिया पर्सनल बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना यासूब अब्बास का बयान आया है. उन्होंने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस कुछ लोगों के कलेजे के ऊपर नासूर की तरह चुभ रहा है.
यासूब अब्बास ने कहा, "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का जो आज सुप्रीम कोर्ट से डिसीजन आया है फैसला आया है मैं इस फैसले का वेलकम करता हूं,स्वागत करता हूं,इस्तकबाल करता हूं और बहुत अच्छा फैसला है और माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर जो आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है और 3 जजों की जो बेंच है उम्मीद है कि वो भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को जारी रखने के लिए अनुकूल फैसला देगी, जो आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है, क्योंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर अक्सर बयान बाजियां होती रहती हैं."
'कुछ लोगों के कलेज के ऊपर चुभ रहा एएमयू का माइनॉरिटी स्टेटस'
उन्होंने आगे कहा कि हमारे कांस्टीट्यूशन ने हमको भी कुछ राइट दिए हैं और उस राइट्स को उम्मीद है कि एएमयू इंशाअल्लाह उसके तियारा को पूरा करेगा. इसलिए कि एएमयू के माइनॉरिटी स्टेटस कुछ लोगों के कलेज के ऊपर नासूर की तरह चुभ रहा है. वह नहीं चाहते कि एएमयू का माइनॉरिटी स्टेटस पूरी तरीके से बहाल हो. एएमयू ने इस मुल्क में और पूरी दुनिया में खुशबू लुटाई है और उम्मीद है कि इस माइनॉरिटी स्टेटस के बाद में हमें वहां से अच्छे-अच्छे स्टूडेंट्स मिलेंगे और पूरी दुनिया में एएमयू इसी तरीके से तालीम के मैदान में और दूसरे मैदानों में खुशबू लुटाता रहेगा.
AMU अल्पसंख्यक संस्थान - CJI
CJI ने फैसला पढ़ते हुे कहा, "AMU अल्पसंख्यक संस्थान है. हमें तय करना है कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा कैसे दिया जा सकता है. भाषाई, सांस्कृतिक या धार्मिक अल्पसंख्यक अनुच्छेद 30 के तहत अपने लिए संस्थान बना सकते हैं, लेकिन यह सरकारी नियमन से पूरी तरह अलग नहीं होते".
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