चाचा के नक्शे कदम पर भतीजा: कभी शरद पवार ने सीएम के लिए चली थी ऐसी चाल, अब अजित पवार ने दोहराया
महाराष्ट्र की राजनीति में अनेक परिवार अपना सियासी दमखम रखते हैं. चुनाव नतीजों के बाद सूबे की राजनीति दो परिवारों के इर्दगिर्द घूम रही थी, एक परिवार सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने की कवायद में था और दूसरा परिवार उसके सारथी बनने वाले थे, लेकिन खेल ऐसा हुआ कि सत्ता की बाजी एक रात में ही पलट दी गई.
मुंबई: राजनीति की ये रीत पुरानी है कि यहां कोई किसी का सच्चा दोस्त नहीं होता और ना कोई किसी का स्थाई दुश्मन. मौके और वक्त के हिसाब से दस्तूर बदलते रहते हैं. दस्तूर यही है कि सत्ता का सिहांसन उसे ही मिलता है जो जोड़-तोड़ में माहिर और परिवार और परंपरा के बंधन से मुक्त हो.
महाराष्ट्र की राजनीति में अनेक परिवार अपना सियासी दमखम रखते हैं. चुनाव नतीजों के बाद सूबे की राजनीति दो परिवारों के इर्दगिर्द घूम रही थी, एक परिवार सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने की कवायद में था और दूसरा परिवार उसके सारथी बनने वाले थे, लेकिन खेल ऐसा हुआ कि सत्ता की बाजी एक रात में ही पलट दी गई.
शनिवार की सुबह-सुबह जो राजनीतिक समीकरण बने, उसके बाद शरद पवार की बेटी सुप्रीया सुले का दर्द बाहर निकल पड़ा. उन्होंने कहा कि अब किस पर यकीन किया जाए. परिवार और पार्टी दोनों टूट चुकी है. उनकी इस लाचारी में निशाने पर चचेरे भाई अजित पवार हैं. जिन्होंने चाचा शरद पवार से बागवत करके ना सिर्फ बीजेपी की सरकार बनवा दी है, बल्कि खुद भी डिप्टी सीएम बन गए हैं.
राजनीति की इस उठापठक और नाटकीयता को देखकर अनेक लोग अचंभित हैं. साथ ही सभी लोग हैरान हैं. कहा जा रहा है कि भतीजे अजित पवार ने जिस चाल से अपने चाचा को मात दी है, कभी चाचा भी राजनीति के इस चाल का इस्तेमाल कर चुके हैं और अपने राजनीतिक दुश्मनों को पटखनी दे चुके हैं.
जब लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था. महाराष्ट्र में भी कांग्रेस को करारी हार मिली. हालात ये बने कि तत्कालीन सीएम शंकर राव चव्हाण को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. नए सीएम के तौर पर वसंतदादा पाटिल को शपथ दिलाई गई, लेकिन ये बदलाव शरद पवार को खल गया. कांग्रेस दो हिससों में बंट गई. 1978 में जब विधानसभा चुनाव हुए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में एक बार फिर दोनों कांग्रेस साथ आई. वसंतदादा पाटिल सीएम बने. शरद पवार भी मंत्री बने.
लेकिन सत्ता की भूख ऐसी रही कि शरद पवार ने चार महीने में ही वसंतदादा पाटिल की सरकार गिरा दी. दरअसल, 5 मार्च 1978 को वसंतदादा पाटिल की सरकार बनी और 18 जुलाई 1978 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा. शरद पवार ने जनता दल से मिलकर सरकार बना डाली. महज 38 साल की उम्र में सीएम पद पक काबिज हो गए. आज जब भतीजे ने सत्ता के लिए एनसीपी में सेंध लगा दी है तो कहा जा रहा है कि भतीजा भी चाचा की राह पर है. भतीजे ने वही दोहराया है जो कभी चाचा अपने दम पर कर चुके हैं.