अजमेर शरीफ सरवर चिश्ती खादिम ने आपत्ति जताई है कि राजस्थान कोर्ट ने दरगाह कमेटी को पार्टी बना दिया जबकि सारे रीतिरिवाज खादिम करते हैं. उन्होंने कहा कि खादिमों की विरासत आठ सौ साल पुरानी है और 1945 के ऑर्डर में भी यह लिखा है कि दरगाह के सारे अधिकार खादिम की है तो फिर कमेटी को नोटिस क्यों भेजा गया. सरवर चिश्ती ने कहा है कि दरगाह कमेटी का काम तो सिर्फ प्रबंधन और सुपरविजन है. राजस्थान कोर्ट ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, माइनॉरिटी मिनिस्ट्री और दरगाह कमेटी को पार्टी बनाया है. सरवर चिश्ती खादिम ने हिंदू सेना के दावे पर कहा कि आज तक किसी ने ऐसा दावा नहीं किया, जबकि यहां हिंदू रियासतें थीं, हिंदू राजाओं ने कई चीजें बनवाईं. उन्होंने यह भी कहा कि ये दरगाह मुगल काल में नहीं बनी है, ये आठ सौ साल पुरानी है और ये ताज महल, कुतुब मीनार या लाल किला नहीं है.
सरवर चिश्ती खादिम ने कहा, 'यहां पर जो 8 हिंदू मुतवल्ली थे, उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा. आज जैसे नाजिम होता है दरगाह का. वैसे ही पहले मुतवल्ली होते थे. किसी ने दावा नहीं कि ये हिंदुओं का है. कई हिंदू राजाओं ने चीजें बनवाईं. यहां रजवाड़ा था. हिंदू जाट रियासतें थीं. राजस्थान में सिर्फ एक रियासत थी टोंक जो मुस्लिम नवाब था.' उन्होंने बताया कि ये दरगाह मुगल एरा में नहीं बनी. मुगल तो 1536 के करीब आए. ये तो 800 साल पुरानी है. 1236 के करीब जब ख्वाजा साहब मुइनुद्दीन चिश्ती रहमनतुल्लाह की रूह परवाज की और ऊपर वाले से जा मिली तो तभी से ये मजार है. कभी किसी ने ये दावा नहीं किया.
सरवर खादिम चिश्ती का कहना है कि दरगाह कमेटी तो आज की देन है. हमारी खादिम की तो 800 सालों की लेगेसी है. उन्होंने कहा, 'दरगाह की सारी चाबियां हमारे पास हैं और उसको हम ही खोलते हैं. जायरीनों को हम ही दर्शन करवाते हैं. 365 दिनों में 24x7 रीतिरिवाज हम ही करते हैं, लेकिन अफसोस की बात ये कि कोर्ट ने दरगाह कमेटी को पार्टी बना दिया, जबकि 1945 का जो ऑर्डर है, उसमें साफ तौर पर दरगाह कमेटी और हमारे बारे में साफ तौर पर लिखा है कि दरगाह के लिए खादिम के पास वंशानुगत राइट हैं, जबकि दरगाह के मैनेजमेंट और सुपरविजन की जिम्मेदारी सिर्फ दरगाह कमेटी के पास है. बाकी सारे रिलीजियस राइट्स खादिमों के हैं. ये कोई ताज महल, कुतुब मीनार या लाल किला थोड़ी है कि आपने गवर्मेंट की तीनों बॉडीज को नोटिस भेजा, नोटिस तो हमें भेजना चाहिए था.'
सरवर चिश्ती ने आगे कहा कि दूसरी बात ये कि जिन हरबला शारदा जी की बात की जा रही है, वह न तो इतिहासकार हैं और न ही एकेडमिशियन थे. वह एक म्युनुसपिलिटी के चेयरमैन थे और एडिशनल जज थे. उन्होंने 1915 के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि हरबला शारद ने भी खादिमों के बारे में बड़ा जबरदस्त फैसला लिखा है. उन्होंने बताया, '1915 के सिविल सूट नंबर 251 में उन्होंने जजमेंट लिखा है कि खादिम दरगाह के वंशानुगत खादिम हैं. वह सभी रीतिरिवाजों को करेंगे जैसे मंदिरों में पंडित करते हैं. खादिमों का दरगाह से कनेक्शन सिर्फ सदियों पुराना नहीं बल्कि करीबी भी है. जो जायरीन आते हैं खादिम उनको इंट्रोड्यूस करते हैं. इस फैसले में उन्होंने कहीं जिक्र नहीं किया कि यहां मंदिर था.'
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