इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये से नाराज अखाड़ों के साधुओं ने आज फैसला किया कि वे अगले साल लगने वाले कुंभ मेले में शाही स्नान नहीं करेंगे. इससे देश-विदेश से शाही स्नान देखने के लिए कुंभ मेला आने वाले लोगों को मायूसी हो सकती है. इलाहाबाद के श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन (निर्वाण) में हुई अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, "हमने उज्जैन और नासिक की तरह प्रयाग में भी अखाड़ों के स्थाई निर्माण की मांग की थी जो अभी तक पूरी नहीं हुई."
महंत गिरि ने कहा, "अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने अब यह निर्णय किया है कि हम सरकार से कोई सुविधा नहीं लेंगे और अब हम लोग आगामी कुंभ में शाही स्नान नहीं करेंगे. मेला आने में केवल आठ नौ महीने रह गए हैं. इस अवधि में स्थायी निर्माण कैसे होंगे." उन्होंने कहा, "हमें सरकार की ओर से कई बार आश्वासन मिला... माननीय मुख्यमंत्रीजी ने वचन दिया था.. लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. एक ओर, उज्जैन मेले में प्रभारी मंत्री हर अखाड़े में लगभग हर सप्ताह जाया करते थे. वहीं दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के प्रभारी मंत्री एक भी अखाड़े में नहीं गए."
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने कहा, "इसके अलावा मुख्यमंत्री ने एक मेला कमिटी बनाई जिसका प्रमुख मंडलायुक्त को नियुक्त किया गया. हम सभी साधू महात्मा क्या उनके अधीन काम करेंगे? इसलिए हमने एक निगरानी कमिटी बनाने की मांग की थी, जिससे कुंभ मेला कार्यों में कोताही की स्थिति में अधिकारियों पर नकेल कसी जा सके. मुख्यमंत्री ने एक सभा में निगरानी कमिटी बनाने की बात कही थी, लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ."
अखाड़ा परिषद की बैठक में सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हुए. श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन (निर्वाण) के श्री महंत महेश्वरदास ने कहा, "कुंभ मेले में अधिकारी अपने बंगले कैसे बनाते हैं? क्या उसका दो प्रतिशत भी वे साधु संतों के लिए खर्च करते हैं. कुंभ मेले का महत्व अखाड़ों से है क्योंकि जो संत कहीं नहीं जाते वे कुंभ मेले में आते हैं." उन्होंने कहा, "अखाड़े एक व्यवस्थापक की भूमिका में रहते हैं. महाराष्ट्र में पिछले पांच कुंभ मेलों में एक नीति के तहत कार्य किए गए. भले ही इस दौरान किसी की भी सरकार रही हो, उस नीति पर चलते हुए पूरा नासिक त्रयंबकेश्वर पक्का कर दिया. अखाड़ों के भीतर आंगन तक पक्के कर दिए गए."
महंत महेश्वरदास ने कहा, "यहां पिछली तीन सरकारों को यह प्रस्ताव (अखाड़ों के स्थायी निर्माण) दिया गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अखाड़ों में तीन महीने पहले से संत आने लगते हैं. यहां आकर वे अपने शिविरों की व्यवस्था करते हैं."