नई दिल्ली: यूपी और बिहार के उपचुनाव को हस्तिनापुर के सियासी संग्राम का सेमिफाइनल समझा रहा था. उस चुनावी समर में बीजेपी को करारी मात मिली है. जिस उत्तर भारत ने कमल को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया, 2019 से ऐन वक्त पहले वह फूल अब मुरझा रहा है. पहले राजस्थान फिर मध्य प्रदेश अब यूपी की हार से बीजेपी के आलाकमान के माथे शिकन पर लकीरें उभार दी होंगी. यूपी की हार महज दो सीटों का नुकसान नहीं है. यूपी में विपक्ष की सियासी गोलबंदी ने गोरखपुर जैसी 29 साल से अभेद किले को भी ध्वस्त कर दिया है. यहीं से विपक्षी एकता को 2019 के लिए संजीवनी मिली है. उधर अखिलेश और मायावती की मुलाकात हो रही थी और इधर सियासी चिंतक 2019 में इसके असर को दर्ज कर रहे थे. खैर.. अंकगणित के जरिए अब समझिए.. कि यह मुलाकात अगर पहले हुई होती तो परिणाम क्या हुआ होता?


सीएसडीएस ने आंकड़ों के जरिए विश्लेषण किया है.
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
(कुल- 80 सीट)
बीजेपी+ 73
एसपी 5
बीएसपी 0
कांग्रेस 2


सीएसडीएस के मुताबिक अगर अगर 2014 में एसपी+बीएसपी साथ होते
(कुल- 80 सीट)
बीजेपी+ 37
एसपी+बीएसपी 41
कांग्रेस 2


सीएसडीएस के मुताबिक अगर अगर 2014 में एसपी+बीएसपी+कांग्रेस साथ होते
(कुल- 80 सीट)
बीजेपी+ 24
एसपी+बीएसपी+कांग्रेस 56


आपको बता दें कि 2017 में बीजेपी गठबंधन को 325 सीटें, सपा गठबंधन को 54, बीएसपी को 19, अन्य के हिस्से 5 सीटें आई थी. अब सीएसडीएस के मुताबिक अगर 2017 के विधानसभा नतीजों को लोकसभा सीटों में बदलें तो
(कुल लोकसभा सीट- 80)
बीजेपी+ 74
एसपी 4
बीएसपी 1
कांग्रेस 1


सीएसडीएस के मुताबिक अगर 2017 में एसपी+बीएसपी साथ होते और उस परिणाम को लोकसभा सीटों में बदलें तो
(कुल लोकसभा सीट- 80)
बीजेपी+ 34
एसपी+बीएसपी 45
कांग्रेस 1


सीएसडीएस के मुताबिक अगर 2017 में एसपी+बीएसपी+कांग्रेस साथ होते और उस परिणाम को लोकसभा सीटों में बदलें तो
(कुल लोकसभा सीट- 80)
बीजेपी+ 19
एसपी+बीएसपी+कांग्रेस 61