Akhoondji Masjid Latest News: दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने 30 जनवरी को दिल्ली के महरौली इलाके में 600 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था. पूरे मामले को लेकर वक्फ बोर्ड प्रबंध समिति दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा. अब हाईकोर्ट ने डीडीए को इस मामले में नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि मस्जिद को किस आधार पर गिराया गया है. हालांकि, डीडीए का कहना है कि यह अतिक्रमण था जिसका निर्माण आरक्षित वन क्षेत्र में था इसलिए इसे गिराया गया.


इतिहासकारों का कहना है कि डीडीए का तर्क गलत है. जिस संजय वन इलाके में यह मस्जिद थी उसे 1994 में ही आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था. ऐसे में इस पुरानी मस्जिद को अतिक्रमण कैसे माना जा सकता है. इन सबके बीच बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इस मस्जिद का निर्माण कब हुआ था.


कब बनी मस्जिद यह पता नहीं


अखूंदजी मस्जिद का निर्माण कब हुआ था? इसे लेकर कोई निश्चित तारीख का पता नहीं है लेकिन यह कितनी पुरानी है उसका अंदाजा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक प्रकाशन से लगता है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी की ओर से 1922 के प्रकाशन में दर्ज किया गया था कि इस मस्जिद की मरम्मत 1270 एएच (1853-4 ईस्वी) में की गई थी और यह एक पुरानी ईदगाह के पश्चिम में थी जो 1398 ईसवी में जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था तब अस्तित्व में थी.


कई किताबों से मिलता है जिक्र


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट मौलवी जफर हसन की ओर से लिखित 'मुहम्मडन और हिंदू स्मारकों की सूची, खंड III के अनुसार, "अखूंदजी मस्जिद" ईदगाह के पश्चिम में लगभग 100 गज की दूरी पर थी. उसमें उल्लेख है कि केंद्रीय मेहराब के ऊपर लगे लाल बलुआ पत्थर के स्लैब पर लिखा था, “वह ऊंचा और सबसे शक्तिशाली है. ऐ जफर! बात इस मस्जिद की करें तो यह एक धनुषाकार छत से ढकी हुई है और भूरे स्थानीय पत्थर के दोहरे स्तंभों पर सपोर्ट लिए है." लेखक सोहेल हाशमी ने लिखा, "यह एक कामकाजी मस्जिद थी और 1994 में संजय वन वन भूमि के अस्तित्व में आने से पहले से मौजूद थी. इसलिए इसे अतिक्रमण कहना गलत है."


1853 में मरम्मत का किया जा रहा दावा


महरौली के इतिहास पर विस्तार से लिखने वाले इतिहासकार राणा सफवी ने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में अखूंदजी मस्जिद के गिराए जाने पर कहा, “इमारत की तारीख अज्ञात है लेकिन इसकी मरम्मत 1853 में की गई थी. ऐसा लगता है कि मरम्मत के लिए कालक्रम सम्राट शाह जफर की ओर से लिखा गया था क्योंकि 1270 ए.एच./1853-54 में वह जफर के तखल्लुस का उपयोग करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे.


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