नई दिल्ली: भारत को परेशान करने के लिए चीन, मालदीव ही नहीं वेनेजुएला में भी अपने पैर पसार रहा है. वेनेजुएला, भारत से 15 हजार किलो मीटर दूर है, लेकिन वहां चीन की हरकत भारत के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. दरअसल साल 2014 में तेल के दाम गिरने से वहां की सरकार सब्सिडी का बोझ संभाल नहीं पाई और ये वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई. चीन इस कर्ज को कम करने में वेनेजुएला की मदद कर रहा है. इसी हालात का चीन ने फायदा उठाया और निवेश करके वेनेजुएला को अपनी कॉलोनी में तब्दील कर दिया.
चीन ने अपने पैसे के दम पर वेनेजुएला को करीब-करीब खरीद लिया है, जो भारत के लिए बड़ी चिंता की बात है. क्योंकि सऊदी अरब, इराक, और ईरान के बाद वेनेजुएला भारत का चौथा सबसे बड़ा कच्चे तेल का निर्यातक देश है. वेनेजुअला पर 10.30 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. इस तरह वहां का हर नागरिक 3.20 लाख रुपये कर्ज में डूबा है.
बता दें कि ओएनजीसी वेनेजुएला में तेल की खोज भी कर रही है. जिसमें उसकी 40 फीसदी हिस्सेदारी है. इसी तरह इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और ऑयल इंडिया भी एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. यही नहीं कई निजी भारतीय कंपनियां वेनेजुएला के कच्चे तेल को रिफाइन करने का काम भी करती है. इस तरह वेनेजुएला हमें तेल और कारोबार दोनों देता है. लेकिन अगर ऐसे ही हालात रहे तो चीन की वजह से सबकुछ छिन सकता है.
चीन ने वेनेजुएला को साल 2007 से 2016 के बीच 3.86 लाख करोड़ रुपये का लोन दिया. जिसे वेनेजुएला को तेल देकर चुकाना है. लेकिन इस समझौते ने वेनेजुएला को चीन के कर्ज तले दबा दिया. क्योंकि 2016 में जब कच्चे तेल के दाम 30 डॉलर प्रति बैरल हो गए तब समझौते के मुताबिक वेनेजुएला को दोगुना तेल चीन को सप्लाई करना पड़ा.
वेनेजुएला की हालत ये है कि वहां लोग अपना ही देश क्यों छोड़ने को मजबूर हैं. इसकी वजह राष्ट्रपति निकोलस मादुरो हैं. जनता निकोलस मादुरो को इस परिस्थिति के लिए दोषी मानती है और उससे छुटकारा चाहती है. लेकिन मुश्किल ये है कि निकोलस मादुरो के कंधे पर चीन का हाथ है. जो उसे सत्ता में बनाए रखने के लिए पैसा और हथियार देता है. यही वजह है कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति जनता को छोड़ चीन की सेवा में लग गए हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वेनेजुएला पहुंचने पर जिनपिंग को रिसीव करने के लिए निकोलस मादुरो खुद एयरपोर्ट पहुंचे.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि अगले साल वेनेजुएला में महंगाई दर 13 हजार फीसदी बढ़ेगी. फिलहाल वहां एक अंडे की कीमत 47 रुपये, एक लीटर दूध की कीमत 232 रुपये, एक किलो आलू के दाम 392 रुपये है और ब्रांडेड स्पोर्ट्स जूतों की कीमत 20645 रुपये है.
वहीं मालदीव में राष्ट्रपति को हटाने के लिए जनता सड़कों पर है. खास बात ये है कि मालदीव के अलोकप्रिय राष्ट्रपति के सिर पर भी चीन का हाथ है. जिसने भारत फर्स्ट की नीति को चीन फर्स्ट में बदल दिया. मालदीव जो हिंद महासागर में भारत के लिए सामरिक तौर पर काफी अहम है. यहां पर चीन की नजर है. जहां वो सैन्य अड्डा बनाना चाहता है. चीन के इन इरादों ने भारत को परेशान कर दिया है.
वेनेजुएला की तरह मालदीव को काबू में करने के लिए चीन ने पैसे का ही सहारा लिया है. उसके इस काम में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने बड़ा रोल निभाया है. जो अबतक के सबसे कट्टर चीन समर्थक राष्ट्रपति बनकर सामने आए हैं. बता दें कि मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय ने 12 विपक्षी सांसदों को बहाल करने का आदेश दिया था. जिसे राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने ठुकराकर रातों रात बदल दिया. यही नहीं ऐसा आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी गिरफ्तार कर आपातकाल लगा दिया.
भारत, अमेरिका समेत पूरी दुनिया अब्दुल्ला यामीन की आलोचना कर रही है. लेकिन चीन उन्हें लगातार समर्थन दे रहा है. मालदीव ने भारत के विरोध के बावजूद चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया. 777 पेज वाले इस करार को मालदीप की संसद ने सिर्फ 10 मिनट में बिना बहस हरी झंडी दे दी. 85 सदस्यीय संसद में इसे सिर्फ 30 वोटों से पास कर दिया गया. इसी तरह जुलाई 2015 में एक चीन समर्थक बिल पास हुआ. जिसके मुताबिक विदेशी सरकार या व्यक्ति मालदीव के द्वीपों को खरीद सकता है. ये दोनों सुविधाएं चीन को ध्यान में रखकर दी गईं. ताकि वो मालदीप में अपना सैनिक अड्डा बना सके.
चीन के हाथों में खेलते अपने देश को बचाने के लिए पूरा विपक्ष भारत से मदद की गुहार लगा रहा है. मालदीव के निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने एक इंटरव्यू में कहा, ''दो वजहों से भारत को मालदीव में दखल देनी चाहिए. मालदीव में चीन का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. साथ ही इस्लामिक कट्टरता भी पैर फैला रही है. चीन ने मालदीव के तकरीबन 17 द्वीपों पर अपना कब्जा कर लिया है.'' वहीं चीनी दूतावास के प्रवक्ता जी रोंग ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में नशीद के आरोपों को बेबुनियाद बताया है.