Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय (AMU) के विवादित अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दायर याच‍िका पर बुधवार (10 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा क‍ि केवल यह तथ्य कि किसी शैक्षणिक संस्थान के प्रशासन का कुछ हिस्सा गैर-अल्पसंख्यक अधिकारियों की तरफ से भी देखा जाता है, इसके अल्पसंख्यक चरित्र को 'कमजोर' नहीं करता है.  


प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने रेखांकित किया कि संविधान का अनुच्छेद 30 कहता है कि प्रत्येक अल्पसंख्यक, चाहे वह धार्मिक हो या भाषाई, को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना का और उनका प्रशासन देखने का अधिकार होगा. 


इस जटिल मुद्दे पर सुनवाई के दूसरे दिन पीठ ने कहा, ''केवल यह तथ्य कि किसी शैक्षणिक संस्थान के प्रशासन का कुछ हिस्सा गैर-अल्पसंख्यक अधिकारियों की ओर से भी देखा जाता है, जो संस्थान में अपनी सेवा या उसके साथ अपने जुड़ाव के चलते पक्ष रखने का प्रतिनिधित्व रखते हैं, इसकी अल्पसंख्यक महत्ता को कम नहीं करता है.''


पीठ ने कहा, ''लेकिन यह इस बिंदु तक नहीं हो सकता कि पूरा प्रशासन गैर-अल्पसंख्यक हाथों में है.'' एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा पिछले कई दशक से कानूनी प्रक्रिया में उलझा है. 


1875 में हुई थी अलीगढ़ मुस्‍ल‍िम यून‍िवर्सिटी की स्‍थापना 
 
इस बीच देखा जाए तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के विवादास्पद मुद्दे को 7 न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था. 


कोर्ट में केंद्र ने पेश की दलील 


इस मामले पर केंद्र की ओर से भी दलील दी गई है क‍ि एएमयू किसी धर्म विशेष या धार्मिक प्रभुत्व का विश्वविद्यालय नहीं है और ना ही हो सकता, क्योंकि राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित कोई विश्‍वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी लिखित दलीलों में कहा कि विश्‍वविद्यालय हमेशा से, यहां तक कि आजादी के पहले के कालखंड में भी राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है.


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