अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 143 साल पहले दफन टाइम कैप्सूल निकालने की तैयारी, जानिए क्या है कारण
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर है, जिसमें मौजूदा वक्त से जुड़े कागजात रखे जाते हैं. कंटेनर आमतौर पर एलॉय, पॉलिमर, पाइरेक्स मैटेरियल से बनता है.
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 143 साल पहले दफन किए गए टाइम कैप्सूल को बाहर निकालने की तैयारी चल रही है. इस कैप्सूल को एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (एमएओ) की स्थापना के समय जमीन में दफनया था. अब यूनिवर्सिटी के शताब्दी वर्ष में नया कैप्सूल दफन करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया है.
टाइम कैप्सूल को बाहर निकालने के उद्देश्य 143 साल पुराने इतिहास को नई पीढ़ी पढ़ सके और आज के इतिहास को संजोकर सुरक्षित रखा जा सके और सालों बाद आने वाली पीढ़ी पढ़ सके.
क्या होता है टाइम कैप्सूल टाइम कैप्सूल एक कंटेनर है, जिसमें मौजूदा वक्त से जुड़े कागजात रखे जाते हैं. कंटेनर आमतौर पर एलॉय, पॉलिमर, पाइरेक्स मैटेरियल से बनता है. वैक्यूम होने के कारण टाइम कैप्सूल कंटेनर हर मौसम में सुरक्षित रहता है. यहां तक कि आग भी इस कंटेनर को जला नहीं सकती. कंटेनर जमीन की गहराई में रहता है और हजारों सालों तक इसे नुकसान नहीं होता है.
इंदिरा गांधी ने पहली बार रखा था टाइम कैप्सूल टाइम कैप्सूल का विदेशों में खूब चलन है. भारत में पहली बार इसे 15 अगस्त, 1973 में इस्तेमाल किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहली बार लाल किले के सामने जमीन के नीचे एक टाइम कैप्सूल रखा था. आजादी की 25वीं सालगिरह पर टाइम कैप्सूल तैयार करवाया गया, जिसमें आजादी के बाद की घटनाओं और तथ्यों से जुड़े कई कागजात रखे हुए हैं. ये बात उस वक्त की अखबारों की सुर्खियां बनी थी. इसपर इंदिरा गांधी के खिलाफ विवाद भी हुआ था.
अखबारों की रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के वफादारों की एक टीम बनाई थी. इंदिरा गांधी के आदेश पर 10 हजार शब्दों का एक लेख लिखा गया था, जिसका टाइटल था- 'India After Independence'. इस लेख को टाइम कैप्सूल में रखकर जमीन के नीचे डाला गया था. हालांकि कैप्सूल में इंदिरा गांधी ने क्या जानकारी दी थी, इसका खुलासा होना अभी बाकी है.
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