नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट ने धर्मांतरण और लव जिहाद विरोधी एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. राज्यपाल के दस्तखत के बाद यह कानून लागू हो जाएगा. एबीपी न्यूज़ ने इस अध्यादेश के कानूनी पहलुओं की पड़ताल की है. पूर्व जजों और विशेषज्ञों से इस पर बात की है. इस लेख में हम पूरे विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं.


अध्यादेश की मुख्य बातें


यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार चुनाव के दौरान अपने भाषण में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि प्रेम के झूठे जाल में फंसा कर या धोखा देकर हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने के खिलाफ कानून लाया जाएगा. लेकिन राज्य के कैबिनेट ने जिस अध्यादेश को मंजूरी दी है, उसमें धर्मांतरण के पूरे मसले को शामिल किया गया है.


यूपी सरकार का अध्यादेश धोखा देकर, धमका कर, गलत तरीके से प्रभाव में लेकर, लालच देकर या मर्जी के खिलाफ किसी के धर्मांतरण कराने को अपराध घोषित करता है. इसके लिए अलग-अलग परिस्थितियों में 3 साल से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. अगर धर्म परिवर्तन किसी नाबालिग का या अनुसूचित जाति-जनजाति के सदस्य का करवाया जाता है, तो 10 साल तक की सजा हो सकती है. सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में भी ज्यादा कड़ी सजा का प्रावधान रखा गया है. इस कानून की खास बात यह है कि धर्म परिवर्तन करवाने के मकसद से शादी करने को भी अपराध की श्रेणी में डाला गया है और दंड का प्रावधान किया गया है. अध्यादेश इस तरह की शादी को अमान्य भी करार देता है. कानून में यह भी कहा गया है कि अगर कोई धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे 2 महीना पहले अपने जिले के कलक्टर को जानकारी देनी होगी. कलक्टर पुष्टि करेंगे कि यह सब कुछ स्वेच्छा से हो रहा है या नहीं.


अध्यादेश के कानूनी पहलू


अगर हम अध्यादेश में कही गई बातों के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करें, तो ज्यादातर बातें भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के तहत पहले ही अपराध है. जैसे नाम या पहचान छुपाकर किसी को धोखा देना उससे ऐसा काम करवाना जो वह सामान्य स्थितियों में नहीं करता आईपीसी की धारा 416 के तहत ‘चीटिंग बाय परसोनेशन’ कहलाता है. इसके लिए 3 साल तक की सजा का प्रावधान है.


किसी को धमकी देकर कुछ काम करने के लिए मजबूर करना भी आईपीसी की धारा 506 के तहत दंडनीय अपराध है. धमकी किस तरह की है, उसके मुताबिक 2 साल से लेकर 7 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. किसी महिला को शादी का धोखा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना आईपीसी की धारा 493 के तहत दंडनीय अपराध है. इसके लिए 10 साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है.


संवैधानिक पहलुओं की जांच


अब जरा कानून के संवैधानिक पहलुओं के भी चर्चा कर ली जाए. संविधान का अनुच्छेद 15 (3) सरकार को यह जिम्मेदारी देता है कि वह अनुसूचित जाति-जनजाति के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए. चूंकि धर्म परिवर्तन से जुड़े मामलों में सबसे बड़ी संख्या इसी तबके की होती है, ऐसे में यूपी सरकार के अध्यादेश में उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई है.


इस कानून का विरोध कर रहे लोग इसे अनुच्छेद 21 यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन बता रहे हैं. अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है. उसे अपने जीवन से जुड़ा हर तरह का चयन करने का भी अधिकार है. इस तरह उसे अपना जीवनसाथी या धर्म चुनने का अधिकार संविधान देता है. लेकिन सभी मौलिक अधिकारों की तरह इस अधिकार की भी सीमाएं संविधान में तय की गई हैं. इन्हें रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन के तहत माना गया है. यूपी सरकार का नया कानून किसी को अपनी पसंद से विवाह करने या धर्म परिवर्तन करने से नहीं रोकता है. लेकिन उससे पहले यह सुनिश्चित कर लिए जाने की व्यवस्था की गई है कि यह सब कुछ स्वेच्छा से हो रहा है. जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन करने जा रहा है, उसके साथ कोई धोखा नहीं हुआ है, उसे कोई लालच नहीं दिया जा रहा है या उस पर कोई दबाव नहीं बनाया जा रहा है.


इसके अलावा संविधान का अनुच्छेद 25 जो किसी व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उसका प्रचार करने की का अधिकार देता है, उसके हनन की बात भी की जा रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कई पुराने फैसलों में यह कह चुका है कि अपने धर्म को मानना या उसका प्रचार करने की छूट मिलना, किसी का धर्म परिवर्तन करवा देने को भी मौलिक अधिकार नहीं बना देता है. यानी यूपी सरकार का नया अध्यादेश अनुच्छेद 25 का उल्लंघन भी नहीं माना जा सकता है.


 8 राज्यों में है ऐसा कानून


अब जरा बात इस मसले पर कर लेते हैं कि क्या यूपी पहला राज्य है, जो ऐसा कानून बना रहा है? जवाब है नहीं. 8 राज्यों में पहले से इस तरह के कानून हैं. यह राज्य हैं- ओडिशा, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और झारखंड. इन राज्यों में लागू कानून में धर्म परिवर्तन से पहले कलक्टर को सूचना देने, स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन से जुड़ा हलफनामा देने जैसे प्रावधान हैं. धोखा देकर या प्रलोभन या धमकी के जरिए कराए गए धर्म परिवर्तन को भी कानूनन अपराध मानकर दंड का प्रावधान किया गया है. ओडिशा और मध्य प्रदेश में तो 1967 में ही यह कानून बन गया था. 1977 में रेव. स्टेनिसलास बनाम मध्य प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों राज्यों में बने कानून को संवैधानिक रूप से सही करार दिया था.


पूर्व जजों की राय


यूपी सरकार के नए धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश को कानूनी विशेषज्ञ संविधान की कसौटी पर सही करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि कड़ी सज़ा के प्रावधान, विवाह में सरकार के बहुत ज़्यादा दखल जैसे कुछ पहलुओं को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. लेकिन इस बात की संभावना कम है कि पूरे कानून को ही कोर्ट निरस्त करार देगा.


पटना हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस वी एन सिन्हा के मुताबिक, “विशेष कानून बनाना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. इसी तरह के कानून कई और राज्यों में पहले से हैं. उन पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर भी लगाई है. मेरी समझ में यह संवैधानिकता की कसौटी पर खरा उतरेगा.“


झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजित कुमार सिन्हा ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत करते हुए कहा, “यह विषय समवर्ती सूची का है. इसलिए राज्य को भी इस पर कानून बनाने का अधिकार है. सज़ा की मात्रा वगैरह पर बहस हो सकती है लेकिन यह नहीं कह सकते कि कानून पूरी तरह मौलिक अधिकारों का हनन है. हर अधिकार की कुछ कानून सम्मत सीमाएं संविधान में दी गई हैं. कोर्ट में चुनौती की स्थिति में राज्य सरकार को अपने कानून का औचित्य साबित करना होगा."


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