नई दिल्ली: जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अज़हर मसूद का नाम यूएन आतंकियों की फेहरिस्त में जुड़वाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. फ्रांस-ब्रिटेन-अमेरिका की तरफ से इस बाबत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रखे प्रस्ताव पर सदस्य देशों की तरफ से किसी आपत्ति को दर्ज कराने की मियाद आज 13 मार्च की शाम खत्म हो रही है. ऐसे में सबकी नजरें सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य चीन की अगली चाल पर टिकी हैं जो अबतक इन कोशिशों के रास्ता रोकता आया है.


अब नज़रें चीन की चाल पर
चीन का अगला कदम ही तय करेगा कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद मसूद अज़हर को यूएन आतंकियों की सूची में शामिल कराने की कवायद कामयाब होगी या नहीं. फिलहाल चीन ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. चीनी विदेश मन्त्रालय की तरफ से इस बाबत आए हालिया बयान में इतना ही कहा गया कि चीन इस मामले में सभी पक्षों से बातचीत कर एक मान्य रास्ता निकालने का पक्षधर है.


इस बीच सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और प्रस्तावकों में से एक अमेरिका ने कहा है मसूद अजहर यूएन आतंकियों की सूची में जगह पाने के लिए पूरी तरह फिट केस है. इस प्रस्ताव पर चीन के रुख के बारे में पूछे जाने पर अमेरिकी विदेश विभाग प्रवक्ता रॉबर्ट पलाडीनो ने कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के मुद्दे पर चीन और अमेरिका की एक राय हैं. ऐसे में मसूद अज़हर का नाम यदि नहीं जुड़ पाता है तो यह शांति व स्थिरता प्रयासों के खिलाफ होगा.


चीन और अमेरिका के रिश्तों की मौजूदा केमेस्ट्री के बीच वाशिंगटन से आए इस ताज़ा बयान ने भारतीय खेमे की कुछ चिंताएं भी बढ़ा दी हैं. जाहिर है चीन किसी भी सूरत में अमेरिकी दबाव में इस मुद्दे पर फैसला लेते नहीं दिखना चाहेगा. ऐसे में समय सीमा खत्म होने तक इस बात की आशंका बरकरार रहती हैं कि पिछली बार की तरह चीन फिर कोई तकनीकी कारण बताते हुए अड़ंगा न लगा दे. स्थाई सदस्य होने के नाते चीन के पास सबसे बड़ा हथियार उसका वीटो अधिकार है.


हालांकि चीन के लिए भी एक बार फिर एक आतंकी को बचाने की खातिर अपने वीटो का इस्तेमाल करना सहज नहीं होगा. वहीं पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय विदेश मंत्री को लिखे खत और फिर बीजिंग में हुई भारत-रूस व चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक में उसने पूरी तरह पाकिस्तान का पक्ष लेने के संकेत नहीं दिए हैं. मगर उसका पिछली रिकॉर्ड देखते हुए उसके भारत के हक में खड़े होने की उम्मीद भी धुंधली है.


क्या है आगे की प्रक्रिया?
बहरहाल, यदि चीन समेत सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देशों में से किसी की तरफ से 13 मार्च की समय सीमा पूरी होने तक कोई ऐतराज़ नहीं दर्ज कराया जाता है तो मसूद का नाम जोड़ने की प्रक्रिया स्वतः ही शुरू हो जायेगी.


इसके बाद सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति मसूद अजहर का नाम 1267 प्रस्ताव संबंधी लिस्ट में जोड़ सकेगी. पांच स्थाई व दस अस्थाई सदस्यों वाली परिषद को समिति के इस कदम पर मुहर लगानी होगी. सनद रहे की सुरक्षा परिषद में शामिल 15 देश ही प्रतिबंध समिति के भी सदस्य हैं.


मसूद बना यूएन आतंकी तो..
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा निर्धारित आतंकियों की फेहरिस्त में मसूद अजहर का नाम शामिल होने के बाद पाकिस्तान पर उसके खिलाफ तीन तरफा कार्रवाई का दबाव होगा. पाकिस्तान को मसूद के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध, हथियार बैन व चल-अचल सम्पत्ति जब्त करने जैसे कदम उठाने होंगे. साथ ही जैश और उसके लोगों की गतिविधियों पर यूएन की भी निगरानी होगी.


संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रहे अशोक मुखर्जी के मुताबिक यूएन का सदस्य देश होने के नाते मसूद के खिलाफ कार्रवाई पाकिस्तान की ज़िम्मेदारी व जवाबदेही होगी क्योंकि वो पकिस्तानी नागरिक है और उस मुल्क में ही रह रहा है. हालांकि लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद को यूएन आतंकी घोषित कराने के बावजूद हमारा अनुभव यह कहता है कि पकिस्तान का रवैय्या सम्भवतया मसूद के खिलाफ भी नरम ही बना रहे और इस्लामाबाद की सरकार व फौज कोई कार्रवाई न करे. ऐसे में यह सुरक्षा परिषद की ज़िम्मेदारी होगी कि वो पाकिस्तान पर इसके लिए मुकम्मल दबाव बनाए. इससे पूर्व भारत की पहल पर मुंबई आतंकी हमले के बाद लश्कर-ए-तोयबा और उसके मूल संगठन जमात-उद-दावा व सरगना हाफिज सईद को 10 दिसम्बर 2008 को प्रतिबंधित सूची में डाल गया था.


भारत ने सौंपी है मसूद की रिकॉर्डिंग
पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की कूटनीतिक घेराबंदी में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सदस्यों को जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अजहर की गतिविधियों का एक पूरा डोजियर सौंपा है. साथ ही भारत ने पहली बार मसूद अजहर की फरवरी 2019 में सामने आई ऑडियो रेकॉर्डिंग भी सौंपी है. यह पहला मौका है जब भारत ने इस तरह ऑडियो साक्ष्य सुरक्षा परिषद को मुहैया कराए हैं. इस रेकॉर्डिंग में मसूद को भारत के खिलाफ ज़हर उगलते और आतंकियों को हमलों के लिए उकसाते सुना जा सकता है.


एक तीर से कई निशाने
मसूद अजहर का नाम यूएन आतंकियों की फेहरिस्त में शामिल कराने की कवायद सीधे तौर पर आतंकवाद की नकेल कसने में भले ही बहुत बड़ा असर न डाल पाए. मगर इस तीर के सहारे भारत के कई लक्ष्य सधते हैं. यदि फ्रांस-अमेरिका-ब्रिटेन का प्रस्ताव परवान चढ़ जाता है तो न केवल एक और पाकिस्तानी आतंकी सरगना यूएन लिस्ट में शामिल होगा बल्कि भारत को यह भी दिखाने का मौका मिलेगा की पाकिस्तान अब भी आतंक की पनाहगाह बना हुआ है. यूएन की आतंकी सूची में शामिल 22 संगठन और 132 से ज़्यादा आतंकी पाकिस्तान में पल रहे हैं.


इतना ही नहीं, अगर चीन इस मुहिम का रास्ता रोकता है तो भारत को उसे भी आतंकवादी को बचाने के सवाल पर कठघरे में खड़ा करने का मौका मिलेगा. वहीं चीन यदि अंतरराष्ट्रीय लोक-लिहाज में मसूद के मुद्दे चुप रहता है तो उसकी और पाक की दोस्ती में दरार का दायरा भी बढ़ेगा. वहीं इस प्रस्ताव के परवान चढ़ने से भारत को यह दिखाने का भी मौका मिलेगा की आतंकवाद के खिलाफ उसकी मुहिम पर दुनिया के बड़े और ताकतवर मुल्क न केवल उसके साथ खड़े हैं बल्कि उसके गुनाहगारों के खिलाफ सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव भी रख रहे हैं.


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