All India Muslim Jamaat Meeting: बरेली में आला हजरत के 106वें उर्से रजवी के पहले दिन ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के हेड ऑफिस पर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. बैठक में देश के विभिन्न राज्यों से आए उलमा और बुद्धिजीवियों ने मुसलमानों के मुद्दों पर चर्चा की और एक मुस्लिम एजेंडा तैयार किया.


मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने गुरुवार (29 फरवरी) को मुस्लिम एजेंडा जारी करते हुए मुसलमानों को शिक्षा, बिजनेस, और परिवार पर ध्यान देने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को समाज में फैल रही बुराइयों पर रोकथाम करनी चाहिए और लड़कियों के लिए अलग से स्कूल और कॉलेज खोलने चाहिए.


'हर कुर्बानी देने के लिए तैयार मुसलमान'


मौलाना ने केंद्र और राज्य सरकारों को चेतावनी देते हुए कहा कि देश की एकता और अखंडता के लिए मुसलमान हर कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं, लेकिन हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने वाली राजनीति बर्दाश्त नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा, "मुसलमानों के साथ नाइंसाफी, जुल्म और ज्‍यादती को भी हम ज्‍यादा दिन तक सहन नहीं कर सकते. सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को इस पर गंभीरता से काम करना होगा और मुसलमानों के प्रति अपने आचरण में बदलाव लाना होगा.


वक्फ संशोधन बिल का किया समर्थन


उन्होंने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन किया और कहा कि वक्फ संपत्ति का रख-रखाव और उससे होने वाली आमदनी गरीब और कमजोर मुसलमानों पर खर्च की जानी चाहिए. मौलाना ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के संबंध में कहा क‍ि इस तरह के कानून को भारत का मुसलमान मानने के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने बांग्लादेश के तख्ता पलट के दौरान हिंदुओं के मकानों और मंदिरों पर हुए हमलों की निंदा की और पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सरकारों से अपनी जमीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने न देने और आतंकवाद का जड़ से खात्मा करने की अपील की.


उन्होंने सरकार और राजनीतिक पार्टियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अक्सर कोई न कोई व्यक्ति पैगम्‍बरे इस्लाम की शान में गुस्ताखी करता है, मगर सभी लोग खामोश होकर तमाशाई बने रहते हैं, कोई कार्रवाई नहीं होती. इसलिए संसद या विधानसभाओं में पैगम्‍बरे इस्लाम बिल लाया जाए, ताकि फिर कोई व्यक्ति उनकी शान में गुस्ताखी न कर सके.


मुसलमानों की शिक्षा को लेकर दिया बयान


मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने मुस्लिम कौम को हिदायत दी कि पहले के मुकाबले 2023-2024 में मुसलमानों की शिक्षा दर कुछ हद तक बढ़ी है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं है. उन्होंने कहा, "मुसलमानों को अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए और संपन्‍न मुसलमानों को गरीबों के बच्चों की स्कूल की फीस का खर्चा उठाना चाहिए. मदरसों और मस्जिदों में अरबी, उर्दू के साथ-साथ हिंदी व अंग्रेजी और कम्प्यूटर शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए."


मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा, "मुसलमानों को अपनी जमीन और जायदाद में लड़कों के साथ लड़कियों को भी हिस्सा देना चाहिए और जकात का इज्तिमाई निजाम कायम करना चाहिए. मुसलमानों को कानून के दायरे में रहना चाहिए और अपने आधार कार्ड और वोटर कार्ड बनवाने चाहिए और चुनाव में अपने वोटों का इस्तेमाल देश की तरक्की के लिए करना चाहिए."


मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने केंद्र और राज्य सरकारों को संबोध‍ित करते हुए कहा क‍ि देश की एकता और अखंडता के लिए काम करने वाली सरकारों के साथ मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, "अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए बनाई गई स्कीमों का फायदा मुसलमानों को नहीं मिल पा रहा है, इसकी व्यवस्था में बदलाव किया जाना चाहिए. लव-जिहाद, मॉब-लिंचिंग, धर्मांतरण, टेरर फंडिंग और आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को भयभीत और परेशान किया जा रहा है, इसको रोकना चाहिए."


'समान नागरिक संहिता मुसलमानों को मंजूर नहीं'


उन्होंने कहा, "कुछ कट्टरपंथी संगठन मुसलमानों की लड़कियों को डरा धमकाकर और लोक लुभावने सपने दिखाकर शादी की मुहिम चला रहे हैं, इसको चिन्हित करके इनके खिलाफ कार्रवाई की जाए. संविधान ने अल्पसंख्यकों को अपने संस्थान स्थापित करने की इजाजत दी है, इसमें सरकार को दखल देने की जरूरत नहीं है. 1991 के एक्ट के अनुसार धार्मिक स्थलों की यथास्थिति स्थिर रहनी चाहिए, इसके बावजूद कई मुकदमे कोर्ट में विचाराधीन हैं, इससे पूरे देश का माहौल खराब हो रहा है. पैगंबरे इस्लाम की शान में गुस्ताखी मुसलमान बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, केंद्रीय सरकार पैगंबरे इस्लाम बिल संसद में लाए. समान नागरिक संहिता मुसलमानों को मंजूर नहीं है."


मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने राजनीतिक पार्टियों को हिदायत दी कि वे अपनी जरूरत के वक्त और वोट लेने के लिए मुसलमानों को इस्तेमाल करती हैं, लेकिन सरकार बनाने के बाद उन्हें भूल जाती हैं. इसलिए उन्हें अपने काम करने के तरीकों में बदलाव लाना होगा.उन्होंने कहा, "मुसलमान किसी एक राजनीतिक पार्टी का गुलाम नहीं है, इसलिए राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं को मुसलमानों को बंधुआ मजदूर न समझें. जो पार्टी मुसलमानों के लिए काम करेगी, मुसलमानों के मुद्दों और उनके अधिकारों पर ध्यान देगी, मुसलमान उसके साथ खड़ा होगा. राजनीतिक पार्टियों को मुसलमानों की बात सुननी चाहिए और उनके हितों का ध्यान रखना चाहिए."


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