(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
AIMPLB: क्या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोई सरकारी संस्था है? ज्यादातर लोग हैं अनजान, जानिए- इससे जुड़ी सभी बातें
All India Muslim Personal Law Board: खिलाफत आंदोलन के बाद भारत के इतिहास में यह पहली बार था कि भारतीय मुस्लिम समुदाय के लोग और संगठन मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए एक आम मंच पर एक साथ आए.
All India Muslim Personal Law Board: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदर यानी अध्यक्ष हजरत मौलाना राबे हसनी नदवी साहब का गुरुवार (13 अप्रैल) को इंतकाल हो गया. इसके साथ ही एक बार फिर लोगोंं के जेहन में इस संस्था को लेकर सवाल कौंधने लगे होंगे. आपके दिलो-दिमाग में भी ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board-AIMPLB) क्या है? क्या ये कोई सरकारी संस्था है? इससे ज्यादातर लोग अनजान हैं. आज हम आपको इससे जुड़ी सभी बातें से रूबरू करवाते हैं.
कैसे बनी AIMPLB ?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक, इसकी स्थापना 7-8 अप्रैल 1973 को हुई थी. ये बोर्ड ऐसे वक्त में बनाया गया था जब भारत सरकार समानांतर कानून के जरिए भारतीय मुसलमानों पर लागू होने वाले शरिया कानून को खत्म करने की कोशिश कर रही थी. इस दौरान दत्तक ग्रहण विधेयक (Adoption Bill) संसद में पेश किया गया था.
तब तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री एच.आर. गोखले ने इस विधेयक को समान नागरिक संहिता की दिशा में पहला कदम कहा था. उलेमा, नेताओं और कई मुस्लिम संगठनों ने कामयाबी के साथ भारतीय मुस्लिम समुदाय को यकीन दिलाया कि कि शरिया कानूनों की प्रयोज्यता (लागू करने) खोने का जोखिम असल था और इसे नाकाम करने के लिए समुदाय को ठोस कदम उठाने की जरूरत थी.
यह एक ऐतिहासिक पल था. खिलाफत आंदोलन के बाद भारत के इतिहास में यह पहली बार था कि भारतीय मुस्लिम समुदाय के लोग और संगठन मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए एक आम मंच पर एक साथ आए थे. इस तरह की पहली बैठक हजरत मौलाना सैयद शाह मिन्नतुल्लाह रहमानी, अमीर शरीयत, बिहार और उड़ीसा और हकीमुल इस्लाम हजरत मौलाना कारी मोहम्मद तैयब, मोहतमिम, दारुल उलूम, देवबंद की पहल पर देवबंद में बुलाई गई.
बैठक में मुंबई में एक सामान्य प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित करने का फैसला लिया गया इसलिए, 27-28 दिसंबर, 1972 को मुंबई में एक ऐतिहासिक सम्मेलन आयोजित किया गया. सम्मेलन अभूतपूर्व था. इसने मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए भारतीय मुस्लिम समुदाय की एकता, दृढ़ संकल्प और संकल्प को दिखाया.
कन्वेंशन ने सर्वसम्मति से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाने का फैसला किया. भारत में इस्लामी शरीयत की रक्षा के लिए इस आंदोलन के अग्रदूत हजरत मौलाना कारी तैय्यब कासमी (रहमतुल्लाह अली) बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष और हज़रत मौलाना सैयद शाह मिन्नतुल्लाह रहमानी (रहमतुल्लाह अली) बोर्ड के महासचिव चुने गए. बोर्ड के मौजूदा महासचिव मौलाना सैयद निजामुद्दीन मौलाना सैयद निजामुद्दीन हैं.
AIMPLB के अध्यक्ष कौन रहे
इसके सबसे पहले अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद तैय्यब रहे थे. दूसरे अध्यक्ष अली मियां, तीसरे अध्यक्ष मुजाहिदुल इस्लाम और इसके चौथे अध्यक्ष मौलाना सैय्यद मोहम्मद राबे हसनी नदवी रहे. वो 2002 से लगातार 21 साल से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष थे.
AIMPLB का ढांचा
AIMPLB में 251 सदस्य हैं. इसके 102 संस्थापक सदस्य है. इसके साथ ही 149 आम सदस्य होते हैं. इन सदस्यों के चुनाव के लिए हर 3 साल बाद चुनाव कराए जाते हैं.
AIMPLB में सबसे ताकतवर मजलिस ए आमला को माना जाता है, क्योंकि अधिकतर शक्तियां इसके हाथ में होती हैं. इसके कुल सदस्यों की संख्या 51 है. इसमें 5 महिला और 46 पुरुष होते हैं. हालांकि ये सदस्य भी बोर्ड के 251 सदस्यों में से ही चुने जाते हैं.
मुसलमानों का सबसे शक्तिशाली संगठन
ये संस्था क्यों मुसलमानों का सबसे शक्तिशाली संगठन कहा जाता है. इसकी वजह है कि इस संगठन में मुसलमानों के जितने भी समुदाय हैं, वो सभी एक साथ एक मंच पर हैं. इसमें न सिर्फ सुन्नी के सभी संप्रदाय एक साथ हैं, बल्कि शिया के भी सभी संप्रदाय इस संगठन के साथ हैं. इसके बोर्ड में अबतक जो भी अध्यक्ष या महासचिव बने हैं, वो काफी पढ़े- लिखे और विद्वान बने हैं. ये ऐसा संगठन है जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों का पढ़ा-लिखा तबका जुड़ा हुआ है.
ये संगठन अपने आप में अनोखा है. इसके तहत यूनिवर्सिटी-मदरसे एक साथ हैं तो वहीं हर क्षेत्र के लोग इससे जुड़े हैं. इसमें धर्म के ज्ञानी, मौलाना हैं तो वकील, डॉक्टर, पत्रकार, समाजसेवी, पूर्व सिविल सेवा अधिकारी, पुलिस अधिकारी, जज भी शामिल हैं. बोर्ड में उत्तर, दक्षिण, पश्चिमी भारत हर हिस्से से सदस्य हैं. हालांकि, अब तक जो भी इस बोर्ड के अध्यक्ष बने हैं. वो उत्तर भारत से सुन्नी समुदाय से रहे हैं.
AIMPLB के तहत 6 कमेटियां होती हैं
इस्लाम मआशरा कमेटी हैदराबाद मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी हैं. वो भारतीय मुस्लिम विद्वान, लेखक और न्यायविद हैं.
दारुल कजा कमेटी लखनऊ के संयोजक मौलाना अतीक अहमद बस्तवी हैं.
लीगल सेल कमेटी मुंबई संयोजक युसुफ हातिम मुछाला हैं.
निकाहनामा कमेटी जयपुर के संयोजक फजलुर रहीम मोजददी है.
लाजमी निकाह रजिस्ट्रेशन दिल्ली के संयोजक डॉ कासिम रसूल इलयास हैं
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अहम बातें
1. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक एनजीओ है जो सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है.
2. इसे 7-8 अप्रैल 1973 में स्थापित किया गया. ये 50 साल पुराना इदारा यानी संस्थान है.
3. इसकी स्थापना का मकसद देश में पर्सनल लॉ की हिफाजत करना, देश में मुसलमानों के मुद्दों को सरकार के सामने रखना है.
4. इसका हेड ऑफिस दिल्ली के ओखला में स्थित है.
शाह बानो केस और AIMPLB
शाह बानो केस में AIMPLB की आलोचना की जाती है. दरअसल मध्य प्रदेश इंदौर की रहने वाली शाह बानो का 1932 में मुहम्मद अली खान से निकाह हुआ और उन्होंने 1946 में हलीमा बेगम से दूसरा निकाह किया. साल 1975 में शौहर ने शाह बानो को घर से निकाल दिया था. ये मामला निचली कोर्ट से हाईकोर्ट पहुंचा तो शौहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ से दलील दी की कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, तलाक़ की स्थिति में शौहर को सिर्फ़ इद्दत की मियाद यानी 3 महीने तक तलाकशुदा बीवी को गुजारा देना होता है.
हाईकोर्ट का फैसला CrPC की धारा 125 के तहत बेसहारा, छोड़ी गई या या तलाकशुदा औरतों को अपने पति से मदद पााने का हक है, बशर्ते वो (पति) खुद मोहताज न हो. इसी धारा के तहत असहाय माता-पिता भी मदद के लिए अधिकार मांग सकते हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट गया और वहां शाह बानो की पैरवी कर रहे वकील डैनियल लतीफ़ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की व्याख्या पर सवाल उठाया. इस पर कोर्ट ने अतिरिक्त टिप्पणी में मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार के सुझाव देने के साथ ही समान नागरिक संहिता का सुझाव भी दिया.
इससे AIMPLB को लगा कि कोर्ट का ये फैसला उनके धर्म पर हमला और इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है तो उन्होंने फतवा जारी किया. इससे जगह-जगह प्रदर्शन हुए. फरवरी 1986 में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड राजीव गांधी को ये समझाने में कामयाब हो गई कि वो ही भारत में मुसलमानों की अकेली आवाज हैं. फ़रवरी 1986 में सरकार ने सदन में द मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट 1986 पेश किया. नए क़ानून के तहत मुस्लिम महिलाएं धारा 125 के तहत गुज़ारे भत्ते का हक़ नहीं मांग सकती थीं.
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