'कुरान में लिखी बातों को तो खुद मुसलमान भी...', यूनिफॉर्म सिविल कोड की आलोचना कर बोला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
15 जून को एक विज्ञप्ति जारी करके मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक सहिंता पर विधि आयोग के सुझाव मांगे थे जिसको लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रतिक्रिया सामने आई है.
Debate On UCC: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के सुझाव मांगे जाने को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है. बोर्ड ने कहा है कि भारत में इस तरह का कानून बनाने बेवजह देश के संसाधनों को बर्बाद करना है और यह समाज में वेवजह अराजकता का माहौल बनाएगा. मुस्लिम बोर्ड का कहना है कि इस समय यह कानून लाना अनावश्यक, अव्यहारिक और खतरनाक है.
मुस्लिम लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एसक्यू आर. इलियास ने एक प्रेस बयान में कहा कि हमारा देश एक बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहु-भाषाई समाज है और इसकी यही विविधता ही इसकी पहचान है लिहाजा इस पहचान से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) और 371 (जी) उत्तर-पूर्वी देश के उन आदिवासियों को विशेष प्रावधानों की गारंटी देते हैं जोकि संसद को किसी भी कानून को लागू करने से रोकते हैं जो उनके पारिवारिक कानूनों की जगह लेता हो. उन्होंने दावा किया, अगर ऐसा कानून प्रकाश में आता है तो वह देश के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ करेगा.
'कुरान में लिखी बातों को तो मुसलमान भी...'
यूसीसी का विरोध करते हुए डॉ इलियास ने तर्क दिया कि मुस्लिम लॉ बोर्ड में बने कानून उनकी पवित्र किताब कुरान से लिए गए हैं और उसमें लिखी बातों को काटने और बदलने की इजाजत खुद मुसलमान को भी नहीं है तो फिर सरकार कैसे एक कानून के जरिए इसमें कथित तौर पर दखलंदाजी कर सकती है. उन्होंने कहा, वैसे ही देश में बाकी संप्रदायों की भी कुछ ऐसी ही चिंताएं होंगी.
इलियास ने दबे स्वर में सरकार को कथित तौर पर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार पर्सनल लॉ के कानूनों में किसी तरह की तब्दिली करने की कोशिश करती है तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे और इस वजह से देश में दंगे भी भड़क सकते हैं, लिहाजा किसी भी समझदार सरकार को ऐसा करने से बचना चाहिए.
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