लखनऊ: तीन तलाक की व्यवस्था को लेकर सवालों से घिरा ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक नई पहल करने जा रहा है. बोर्ड शरिया कानूनों के बारे में लगातार उलझते भ्रम को दूर करने के लिये सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारियों में जुटा है.


बोर्ड ने एक विशेष सोशल मीडिया समिति बनाने का फैसला किया है, जो इन मीडिया माध्यमों के जरिये तलाक, शादी, हलाला, वारिसाना हक, महिला अधिकार समेत तमाम मसलों से सम्बन्धित मुस्लिम पर्सनल लॉ के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध कराएगा.


बोर्ड के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना यासीन उस्मानी ने बताया कि संस्था के शीर्ष पदाधिकारियों समेत एक बड़ा वर्ग यह महसूस करता है कि जिन माध्यमों से शरिया कानूनों की आलोचना हो रही है, उन्हीं माध्यमों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर एक सही तस्वीर सामने रखी जाए.


उन्होंने बताया कि बीते 15-16 अप्रैल को लखनऊ में हुई बोर्ड की कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे को सामने रखते हुए एक सोशल मीडिया समिति बनाने का फैसला किया गया है. इसके गठन के लिये बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी और महासचिव मौलाना वली रहमानी को अधिकृत किया गया है.


उस्मानी ने बताया कि इस समिति के बहुत जल्द गठित हो जाने की उम्मीद है. बहुत मुमकिन है कि इसमें बोर्ड के ही ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जो सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत रूप से सक्रिय हैं और शरिया कानूनों की हर बारीकी पर फौरन प्रतिक्रिया दे सकते हैं.


बोर्ड के सदस्य ने कहा कि उन्होंने बैठक के दौरान यह विचार रखा था कि बोर्ड अपना कोई टीवी चैनल और अखबार भी शुरू करे. इस पर बोर्ड के तमाम पदाधिकारी आम तौर पर सहमत तो दिखे, लेकिन इसके लिये जरूरी संसाधनों की फिलहाल कोई उपलब्धता नहीं देखते हुए इस बारे में कोई फैसला नहीं हो सका.


उस्मानी ने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इस दिशा में कुछ ठोस काम करना ही पड़ेगा. तीन तलाक और शरिया कानूनों को लेकर समाचार चैनलों की बहस में किसी भी उलमा के भाग ना होने की दारुल उलूम देवबंद की अपील के औचित्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘हम इससे सहमत हैं, क्योंकि आम तौर पर चैनलों का अपना तय एजेंडा होता है और उसी के अनुसार वे कार्यक्रम का संचालन करते हैं.


ऐसे में बेहतर यही है कि उलमा इसमें शरीक ना हों.’’ मालूम हो कि तीन तलाक का मुद्दा इन दिनों पूरे देश में सुखिर्यों में है जहां ज्यादातर मुस्लिम महिला संगठन तलाक की इस व्यवस्था के खिलाफ हैं, वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि इसका दुरुपयोग किया जा रहा है, मगर इसकी वजह से कानून में बदलाव करना उचित नहीं है. इसके लिये समाज को जागरूक करने की जरूरत है, जो बोर्ड पहले से ही कर रहा है.


बोर्ड की हाल में हुई कार्यकारिणी बैठक में भी तीन तलाक को लेकर जारी व्यवस्था को बरकरार रखा गया है. हालांकि इस बार बोर्ड ने तलाक के मुद्दे को लेकर अपने रुख में तब्दीली करते हुए एक आचार संहिता जारी की है और यह फैसला भी किया है कि शरिया कारणों के बगैर तीन तलाक देने वाले मर्दो का सामाजिक बहिष्कार किया जाए.


बहरहाल, शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इण्डिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने सामाजिक बहिष्कार के फैसले को नाकाफी बताते हुए कहा था कि इससे तलाक पीड़ित महिला को इंसाफ नहीं मिलेगा.