तीन तलाक: संसद में पेश होगा बिल, जानें- शुरु से लेकर अबतक इस मामले की बड़ी बातें
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में कहा था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 22 अगस्त को एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने की व्यवस्था यानि तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया था. जिसके बाद भारत में सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा का अंत हो गया. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक पर कानून बनाने को कहा था. इसके तहत केंद्र अब तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए लोकसभा में बिल पेश करने वाली है.
सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक चली थी सुनवाई
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक नियमित सुनवाई चली थी. इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए उत्तराखंड की शायरा बानो सहित 7 मुस्लिम महिलाओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी पेश की गई थी, जबकि पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताते इस पर सुनवाई न करने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने भी सुनवाई के दौरान तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ तीन तलाक को खत्म करने की पैरवी की थी.
कोर्ट में खारिज होगा तीन तलाक
सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को ना सिर्फ असंवैधानिक बताया, बल्कि गैर कानूनी भी करार दिया. अब अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक कहता है तो महिला अपना कानूनी हक लेकर सीधे कोर्ट जा सकती है. कोर्ट में पुरुष का तीन तलाक तत्काल खारिज हो जाएगा.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में कहा था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है.
पीएम मोदी ने फैसले को बताया था एतिहासिक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले को एतिहासिक बताया था. पीएम मोदी ने कहा था, ‘’सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐतिहासिक है. इससे मुस्लिम महिलाओं को समानता अधिकार मिलेगा और ये महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम है.’’
कानून बनाने के लिए सरकार ने क्या किया?
पिछले हफ्ते सरकार ने तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी और अमान्य ठहराए जाने के लिए प्रस्तावित कानून के मसौदे को मंजूरी दी थी. गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले अंतर-मंत्रालयी समूह ने विधेयक का मसौदा तैयार किया था. इस समूह में वित्त मंत्री अरूण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी शामिल थे. अब इस बिल को संसद के इसी सत्र में पेश किया जाएगा.
प्रस्तावित कानून सिर्फ एक बार में तीन तलाक के मामले में लागू होगा और इससे पीड़िता को अधिकार मिलेगा कि वह उचित गुजारा भत्ते की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सके.