नई दिल्ली: चांद की धरती पर हिंदुस्तान इतिहास रचने वाला है. 7 सितंबर की रात 1 बजकर 55 मिनट पर चांद की धरती पर भारत का स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-2 उतरने वाला है. भारत पहला देश है जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारेगा. इस प्रोजेक्ट की कमान भारत की दो महिला प्रोजेक्ट डायरेक्टर के हाथों में है.
चंद्रयान 2 जब चांद पर उतरेगा तो हर कोई सांसे थाम कर उस लम्हे को देखेगा, क्योंकि चांद के जिस हिस्से पर लैंडिंग होनी है वहां ऐसा करना इतना आसान भी नहीं है. इसरो प्रमुख के. सिवन ने बताया है कि इसके कामयाब होने की गुंजाइश सिर्फ 37 फीसदी है, क्योंकि चांद के जिस दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 को उतरना है. वो बेहद खतरनाक है.
दरअसल लैंडिंग की संभावित सतह पर ढेरों गड्ढें, पत्थर और धूल है. लैंडिंग के वक्त प्रोपल्शन सिस्टम ऑन होन से धूल उड़ेगी. डर से सोलर पैनल पर धूल जमा हुई तो पावर सप्लाई पर असर पड़ेगा. धूल से ऑनबोर्ड कंप्यूटर सेंसर्स पर असर पड़ सकता है. लैंडिंग के वक्त मौसम भी बड़ी मुसीबत बन सकता है. चांद के दूसरे हिस्सों के मुकाबले यहां ज्यादा अंधेरा रहता है. इसलिए भी कोई देश यहां अपना मिशन नहीं भेजता.
अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचेगा भारत, 7 सितंबर रात 1 बजकर 55 मिनट पर चांद पर उतरेगा चंद्रयान-2
चांद की सतह पर उतरने के बाद क्या-क्या करेगा चंद्रयान 2
चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी किन तत्वों से बनी है? चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं? चांद पर पानी की क्या कहानी है? इसरो का चंदयान 2 इन सारे सवालों के जवाब तलाशेगा. इसके अलावा चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा और चंद्रमा पर मौजूद झीलों की जांज करेगा. इतना ही नहीं चंद्रयान 2 मिशन से भौगौलिक, मौसम संबंधी अध्ययन और चंद्रयान 1 से खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके विकास की और ज़्यादा जानकारी मिल पाएगी.
लैंडिंग के बाद रोवर चन्द्रमा की सतह पर घूमेगा और चांद के एक दिन के समय यानी पृथ्वी के 14 दिन के समय तक परीक्षण जारी रखेगा. ये मिशन एक साल तक चलेगा. जिसमें चंद्रयान 2 चांद की मिट्टी, वातावरण की रिपोर्ट देगा. इसके अलावा चंद्रयान 2 चांद का केमिकल विश्लेषण करेगा, चांद पर मौजूद खनिज खोजेगा और चांद की सतह की तस्वीरें भेजेगा. चंद्रयान- 2 चांद की सतह की रासायनिक संरचना, मिटटी का तापमान का अध्ययन भी करेगा, जिससे चंद्रमा के अस्तित्व की जानकारियों का पता चलेगा.
बता दें कि चांद से हीलियम 3 लाकर धरती पर उसकी जरूरत को पूरा किया जा सकता है. इससे 500 साल तक ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.
चंद्रयान 2 में लगे ऑर्बिटर, लैंडर और रोबर के क्या काम हैं?
चांज की सतह पर इसरो का जो स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान 2 लैंड करने वाला है. उसके 3 अहम हिस्से हैं. ऑर्बिटर, लैंडर और रोबर. अब आसान तरीके से समझिए कि इन तीनों के काम क्या क्या हैं.
ऑर्बिटर
ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, सॉफ्ट लैंडिंग के लिए सतह स्कैन करेगा, बाहरी वातावरण की जानकारी जुटाएगा, सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापेगा और सतह की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें खींचेगा. लैंडर 2 सितंबर को सफलतापूर्वक ऑर्बिटर से अलग हो चुका है जो चांद की सतह पर लैंड करेगा.
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लैंडर विक्रम
लैंडर सतह के नीचे की हलचल का पता लगाएगा. तापमान में उतार-चढ़ाव को मॉनिटर करेगा और सतह के पास इलेक्ट्रॉन डेंसिटी को मापेगा.
चांद की धरती पर लैंडिंग के बाद लैंडर से रोबार प्रज्ञान बाहर निकलेगा, जो चांद की सतह पर घूमेगा.
चांद पर उतरने वाले रोवर ‘प्रज्ञान’ को जानिए
प्रज्ञान संस्कृत के ‘ज्ञान’ शब्द से बना है. 25 किलो का रोवर प्रज्ञान 6 पहिया रिमोट कार जैसा है. लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद प्रज्ञान अलग होगा. लैंडर से निकलकर प्रज्ञान चांद पर 15 दिन रहेगा और चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा. प्रज्ञान के पहिये अशोक चक्र और इसरो के निशान छोड़ेंगे.
रोवर प्रज्ञान 500 मीटर चांद की सतह पर चलेगा. इसकी की रफ्तार 1 सेमी./सेकेंड होगी. प्रज्ञान ड्रिल करके चांद की मिट्टी भी निकालेगा और मिट्टी का विश्लेषण करके डाटा जमा करेगा. रोवर प्रज्ञान एक रोबोट है जिसका वजन 27 किलो है और यही है पूरे मिशन की जान है. इसमें 2 पेलोड हैं.
रोवर प्रज्ञान उस जानकारियों को विक्रम लैंडर को भेजेगा. लैंडर उस डाटा को ऑर्बिटर पर भेजेगा और फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर भेजेगा. 15 मिनट बाद डाटा इसरो सेंटर आने लगेगा.
चंद्रयान-2 की कामयाबी में देश की मिट्टी का कमाल
चंद्रयान-2 की कामयाबी देश की मिट्टी का कमाल है. दरअसल चंद्रयान-2 के लैंडर यानि वो भाग तो चंद्रमा की सतह पर उतरकर खोजबीन करेगा, उसको चंद्रमा की सतह पर उतारने के लिए चंद्रमा जैसी मिट्टी पर प्रैक्टिस करना जरूरी था. इसरो ने वैसी मिट्टी की तलाश की तो पता चला कि नासा के पास मिल जाएगी, लेकिन नासा ने उस मिट्टी के लिए 1 किलोग्राम की कीमत 10 हजार रुपये लगा डाली. चंद्रयान-2 के लिए 60 टन मिट्टी की जरूरत थी. इसके बाद इसरो को तमिलनाडु में सलेम के पास नामक्कल जिले के सीतमपोंडी और कुन्नामलाई गांवों में वो एनॉर्थोसाइट चट्टानें मिल गईं, जो चंद्रमा की मिट्टी से 90 फ़ीसदी मिलती-जुलती है. चट्टानों को पीस कर चांद की मिट्टी बनाई गई और जो काम करोड़ों में होना था, उसे महज 12 लाख रुपये में पूरा कर लिया गया.
मिशन चंद्रयान टू के लिए सिर्फ देश की मिट्टी का ही इस्तेमाल नहीं हुआ है, स्पेशल क्ववालिटी के स्टील भी देश में ही तैयार किया गया है. तमिलनाडु के सेलम में स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के प्लांट में स्पेशल क्वालिटी का स्टील तैयार किया गया है.
स्टील शीट का इस्तेमाल चंद्रयान टू के क्रायोजनिक इंजन में किया गया है. पहली बार रूसी ग्रेड का ऑस्टेनेटिक स्टैबलाइज्ड स्टेनलेस स्टील देश में तैयार किया गया है. स्टील की क्वालिटी ऐसी है जो अंतरिक्ष में हर चुनौती का सामना करने में सक्षम है.
चंद्रयान- 2 का पूरा सफर
कुल 48 दिन बाद चंद्रयान-2 चांद की सतह पर उतरने वाला है. 22 जुलाई को श्रीहरिकोटा से दोपहर 2.43 बजे चंद्रयान 2 को GSLV-III बाहुबली रॉकेट के साथ लॉन्च किया गया था और कुल 48 दिनों के मिशन पर चंद्रयान 2 रवाना हो गया. कामयाबी के साथ 24 जुलाई को धरती की पहली कक्षा में प्रवेश किया. 3 अगस्त को चंद्रयान-2 ने पृथ्वी की 5 तस्वीरें भी खींची.
कैसे चांद के करीब पहुंचा चंद्रयान?
चंद्रयान 14 अगस्त पृथ्वी की कक्षा से चांद की ओर बढ़ा. धरती से चांद के करीब पहुंचने में उसे 23 दिन लगे. 20 अगस्त को चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचा. 23 अगस्त को चांद की सतह के विशाल गड्ढों (क्रेटर) की तस्वीर ली. इसे चांद की कक्षा में स्थापित होने में 7 दिन लगे. इसके बाद इसने 13 दिनों तक चांद का चक्कर लगाया. 2 सितंबर को लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ.
बहुत ही कम खर्च में इसरो ने मिशन चंद्रयान को लॉन्च किया है. मिशन चंद्रयान 2 का बजट 680 करोड़ रुपये है. घरती से चांद की कुल दूर 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है, जिसे चंद्रयान 2 तय करने वाला है.