नई दिल्ली: केदारनाथ की महिमा अपार है. आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां तपस्या की और उसके बाद शंकराचार्य ने यहीं समाधि ली. हिंदू धर्म की मान्यताओं में केदारनाथ धाम ऊर्जा का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता है. यहां पशुपतिनाथ का पिछला हिस्सा विराजित है.


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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में शिवलिंग नहीं बल्कि बैल के पिछले हिस्से के आकार की प्रतिमा की पूजा की जाती है. इसके पीछे महाभारत काल से जुड़ी कथा है.


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कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध जीतने पर परिवार के लोगों की हत्या से मुक्ति के लिए पांडवों ने शिव आराधना की लेकिन भगवान भोलेनाथ पांडवों को आशीर्वाद नहीं देना चाहते थे. पांडव यहां पहुंचे भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया. पांडव भी लगन के पक्के थे. भीम ने इनके पैर पकड़ने चाहे तो बैल रूप में शिव अंतर्ध्यान हो गए. तभी से नेपाल के पशुपतिनाथ में बैल के सिर और केदारनाथ में पृष्ठ भाग की पूजा होती है.



महाभारत काल की कथा के अलावा महादेव के केदारनाथ में बसने की एक औऱ कहानी है. हिंदू मान्यताओँ के मुताबिक आदिकाल से यहां शिव का वास माना जाता है. कहा जाता है कि आदिकाल में शिव बदरीनाथ में निवास करते थे, लेकिन विष्णु को ये जगह इतनी पसंद आई कि उन्होंने शिव से इसे ले लिया और शिव शिव केदारनाथ चले गए.


आधुनिक युग में आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां तपस्या की. इस मंदिर का दसवीं सदी में जीर्णोद्धार कराया गया. सदियों से आस्था और विश्वास के इस धाम में भक्ति की अलख यूं ही जगमगा रही है.