नई दिल्ली: आज तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा. इस फैसले से तय होगा कि एक साथ 3 बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने की व्यवस्था चलती रहेगी या इसे खत्म कर दिया जाएगा. पांच जजों की बेंच ने तलाक के पक्ष और विपक्ष में 6 दिन तक दलीलें सुनीं. इस सुनवाई के दौरान कुल 30 पक्ष अपनी दलीलें अदालत के सामने रख चुके हैं. बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने की थी. बेंच के बाकी सदस्य जस्टिस कुरियन जोसफ, रोहिंटन नरीमन, यू यू ललित और एस अब्दुल नज़ीर थे. तीन तलाक के मसले से जुड़े अहम संवैधानिक सवालों को देखते हुए इसे पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया था. गर्मी की छुट्टी में संविधान पीठ विशेष रूप से सुनवाई के लिए बैठी थी.
संविधान के प्रावधान
सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 पर चर्चा हुई. अनुच्छेद 14 और 15 हर नागरिक को समानता का अधिकार देते है. यानी जाति धर्म, भाषा या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. अनुच्छेद 21 हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का हक देता है.
30 पक्षों ने रखी दलीलें
इस मामले में कुल 30 पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं. इनमें सात मुस्लिम महिलाएं भी शामिल थीं.
तीन तलाक के विरोध में दलीलें
सात याचिकाकर्ता महिलाओं ने कोर्ट से तीन तलाक को रद्द करने की गुहार लगाई. मुस्लिम महिला आंदोलन, मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड, लॉयर्स कलेक्टिव जैसे कई संगठनों ने तीन तलाक खत्म करने की मांग का समर्थन किया.
तीन तलाक का विरोध कर रहे पक्ष ने शादी तोड़ने के मर्दों के इकतरफा हक को मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया. याचिकाकर्ता फरहा फैज का कहना है, ‘’हम 70 साल से शिकंजे में फंसे हैं. औरतों ने हिम्मत दिखाई है. ऐसा कानून बने जिससे धर्म भी डिस्टर्ब न हो और सेकुलर सॉल्यूशन हो. कुरान में तीन तलाक नहीं है. कोर्ट से जो फैसला आएगा वो औरतों के हक में आएगा.’’
केंद्र सरकार तीन तलाक के खिलाफ
केंद्र सरकार ने भी तीन तलाक को रद्द करने की वकालत की है. सरकार की तरफ से कहा गया कि कोर्ट के आदेश के बाद अगर ज़रूरी हुआ तो सरकार इस मसले पर कानून भी लाएगी.
कोर्ट के मददगार की राय
वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने एमिकस क्यूरी यानी कोर्ट के मददगार की हैसियत से दलीलें रखीं. उन्होंने बताया कि तलाक-ए-बिद्दत की व्यवस्था मूल इस्लाम में नहीं है. 21 मुस्लिम देश इसे रद्द कर चुके हैं. इनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं.
मुस्लिम संगठनों की दलीलें
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने कोर्ट की कार्रवाई को धार्मिक मामले में दखल बताते हुए इसका विरोध किया. इन संगठनों ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में दी गई धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं को मानने की आज़ादी के खिलाफ बताया.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील शकील अहमद सैयद ने कहा, ‘’हम लोगों का कहना था कि 1937 के बाद से हम गवर्न हो रहे हैं. इसमें दखल नहीं होना चाहिए.’’
कोर्ट का जवाब
इसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 सिर्फ किसी धर्म के मौलिक और अनिवार्य हिस्से को संरक्षण देते हैं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बार-बार कहा कि ये बताया जाए कि कुरान में तीन तलाक का ज़िक्र है या नहीं.
एडवाइजरी जारी करने की पेशकश
कोर्ट से इस मामले में दखल न देने की मांग कर रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अदालती आदेश से बचने के लिए एडवाइजरी का दांव चला. बोर्ड ने कहा कि वो खुद लोगों को तीन तलाक से बचने की सलाह जारी करेगा.
जमीयत उलेमा ए हिंद के वकील शकील अहमद सैयद ने कहा, ‘’तलाक-ए-बिद्दत मंजूर नहीं है. पब्लिक को एजुकेट कर रहे हैं. पर्सनल लॉ बोर्ड कर रहा है. कत्ल से भी बड़ा जुर्म है एक बार में तीन तलाक देना.’’