नई दिल्ली: उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू देश के लोगों के लिए एक जाना-पहचाना नाम हैं. 68 साल के वेंकैया नायडू ने अपने चार दशक लंबे राजनीतिक करियर में बीजेपी संगठन से लेकर सरकार तक, कई अहम जिम्मेदारियां निभाई हैं और 2002 से 2004 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं.
वेंकैया नायडू का राजनैतिक करियर
वेंकैया नायडू का जन्म एक जुलाई 1949 को आंध्रप्रदेश के नेल्लौर में हुआ था. 1973-74 में वो आंध्र विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे. इमरजेंसी के दौरान वो जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े और जेल गये. साल 1978 और 1983 में आंध्र प्रदेश के नेल्लौर से विधायक चुने जाने के बाद वो पहली बार 1998 में राज्यसभा सांसद बने. 1988 से 1993 तक वो बीजेपी की आंध्र प्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी रहे.
70 के दशक में वेंकैया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और आरएसएस से जुड़े रहे थे, ज़ाहिर है सरकार और संघ में उनकी मज़बूत पैठ ने ही उपराष्ट्रपति पद के लिए मज़बूत दावेदारी पेश की.
21 दिन तक नायडू ने अहमदाबाद में किया था कैंप
वेंकैया नायडू स्वादिष्ट खाना खाने और खिलाने के शौकीन है. उनके घर पर अक्सर आंध्र के स्वादिष्ट भोजन की दावते होती है, 1995 में जब शंकर सिंह बघेला ने बगावत कर दी थी तब वेंकैया नायडू को अहमदाबाद भेज गया, लगातर 21 दिन तक नायडू ने अहमदाबाद में कैंप किया.
अटल सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे
वेंकैया नायडू 2000 से 2002 तक अटल सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे हैं. वो 2002 से 2004 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. ना सिर्फ वो इंग्लिश, हिंदी, तेलगू, तमिल तमाम भाषाएं जानते हैं, बल्कि पूरे देश में वो एक ऐसा जाना पहचाना चेहरा हैं. लगातार देखा गया है कि चाहे सरकार हो या पार्टी हो उसमें कोई भी तकनीकी विषय आता रहा है या कोई संकट आता रहा है तो वो लगातार ठीक प्रदर्शन करते रहे हैं.
सूचना प्रसारण और शहरी विकास मंत्री हैं नायडू
इससे पहले 27 मई 2014 से 5 जुलाई 2016 तक वो संसदीय कार्यमंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. मोदी सरकार में वेंकैया नायडू की भूमिका एक संकटमोचक की रही है. अपनी सियासी सूझबूझ के बल पर वेंकैया ने कई बार पार्टी और सरकार को संकट से निकालने में मदद की है.
एनडीए ने क्यों बनाया था उम्मीदवार?
दरअसल बीजेपी की रणनीति है कि उत्तर भारत से राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति दक्षिण भारत का हो, जिससे वहां भी कमल खिलाने का रास्ता आसान हो सके और इसके लिए वेंकैया नायडू से बेहतर और कोई नहीं हो सकता था. इसके अलावा उप राष्ट्रपति पद पर बैठनेवाला शख्स ऐसा हो जो राज्यसभा के सियासी समीकरण को संभाल सके, क्योंकि वहां पर बीजेपी कमज़ोर है.
उनके पास प्रशासनिक अनुभव भी है. राज्यसभा में छुपा नहीं हुआ है कि सियासी आंकड़ों के खेल में बीजेपी पीछे पड़ जाती है. ऐसे में उनका राजनीतिक कौशल और उनका कद्दावर व्यक्तित्व सदन चलाने में काम आ सकता है.