नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेदों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है. ये अनुच्छेद है 370 और 35 A. आइए दोनों के बारे में अलग-अलग जान लेते हैं.
अनुच्छेद 370 :-
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला ये प्रावधान लंबे अरसे से राजनीतिक विवाद के भी केंद्र में रहा है. ये एक अस्थायी अनुच्छेद है जिसे भारत में इस राज्य के विलय से जुड़ी विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में जोड़ा गया था.
सरल भाषा में समझें तो इस अनुच्छेद के मुताबिक संसद जम्मू-कश्मीर के लिए विदेश नीति, रक्षा, संचार और केंद्रीय सूची में आने वाले कुछ और मामलो में ही कानून बना सकती है. बाकी मामलों में संसद से बने कानून राज्य में तभी लागू होते हैं, जब उन्हें राज्य विधानसभा मंज़ूर करे.
अनुच्छेद 370 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ठुकरा चुका है. लेकिन हाल ही में उसने विजय लक्ष्मी झा नाम की महिला की याचिका पर नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थाई व्यवस्था थी. इसे खत्म करने के लिए संविधान संशोधन ज़रूरी नही है. ऐसा राष्ट्रपति के आदेश से किया जा सकता है. इस याचिका पर अगले महीने सुनवाई होगी.
अनुच्छेद 35A
अनुच्छेद 35A को मई 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के ज़रिए संविधान में जोड़ा गया. ये अनुच्छेद जम्मू कश्मीर विधान सभा को अधिकार देता है कि वो राज्य के स्थायी नागरिक की परिभाषा तय कर सके. इन्हीं नागरिकों को राज्य में संपत्ति रखने, सरकारी नौकरी पाने या विधानसभा चुनाव में वोट देने का हक मिलता है.
इसका नतीजा ये हुआ कि विभाजन के बाद जम्मू कश्मीर में बसे लाखों लोग वहां के स्थायी नागरिक नहीं माने जाते. वो वहां सरकारी नौकरी या कई ज़रूरी सरकारी सुविधाएं नहीं पा सकते. ये लोग लोकसभा चुनाव में वोट डाल सकते हैं. लेकिन राज्य में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं है.
इस अनुच्छेद के चलते जम्मू कश्मीर की स्थायी निवासी महिला अगर कश्मीर से बाहर के शख्स से शादी करती है, तो वो कई ज़रूरी अधिकार खो देती है. उसके बच्चों को स्थायी निवासी का सर्टिफिकेट नही मिलता. उन्हें माँ की संपत्ति पर हक नहीं मिलता. वो राज्य में रोजगार नहीं हासिल कर सकते.
35A को निरस्त करने की मांग करने वाली 2 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. ये याचिकाएं वी द सिटीजन और वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी एक्शन कमेटी नाम की संस्थाओं ने दाखिल की हैं. इनमें राज्य में बाहर से आकर बसे लोगों के अधिकार का मसला उठाया गया है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल हुई है. चारु वली खन्ना और सीमा राज़दान भार्गव नाम की महिलाओं ने गैर कश्मीरी से शादी करने के चलते होने वाले भेदभाव का मसला उठाया है. उन्होंने इसे सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का हनन बताया है. ऐसा इसलिए क्योंकि 35A के तहत गैर कश्मीरी से शादी करने वाले कश्मीरी पुरुष के बच्चों को स्थायी नागरिक का दर्जा और तमाम अधिकार मिलते हैं. जबकि राज्य के बाहर शादी करने वाली महिलाओं पर पाबंदी लगाई गई है.
इस याचिका पर 14 अगस्त को सुनवाई होनी है. केंद्र सरकार को इस पर जवाब देना है. सरकार को ये भी बताना है कि संसद में प्रस्ताव ला कर पास करवाए बिना संविधान में नया अनुच्छेद कैसे जोड़ दिया गया. कोर्ट से मांग की गई है कि वो इस आधार पर इस अनुच्छेद को तुरंत निरस्त कर दे.