Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2007 के गोरखपुर दंगा मामले का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से पटाक्षेप किए जाने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ दोबारा याचिकाएं दायर करने के लिए परवेज परवाज (Parvez Parvaz) और अन्य पर बुधवार (22 फरवरी) को एक लाख रुपये का उदाहरणात्मक अर्थ दंड लगाया.


गोरखपुर (Gorakhpur) में 27 जनवरी, 2007 के दौरान मुहर्रम के एक जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच झड़प में एक हिंदू युवक की मृत्यु हो गई थी. स्थानीय पत्रकार परवाज ने 26 सितंबर, 2008 को एक मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने उस युवक की मौत का बदला लेने का भाषण दिया था और इस भाषण के उसके पास कई वीडियो हैं.


इसके बाद, राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से मना कर दिया था. आवेदक ने सरकार के इस निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में उसने हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसे शीर्ष अदालत ने भी खारिज कर दिया था. आवेदक ने 11 अक्टूबर, 2022 के निचली अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने गोरखपुर दंगा मामले में पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ दायर आपत्ति याचिका खारिज कर दी थी.


अर्थदंड जमा नहीं करने पर ऐसे होगी वसूली


न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने परवाज और अन्य की याचिका सीआरपीसी की धारा 482 (उच्च न्यायालय में निहित अधिकार) के तहत खारिज करते हुए एक लाख रुपये अर्थदंड लगाया और इसे सेना कल्याण कोष में चार सप्ताह के भीतर जमा करने का निर्देश दिया. यह अर्थदंड जमा नहीं करने पर इसकी वसूली याचिकाकर्ता की संपत्ति से भू राजस्व के बकाया के तौर पर की जाएगी.


अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता खुद कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहा है और वह 2007 से इस मामले को लड़ता रहा है. उसने निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी के लिए वकीलों पर भारी रकम खर्च की होगी.”


अदालत ने कहा- इस बात में दम है


अदालत ने कहा, “इस मुकदमे को लड़ने के लिए उसके संसाधन जांच का विषय होने चाहिए. अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल की इस बात में दम है कि प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ काम कर रही ताकतों की ओर से इसे खड़ा किया गया है जो प्रदेश और देश की प्रगति नहीं चाहती हैं.”


अदालत ने कहा, “इस पहलू की जांच करना राज्य पर निर्भर है. हालांकि यह अदालत आगे कुछ नहीं कहना चाहती और न ही इस संबंध में कोई निर्देश देना चाहती है.”


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