'आजादी के 75 साल बाद भी खत्म नहीं हुई जाति', जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्यों कही ये बात
Allahabad High Court: 2019 में आरोपी पति के खिलाफ पीड़िता लड़की के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई थी. दरअसल, लड़का अनुसूचित जाति से था और नाबालिग लड़की ओबीसी से आती थी.
Inter-Caste Marriage: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान देश में गहरी जड़ी जमा चुके जातिगत भेदभाव को लेकर सख्त टिप्पणी की. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने जातिगत भेदभाव को लेकर दुख जताते हुए कहा कि आजादी के 75 सालों बाद भी भारतीय समाज में जातीय संकट गहराता जा रहा है. उन्होंने कहा कि आज भी परिवार के लोग अन्य जातियों में शादी को स्वीकार नहीं करते हैं.
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने पीड़िता के पिता को अगली तारीख पर अदालत में हाजिर होने के निर्देश दिए है. इसके साथ ही इस मामले में किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है. अब इस मामले की सुनवाई 28 अप्रैल को होगी.
किस मामले पर हो रही थी सुनवाई?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने पीड़ित महिला और उसके आरोपी पति ने मिलकर एक याचिका दायर की थी. इसमें मांग की गई थी कि पति के खिलाफ आईपीसी के तहत किडनैपिंग, जबरन शादी करने और पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया जाए. जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने मामले का संज्ञान लेते हुए पाया कि पीड़ित लड़की के पिता अभी भी मामले में कार्रवाई चाह रहे हैं, क्योंकि उनकी लड़की ने अंतर्जातीय विवाह किया था. वो भी इस तथ्य को जानते हुए खुद लड़की ने आरोपी के साथ शादी की थी और अब वो एक बच्चे की मां भी है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि यह मामला हमारे समाज के स्याह चेहरे की साफ झलक है. जहां परिवार आज भी बेटी या बेटे के अंतर्जातीय विवाह पर शर्म करते हैं. इस मामले में पीड़ित लड़की अन्य पिछड़ा वर्ग से आती है और आरोपी लड़का अनुसूचित जाति से आता है. इन्होंने कम उम्र में शादी का फैसला किया, जिससे अब उनका एक बेटा भी है. इसके बावजूद याचिकाकर्ता को ट्रायल झेलना पड़ रहा है.
क्या था पूरा मामला?
2019 में आरोपी पति के खिलाफ पीड़िता लड़की के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई थी. जिसमें कथित तौर पर कहा गया था कि उसकी नाबालिग बेटी को जबरन आरोपी अपने साथ ले गया. कुछ समय बाद पीड़िता ने आरोपी के साथ शादी कर ली. इसी वजह से अब महिला ने आरोपी पति के खिलाफ मामले को खारिज करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस मामले में केवल एक ही कानूनी पेंच है कि घटना के समय लड़की की उम्र 17 साल थी. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लड़की के पिता को अपनी बेटी के भविष्य के लिए मामला वापस ले लेना चाहिए. बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के मफत लाल बनाम राजस्थान सरकार के फैसले को मद्देनजर रखा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किडनैपिंग को लेकर कहा था कि जब अपहरण कर जबरन शादी के लिए दबाव बनाया जाए, तभी ये धारा लगाई जा सकती है.
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