Allahabad High Court: 'नाबालिग के साथ लिव-इन रिलेशनशिप अमान्य', कोर्ट ने कहा- ऐसा रिश्ता कानून और समाज के खिलाफ
Allahabad HC on Live-in Relation: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि किसी नाबालिग लड़के या लकड़ी के साथ लिव-इन में रहना चाइल्ड प्रटेक्शन एक्ट के तहत अपराध है.
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Live-in Relationship News: अगर किसी लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल में एक पार्टनर नाबालिग है तो रिश्ते को वैध नहीं माना जाएगा और न ही वह संरक्षण के दायरे में आते हैं. इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और कहा कि यह रिश्ता कानून और समाज के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ बालिगों को ही लिव-इन में रहने की इजाजत है.
जस्टिस वीके बिरला और जस्टिस राजेंद्र की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. कोर्ट में कपल ने याचिका दायर कर एक एफआईआर खारिज करने की मांग की थी, एफआईआर में किडनैपिंग की शिकायत की गई है. कोर्ट ने कहा कि बालिग महिला का नाबालिग द्वारा अपहरण अपराध है या नहीं, इसका फैसला जांच के बाद ही किया जाएगा.
कोर्ट ने कहा, नाबालिग के साथ लिव-इन रिलेशन अपराध
कोर्ट ने कहा कि किसी नाबालिग लड़के या लड़की के साथ लिव-इन में रहना चाइल्ड प्रटेक्शन एक्ट के तहत अपराध है. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर कपल को राहत नहीं दी जा सकती कि वे एक लिव-इन रिलेशनशिप में हैं. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आर्टिकल 226 के तहत हस्तक्षेप करने के लिए यह केस फिट नहीं है.
कोर्ट ने खारिज की याचिका
इस मामले में बालिग और नाबालिग लिव-इन कपल ने याचिका दाखिल की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि वह 19 साल की है और अपनी मर्जी से लिव-इन में रह रही और आगे भी उसके साथ ही रहना चाहती है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं में से एक नाबालिग है और अगर कोर्ट इसकी अनुमति देता है तो यह गैरकानूनी क्रियाकलापों का बढ़ावा देने जैसा होगा. कोर्ट ने कहा कि कपल में से एक नाबालिग है, जिसकी उम्र 18 साल से कम है. ऐसी स्थिति में ऐसे रिश्ते रखना कानून के खिलाफ है और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है.
कोर्ट ने कहा, मुस्लिम लॉ में लिव-इन रिलेशन की इजाजत नहीं
याचिकर्ताओं में एक मुस्लिम भी है. बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मुस्लिम कानून में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए इजाजत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि कानून कहता है कि अगर आप धर्म परिवर्तन किए बिना किसी के साथ लिव-इन में रहे हैं तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि कानून के सेक्शन 125 के तहत सिर्फ तलाकशुदा को ही गुजारे भत्ते की मांग का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि जब मुस्लिम लॉ में लिव-इन मैरिज का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है तो पीड़ित सेक्शन 125 के तहत लाभ का भी हकदार नहीं है.
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