Live-In Relationship: 'रीति-रिवाज में बने कानून भी वैलिड', इस्लाम का हवाला देकर कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर सुनाया बड़ा फैसला, जानें जजों ने क्या कहा
Allahabad High Court News: अदालत ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर नियम तब अलग होते, जब याचिकाकर्ता शादीशुदा नहीं होते, लेकिन शादीशुदा होने की वजह से हालात कुछ और हो चुके हैं.
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाल ही में मुस्लिम व्यक्ति के लिव-इन रिलेशनशिप अधिकार को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा है कि मुस्लिम व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकार का दावा नहीं कर सकता, खासकर तब जब उसका जीवनसाथी अभी जीवित हो. कोर्ट ने कहा कि इस्लाम के नियमों के तहत इस तरह के रिश्ते की इजाजत नहीं है.
लिव-इन रिलेशनशिप के मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब दोनों लोग अविवाहित हों. दोनों ही पक्ष बालिग भी हों और वे अपने तरीके से अपना जीवन जीने का फैसला करते हैं. ऐसे हालात में अधिकारों को लेकर हालात बदल सकते हैं. जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस एके श्रीवास्तव की पीठ स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान की एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, स्नेहा के माता-पिता ने शादाब के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज करवाया है. ऐसे में इस जोड़े ने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए पुलिस कार्रवाई से सुरक्षा की मांग की है. स्नेहा और शादाब का कहना है कि वे दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. मगर स्नेहा के पैरेंट्स ने शादाब पर किडनैपिंग करने और उसे शादी के लिए बहलाने-फुसलाने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्हें अपने जीवन और आजादी की सुरक्षा दी जानी चाहिए. उनका कहना है कि वे वयस्क हैं और सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक उनके पास लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की पूरी आजादी है. हालांकि, जब मामले की जांच की गई तो पता चला कि शादाब की 2020 में फरीदा खातून नाम की महिला से शादी हुई थी. दोनों का एक बच्चा भी है.
शादीशुदा व्यक्ति को लिव-इन रिलेशनशिप का अधिकार नहीं: कोर्ट
पीटीआई के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया कि स्नेहा देवी को सुरक्षा के बीच उसके माता-पिता के पास भेजा जाए. कोर्ट ने कहा, "इस्लाम के नियम शादीशुदा रहने के दौरान लिव-इन रिलेशनशिप की इजाजत नहीं देते हैं. हालात कुछ और हो सकते हैं, अगर दो लोग अविवाहित और बालिग हैं. फिर दोनों अपने-अपने तरीके से जीवन जीने का फैसला करते हैं."
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, "रीति-रिवाज और प्रथाएं संविधान द्वारा जो कानून बनाए गए उनके समान ही हैं. इन्हें एक समान मान्यता प्राप्त कानून माना जाता है. एक बार जब हमारे संविधान के ढांचे के भीतर रीति-रिवाजों और प्रथाओं से जुड़े कानूनों एक वैध कानून के तौर पर मान्यता मिल जाती है, तो ऐसे कानून को भी उचित मामले में लागू किया जा सकता है."
कोर्ट ने स्नेहा को माता-पिता के पास लौटने को कहा
अदालत ने कहा कि अपहरण को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका असल में हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष के बीच बीच लिव-इन रिलेशनशिप को वैध बनाने की मांग कर रही है. कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों अविवाहित और बालिग हैं तो हालात कुछ और होते. ऐसे में पत्नी के अधिकारों के साथ-साथ बच्चे के हित को देखते हुए लिव-इन रिलेशनशिप को जारी नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता स्नेहा को उसके माता-पिता के पास लौटाने का निर्देश दिया.
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