ट्रांसजेंडर्स से भेदभाव का आरोप गलत, कर सकते हैं शिकायतकर्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई : एयर इंडिया
15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे सेक्स का दर्ज़ा दिया था. कोर्ट ने हर सरकारी फॉर्म में स्त्री और पुरुष के अलावा तीसरे लिंग का भी कॉलम रखने को कहा था. साथ ही, ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक रूप से पिछड़ा मानते हुए शिक्षा और नौकरी में ओबीसी श्रेणी के तहत 0.5 फीसदी आरक्षण देने को भी कहा था.
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नई दिल्ली: आपने ट्रांसजेंडर को केबिन क्रू की नौकरी क्यों नहीं दी? क्या लिंग के आधार पर भेदभाव आपकी पॉलिसी है? सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसवुमेन शानवी पोनुसामी की याचिका पर पिछले साल एयर इंडिया से ये सवाल पूछा था. अब एयर इंडिया ने कहा है कि शानवी की शिकायत झूठी है. उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.
क्या है मामला? इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाली चेन्नई की शानवी पोनुसामी ने एयर इंडिया में एयर होस्टेस के पद के लिए आवेदन किया था. लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. उनका आरोप है कि वो ट्रांसजेंडर होने के चलते उन्हें नहीं चुना गया. उनसे कहा गया कि केबिन क्रू की नौकरी में तीसरे लिंग की श्रेणी नहीं बनाई गई है.
शानवी के मुताबिक उन्होंने इस नौकरी के लिए 4 बार कोशिश की. हर बार परीक्षा में अच्छे अंक मिले. लेकिन उन्हें नौकरी नहीं दी गई. उन्होंने 2 साल से ज़्यादा समय तक नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर इंडिया के चक्कर लगाए. लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी.
सुप्रीम कोर्ट किन्नरों को आरक्षण देने को कह चुका है 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे सेक्स का दर्ज़ा दिया था. कोर्ट ने हर सरकारी फॉर्म में स्त्री और पुरुष के अलावा तीसरे लिंग का भी कॉलम रखने को कहा था. साथ ही, ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक रूप से पिछड़ा मानते हुए शिक्षा और नौकरी में ओबीसी श्रेणी के तहत 0.5 फीसदी आरक्षण देने को भी कहा था. शानवी ने अपनी याचिका में इस फैसले का भी हवाला दिया है.
एयर इंडिया का जवाब एयर इंडिया ने शानवी के दावे को पूरी तरह से गलत बताया है. उसका कहना है कि वो लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता. जिस पद के लिए हुई परीक्षा के बात की जा रही है, वो सीधे उसकी तरफ से नहीं ली गयी थी. उसके लिए बाहर की रिक्रूटमेंट कंपनी की मदद ली गयी थी. शानवी एयर होस्टेस के लिए तय पैमानों पर असफल साबित हुई. इसका उनके लिंग से कोई संबंध नहीं है. उनके महिला होने या ट्रांसवुमेन होने को लेकर कोई सवाल कभी पूछा ही नहीं गया.
कानूनी कार्रवाई पर विचार एयर इंडिया ने कहा है कि शानवी की याचिका दरअसल दबाव बना कर नौकरी हासिल करने की कोशिश है. सुप्रीम कोर्ट को उनकी याचिका खारिज कर देनी चाहिए. एयरलाइंस ने ये भी कहा है कि इस झूठी याचिका से उसकी दुनिया भर में बदनामी हुई है. इसलिए वो याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने शानवी को एयर इंडिया के हलफनामे पर जवाब देने के लिए 1 हफ्ते का समय दिया है. अगले सोमवार को मामले पर दोबारा सुनवाई होगी.
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