महाराष्ट्र में अजित पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का एक धड़ा सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो गया है. विपक्ष ने बीजेपी पर इस फूट का आरोप लगाया है. कहा ये भी जा रहा है कि बीजेपी ने 2024 से पहले अपने फायदे के लिए पार्टी को तोड़ दिया है.  


बता दें कि दो जुलाई को अजित के साथ उनके नौ विधायकों ने शपथ ली. इनमें से कुछ कथित अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं. 


हालांकि इस तरह का गठबंधन पिछले कुछ सालों में एनसीपी की 'मराठा-प्रभुत्व' वाली राजनीति का मुकाबला करने के लिए एक नैरेटिव बनाने की बीजेपी की कोशिश के रूप में भी देखी जा रही है. ये भी माना जा रहा है कि बीजेपी उन नेताओं को भी बढ़ावा देना चाहती है जो एनसीपी के बड़े नेताओं का मुकाबला कर सकते हैं.


बीजेपी ने शुरू से एनसीपी की मराठा-वर्चस्व वाली राजनीति के जवाब में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं को तैयार किया है. यह बीजेपी के पूर्व महासचिव वसंतराव भागवत के बनाए 'माधव फॉर्मूले' (मालियों, धनगरों और वंजारियों के लिए) का हिस्सा रहा है. जिन्होंने 1980 के दशक में गोपीनाथ मुंडे (वंजारी समुदाय), एनएस फरांडे (माली) और अन्ना डांगे (धनगर) जैसे ओबीसी नेताओं की एक पीढ़ी तैयार की थी. इस सोशल इंजीनियरिंग ने बीजेपी के लिए ब्राह्मणों और बनियों जैसे उच्च जातियों के प्रभुत्व वाली पार्टी को छोटी जातियों से जोड़ने में मदद की.


इसका एक उदाहरण एमएलसी और धनगर (चरवाहा) समुदाय के नेता गोपीचंद पडलकर हैं जिन्हें बीजेपी ने पवार परिवार के खिलाफ आगे बढ़ाया है. महाराष्ट्र में धनगर समुदाय में कृषक और पशुपालक दोनों शामिल हैं. इसे मराठा समुदाय के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाली जाति माना जाता है. 


2019 में पूर्व लोकसभा सांसद और डॉ. बीआर अंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाले मंच वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के पूर्व नेता पडलकर ने बारामती विधानसभा क्षेत्र से अजित के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन बड़े अंतर से हार गए थे. पडालकर को पवार परिवार पर उनके व्यक्तिगत और तीखे हमलों के लिए भी जाना जाता था. उन्हें 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अजित के खिलाफ एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा था. 


बारामती लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले करती हैं. 2014 में बीजेपी की सहयोगी राष्ट्रीय समाज पार्टी के महादेव जानकर की चुनौती के कारण सुले की जीत का अंतर घटकर 70,000 से अधिक वोटों पर आ गया था. जानकर धनगर समुदाय से आते हैं. 


सुप्रिया के खिलाफ अजित के बेटे पार्थ को मैदान में उतार सकती है बीजेपी


इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बीजेपी ने सुले से बारामती सीट छीनने के लिए पहले ही कमर कस ली थी, और अब सुले के खिलाफ अजित के बड़े बेटे पार्थ को मैदान में उतार सकती है. वहीं इस घटनाक्रम से बीजेपी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का भी मोहभंग हो सकता है, जिन्होंने सालों से एनसीपी नेताओं का मुकाबला किया है. 


बीजेपी नेताओं और अजित टीम में पहले से है मतभेद 


अजित के साथ पद की शपथ लेने वाले एनसीपी के हसन मुशरिफ को कोल्हापुर में अपने निर्वाचन क्षेत्र कागल में बीजेपी से कड़ी चुनौती मिलती रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से कोल्हापुर जिले के कागल तालुका में हसन मुशरिफ और समरजीत घाटगे के बीच खींचतान तेज हो गई है. समरजीत घाटगे बीजेपी से हैं. वो कागल के पूर्व शाही परिवार के वंशज और पूर्व विधायक विक्रमजीत सिंह घाडगे के बेटे भी हैं. 


मुशरिफ मराठों के प्रभुत्व वाली सीट से निर्वाचित हुए थे और मनी लॉन्ड्रिंग के कथित मामलों में ईडी की जांच का सामना कर रहे थे. 


इसी साल फरवरी में एनसीपी नेता हसन मुशरिफ के खिलाफ 40 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था. इसके बाद उनके समर्थकों ने मुरगुड पुलिस थाने के पास प्रदर्शन किया. समर्थकों का आरोप था कि यह मामला मुशरिफ के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी समरजीत घाटगे के इशारे पर दर्ज किया गया था. 


घटना के बाद कोल्हापुर में एक संवाददाता सम्मेलन में बीजेपी ग्रामीण जिला अध्यक्ष समरजीत घाटगे ने कहा था, 'मुशरिफ ने 2012 में गांवों का दौरा किया और सांताजी घोरपड़े चीनी कारखाने के निर्माण के लिए किसानों को 40,000 रुपये इकट्ठा किए. लेकिन जब चीनी कारखाने के बारे में सारी जानकारी निकाली गई तो पता चला कि चीनी कारखाने के मालिक मुशरिफ परिवार के कुल 17 लोग ही हैं.  मैं इन 40,000 किसानों से अपील करता हूं, जिनके साथ धोखा हुआ है, वे आगे आएं और एनसीपी (रकांपा) नेता के खिलाफ शिकायत करें'.


बीजेपी के सामने समीकरण साधने की चुनौती


इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक शरद पवार के एक करीबी ने बताया कि बीजेपी में ऐसे कई नेता हैं जिनका एनसीपी नेताओं के साथ आपसी मतभेद है. इन आपसी मतभेद को दूर करने के लिए बीजेपी गणित बिठाएगी, लेकिन जरूरी नहीं है कि चीजें खुद बीजेपी की पक्ष में और एनसीपी के इन बागियों के लिए काम  कर जाएं. मौजूदा समय में मुशरिफ जैसे एनसीपी नेताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी के कड़े विरोध का सामना करना पड़ता रहा है. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि कार्रवाई और प्रतिक्रिया की यह राजनीति कैसे चलती है.


अजित पवार के बीजेपी नेताओं के साथ संबध पर भी सवाल 


अजित के राज्यसभा सांसद और सतारा शाही परिवार के वंशज छत्रपति उदयनराजे भोसले जैसे नेताओं से भी बेहतर संबध नहीं हैं. बता दें कि  बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने उदयनराजे भोसले को 1998 में बीजेपी में लाए थे. 


बताया जाता है कि अजित के साथ शपथ लेने वाले नौ विधायकों में से कम से कम तीन की गर्दन पर ईडी की तलवार है. अजित के अलावा मुशरिफ, छगन भुजबल और रायगढ़-रत्नागिरी के सांसद सुनील तटकरे भी एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल में शामिल हैं. सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे को भी एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. 


किसान केंद्रीय मंत्री और एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ईडी की जांच के दायरे में बताए जा रहे हैं. ईडी का शिकंजा पहले ही कई सवालों को जन्म दे रहा है कि बीजेपी को समर्थन देने के बदले में एनसीपी नेताओं के खिलाफ मामलों को क्या खत्म किया जाएगा.


संयोग से पिछले महीने के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीपी पर भ्रष्टाचार को लेकर बयान भी दिया था. पीएम मोदी ने सिंचाई परियोजनाओं  को लेकर एनसीपी पर भ्रष्टाचार का इशारा किया था.  


जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने अगले साल लोकसभा चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र में एक कोशिश की है.  ये गठबंधन करके बीजेपी ऐसे नेता तैयार करना चाहती है जो एनसीपी के बड़े नेताओं को चुनौती दे सकें. बीजेपी 'मराठा-प्रभुत्व' वाली राजनीति को भी चुनौती देना चाह रही है. 


वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने एबीपी न्यूज को फोन पर बताया कि इससे बीजेपी का 2024 का प्रयोग तभी सफल होगा जब शरद पवार हार मान लेते हैं. जो मुमकिन नहीं है. जो बात शरद पवार में है वो अजित पवार में नहीं है. शरद पवार ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी जिससे पूरे मराठी समाज में हाहाकार मच गया था. साफ है कि ऐसा दबदबा अजित पवार के पास नहीं है.


ओम सैनी का मानना है कि अगर बीजेपी मराठा प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अजित पवार को अपने साथ लाई है तो उसे एक बार फिर से सोचने की जरूरत है. मराठा प्रभुत्व में बीजेपी तब तक प्रवेश नहीं कर सकती जब तक वो वहां के किसान और कॉपरेटिव ऑरगेनाइजेशन खासतौर से चीनी मीलों में अपनी पकड़ न बना ले.  फिलहाल महाराष्ट्र की चीनी की मीलें शरद पवार की बुनियाद हैं. 


सैनी का मानना है कि दूसरी तरफ जो नेता अजित पवार के साथ बीजेपी में आए हैं उनका पार्टी में रहना भी मुश्किल हो सकता है क्योंकि दोनों पार्टी के अलग-अलग नेताओं की एक दूसरे से नहीं बनती है. 2024 के लोकसभा चुनाव आने तक स्थिति कैसी रहेगी अभी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. लेकिन इतना जरूर है कि पार्टी में आपसी कलह जरूर पैदा हो सकती है. लेकिन इसे भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि बीजेपी चुनावी प्रयोगशाला है जो हर कदम सोच समझ कर ही उठाती है.


वहीं एक और वरिष्ठ पत्रकार आर राजगोपलन ने बताया कि बीजेपी ने एक झटके में 2019 अपना "बदला" पूरा कर लिया है. जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एनडीए से शिवसेना को अलग कर और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार बनाई थी. इससे बीजेपी को बड़ा झटका लगा था. बीजेपी ने अब महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव  के लिए अपना रास्ता साफ करने की एक शुरुआत कर दी है. एनसीपी की वजह से बीजेपी को महाराष्ट्र में नेतृत्व की कमी थी जिसे बीजेपी ने पूरा कर लिया है.  


राजगोपालन ने बताया कि  ' एक वरिष्ठ नेता ये कह रहे थे कि अजित पवार के साथ 29 जून रात को शाह की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दोनों मौजूद थे. इसके बाद अजित पवार को दूसरा मौका देने का फैसला किया गया, जो 2019 में एनसीपी विधायकों को बीजेपी में लाने में नाकाम रहे थे. यह सब 2024 की रणनीति का हिस्सा है. बीजेपी ने अजित पवार को साथ लाकर सीएम एकनाथ शिंदे और अजित पवार को बराबरी पर या एक साथ खड़ा कर दिया है. जो 2024 में बीजेपी के पक्ष में जा सकता है.