मुंबई: महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार किसानों की लगभग सभी मांगें मानने पर सहमत हो गई है. पिछले कई दिनों से मांगों को लेकर हजारों किसान मुंबई पहुंचे थे. उन्होंने कहा कि सरकार उन जमीन का मालिकाना हक आदिवासी किसानों को सौंपने के लिए एक समिति का गठन करेगी जो वर्तमान में जंगल के तौर पर अधिसूचित हैं. बहुत लंबे मार्च में शामिल किसानों और आदिवासियों की मुख्य मांगों में से एक मांग यह भी थी.
सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने मीडिया से कहा, "कृषि उपयोग में लाई जाने वाली वन भूमि आदिवासियों और किसानों को सौंपने के लिए हम समिति बनाने पर सहमत हो गए हैं. विधान भवन में किसानों और आदिवासियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई. हम कृषि भूमि आदिवासियों को सौंपने के लिए समिति बनाने पर सहमत हो गए हैं बशर्ते कि वो 2005 से पहले जमीन पर कृषि करने के सबूत मुहैया कराएं. हमने उनकी लगभग सभी मांगें मान ली हैं."
इससे पहले फडणवीस ने कहा था कि उनकी सरकार किसानों के मुद्दे के प्रति "संवेदनशील और सकारात्मक" है. उन्होंने कहा कि ये आवेदन (इस तरह की जमीन के आवंटन) छह महीने में मंजूर कर लिए जाएंगे. उन्होंने कहा, "प्रदर्शनकारियों की मांगों पर चर्चा करने के लिए एक मंत्रिमंडलीय समिति का गठन किया गया है. हम उनकी मांगों को समयबद्ध तरीके से हल करने का निर्णय करेंगे."
राज्य के आदिवासी विभाग के अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की वन भूमि 3.45 लाख हेक्टेयर है और उनके मालिकाना हक के लिए किसानों की तरफ से एक लाख से अधिक आवेदन मिले हैं.
फडणवीस ने कहा, "हम नर पर तापी नर्मदा और दमनगंगा- पिंजाल नदी जोड़ने की परियोजना को भी प्रभावी तरीके से लागू करने पर सहमत हो गए हैं. इनके माध्यम से उत्तर महाराष्ट्र के जिलों को सिंचाई के लिए अतिरिक्त पानी मिलेगा."
उन्होंने कहा, "स्वामीनाथन आयोग का गठन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय हुआ था और इन्होंने अपनी रिपोर्ट केंद्र को तब सौंपी जब कांग्रेस नीत संप्रग सरकार सत्ता में थी. उन्होंने (संप्रग) कुछ नहीं किया लेकिन हमने मांगो को स्वीकार कर लिया है. हम इसे लागू करेंगे."
माकपा से जुड़ा संगठन अखिल भारतीय किसान सभा प्रदर्शन की अगुवाई में हुआ. किसानों ने बिना शर्त ऋण माफ करने और वन भूमि उन आदिवासी किसानों को सौंपने की मांग की है जो सालों से इस पर खेती कर रहे हैं.
माकपा नेता अशोक धावले ने कहा कि किसान स्वामीनाथन समिति की अनुशंसा को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं. जिसमें कृषि लागत मूल्यों से डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की अनुशंसा की है.