नई दिल्ली: अमरनाथ यात्रा का आयोजन रोकने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यात्रा का आयोजन और उसके दौरान बरती जाने वाली सावधानियों पर फैसला लेना प्रशासन का काम है. श्री अमरनाथ बर्फानी लंगर ऑर्गेनाइजेशन नाम की संस्था ने कोरोना के मद्देनजर यात्रा में श्रद्धालुओं को शामिल होने से रोकने की मांग की थी.


याचिका में कहा गया था कि इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि 20 जुलाई के बाद यात्रा शुरू की जा सकती है. यात्रा के लिए उपलब्ध 2 रास्तों में लंबे पहलगाम के रास्ते का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. सिर्फ 14 किमी लंबे बालटाल के रास्ते यात्रा की अनुमति दी जाएगी. इसकी भी इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यात्रा के दौरान न सिर्फ देशभर से श्रद्धालु वहां आएंगे, बल्कि बड़ी संख्या में घोड़े-टट्टू वाले, सामान उठाने वाले और लंगर चलाने वाले लोग भी वहां पहुंचेंगे. इससे कोरोना की बीमारी फैलने का अंदेशा बढ़ जाएगा.


मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, के एम जोसेफ और इंदु मल्होत्रा की बेंच याचिका से आश्वस्त नहीं हुई. जजों ने कहा, "हमारे पास यह मान लेने का कोई आधार नहीं है कि सरकार को लोगों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है. यात्रा का आयोजन हो या नहीं और उस दौरान क्या सावधानियां बरती जाएं, यह देखना प्रशासन का काम है. हम यह भूमिका अपने हाथों में ले लेने की कोई वजह नहीं समझते."


याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा मामले में कोर्ट कि तरफ से अपनाए गए रुख का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि पहले कोर्ट ने यात्रा को अनुमति देने से मना कर दिया था. बाद में बिना श्रद्धालुओं के यात्रा के आयोजन का आदेश दिया. उसी तरह इस मामले में भी श्रद्धालुओं को यात्रा में आने से रोक कर उन्हें टीवी और इंटरनेट के जरिए बाबा अमरनाथ की पूजा के लाइव दर्शन करवाने चाहिए.


इस पर कोर्ट ने कहा, "जब ओडिशा सरकार ने यह दलील दी कि यात्रा के आयोजन से लोगों की भीड़ उमड़ पड़ेगी, तब कोर्ट ने यात्रा पर रोक लगाई. बाद में सरकार ने ही कहा कि भीड़ को रोककर यात्रा आयोजित करने दी जाए. धार्मिक रीति रिवाज बिना किसी बाधा के चले और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा भी हो, इसका ध्यान सरकार रखेगी. तब कोर्ट ने सरकार की तरफ से रखे गए सुझावों को मानते हुए अनुमति दे दी. इस मामले में भी जो फैसला लेना है वह सरकार को लेना है. हम इस वक्त मामले में किसी भी तरह का दखल देना जरूरी नहीं समझते."


जजों ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि कोरोना से बचाव को लेकर सोशल डिस्टेंसिंग समेत तमाम दिशानिर्देश केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी किए हैं. इस समय जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है. उस पर गृह मंत्रालय का नियंत्रण है. ऐसे में अदालत को मामले में अपनी तरफ से कोई आदेश देने की जरूरत नहीं लगती. स्थानीय परिस्थितियों और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की समीक्षा करते हुए प्रशासन यात्रा के आयोजन को लेकर फैसला ले. अगर इसका आयोजन किया जाता है तो स्वास्थ्य संबंधी सभी दिशानिर्देशों का पालन किया जाए.


कोर्ट ने यात्रा के दौरान लंगर का आयोजन करने वाली एक संस्था की तरफ से याचिका दाखिल किए जाने पर भी सवाल उठाए. जजों ने कहा, "यह संस्था लुधियाना की है. यात्रा का आयोजन किया जाता है तो इससे उसका कोई अधिकार बाधित नहीं हो रहा है. अगर वह चाहे तो लंगर का आयोजन न करे, दूसरे लोग वहां लंगर चला लेंगे."


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