लोकसभा में पेश हुआ प्रमुख हवाई अड्डों की परिभाषा तय करने के लिए संशोधन बिल, छोटे हवाई अड्डों को मिलेगा फ़ायदा
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ मेज़र एयरपोर्ट ऐसे एयरपोर्ट को कहते हैं जहां सालाना साढ़े तीन लाख यात्रियों या इससे ज़्यादा यात्रियों का आवागमन होता हो या फिर वो एयरपोर्ट इतने ही यात्रियों के लिए अधिकृत हो.
नई दिल्ली: केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आज लोकसभा में द एयरपोर्ट एकनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (संशोधन) बिल 2001 पेश किया. सरकार एक्ट में इस संशोधन के माध्यम से प्रमुख हवाई अड्डों की परिभाषा में बदलाव करना चाहती है. मौजूदा क़ानून अस्पष्ट है और नए बन रहे छोटे एयरपोर्टों के लिए अपर्याप्त है.
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ मेज़र एयरपोर्ट ऐसे एयरपोर्ट को कहते हैं जहां सालाना साढ़े तीन लाख यात्रियों या इससे ज़्यादा यात्रियों का आवागमन होता हो या फिर वो एयरपोर्ट इतने ही यात्रियों के लिए अधिकृत हो. इस एक्ट में एयरपोर्टों के समूह के लिए टैरिफ़ निर्धारण के नियम स्पष्ट नहीं किए गए हैं. जब ये एक्ट बना था तब देश में सिर्फ़ सरकारी एयरपोर्ट होते थे जबकि अब बड़े पैमाने पर पब्लिक-प्राईवेट पार्ट्नर्शिप में एयरपोर्टों का निर्माण और परिचालन का काम हो रहा है.
अब दो तरह के एयरपोर्ट होंगे
सरकार ने सभी एयरपोर्टों को दो अलग-अलग ग्रुपों में रखने का फ़ैसला किया है- 1. प्रॉफ़िटेबल एयरपोर्ट और 2. नॉन-प्रॉफ़िटेबल एयरपोर्ट. इससे सम्भावित प्राईवेट पार्टनर को जोड़ने में पारदर्शिता आएगी.
बिल में संशोधन से एयरोनोटिकल चार्जेज़ वसूलने में पारदर्शिता आएगी
द एयरपोर्ट एकनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया मेज़र एयरपोर्टों पर एयरोनोटिकल चार्जेज़ तय करती है. एयरोनोटिकल चार्जेज़ के अंतर्गत हवाई जहाज़ की पार्किंग, लैंडिंग, टेक ऑफ़ इत्यादि कई तरह के शुल्क आते हैं.
एयर लाइंस के टैरिफ़ निर्धारण में भी आसानी होगी
‘उड़े देश का आम आदमी’ यानी उड़ान योजना और रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत देश भर में छोटे शहरों और दुर्गम क्षेत्रों को हवाई यात्रा से जोड़ने के लिए छोटे एयरपोर्ट और हेलीपैड बनाए जा रहे हैं. इसके तहत अब तक 70 छोटे एयरपोर्ट, जिनमें हेलीपैड भी हैं, बनाए जा रहे हैं. इनमें से कुछ पर हवाई सेवा शुरू हो चुकी है. ऐसे में सिविल एवीशन मंत्रालय के अनुसार बड़े एयर पोर्ट और छोटे एयर पोर्ट की परिभाषा तय किए जाने की ज़रूरत है. इससे छोटे एयरपोर्टों के निर्माण के दफ़्तरी कामकाज में आसानी होगी. ख़ास तौर से बड़े और प्रमुख एयरपोर्ट की परिभाषा तय हो जाने से सभी प्रकार के एयरपोर्ट के टैरिफ़ निर्धारण में स्पष्टता और पारदर्शिता आ जाएगी. इससे अंततः उड़ान के अंतर्गत यात्री किरायों को न्यूनतम रखने के लिए पर्याप्त आधार भी स्पष्ट हो सकेंगे.