US-China Conflict: ताइवान को लेकर जंग की दहलीज पर खड़े अमेरिका और चीन, दुनिया के लिए खतरे की घंटी क्यों?
America and China Conflict: चीन-अमेरिका के इस विवाद में दुनिया की दूसरी महाशक्तियों की भी एंट्री हो गई है, इससे ताइवान विवाद रूस-यूक्रेन जंग से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है.
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America and China Conflict: रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का खामियाजा पूरी दुनिया को किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ रहा है, वहीं अब दो महा शक्तियों के बीच बढ़ रही तनातनी दुनियाभर के लिए चिंता का सबब बन चुकी है. ताइवान पर चीन और अमेरिका की बढ़ती दुश्मनी ने दुनिया को एक और जंग के दरवाजे पर खड़ा कर दिया है. पिछले काफी दिनों से दोनों ही देशों में तनाव बढ़ा है. अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद भड़की आग शांत होने के बजाए और तेज होती जा रही है.
दरअसल पेलोसी की यात्रा के 12वें दिन अमेरिकी सांसदों के एक दल के ताइवान पहुंचने से चीन और भड़क गया है, लेकिन अब चीन-अमेरिका के इस विवाद में दुनिया की दूसरी महाशक्तियों की भी एंट्री हो गई है, इससे ताइवान विवाद रूस-यूक्रेन जंग से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है, आखिर क्यों, क्यों ताइवान पर जंग दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट साबित हो सकती है, आइए समझते हैं...
ताइवान की सीमा पर बारूद बरसा रहा चीन
नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से पहले चीन ने अमेरिका को कई धमकियां दीं, यहां तक कहा गया कि अमेरिका आग से खेलने की कोशिश ना करे. लेकिन अमेरिका पर इसका कुछ भी असर नहीं हुआ. पेलोसी ताइवान पहुंचीं और वहां से उन्होंने चीन को करारा जवाब भी दिया. इससे तिलमिलाए चीन ने ताइवान की सीमा पर युद्धाभ्यास शुरू कर दिया. इसके बाद चीन ताइवान के आसपास कितना बारूद बरसा चुका है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. लेकिन जिनपिंग की धमकियों और बारूदी बारिश के बावजूद अमेरिका वही कर रहा है जो उसे करना है.
ताइवान के इर्द-गिर्द चीन की नई घेराबंदी हो चुकी है, जो अमेरिकी सांसदों के दौरे के बाद शुरू हुई है, तिलमिलाया चीन इस आग के साथ-साथ धमकी वाला जहर भी उगल रहा है. चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि, चीन अपनी संप्रभुता और अखंडता के लिए प्रभावी कदम उठाएगा. कुछ अमेरिकी राजनेता ताइवान की अलगाववादी ताकतों के साथ मिलकर चीन की वन चाइना नीति को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ये उनके बस की बात नहीं हैं.
एक छोटी चिंगारी से छिड़ सकती है जंग
कुल मिलाकर ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका की तनातनी अब उस मुकाम पर पहुंच चुकी है, जहां एक छोटी सी चिंगारी भीषण जंग का सबब बन सकती है, ताइवान की घेराबंदी के नाम पर चीन ने जो हथियार और गोला बारूद मैदान में उतार दिया है, वो यही संकेत दे रहा है कि चीन की इरादे ठीक नहीं हैं. 14 अगस्त की रात अमेरिकी सांसदों का दल ताइवान पहुंचा और अगले ही दिन चीन की पूर्वी थिएटर कमांड ऐक्शन में आ गई, चीन के 5 युद्धपोतों ने ताइवान की समुद्री सीमा का उल्लंघन किया, फिर 30 लड़ाकू विमानों ने चीन से उड़ान भरी और वो भी ताइवान की सीमा में दाखिल हुए. चीन नैंसी पेलोसी के दौरा के बाद से ऐसी हरकत लगातार कर रहा है.
चीन और अमेरिका की तनातनी के कई कारण
ताइवान का विवाद पुराना है और कारण कई हैं, लेकिन इन दिनों जिनपिंग ने ताइवान के मुद्दे पर जो रुख अपना रखा है, वो पहले नहीं देखने को मिला, इसलिए इसे चीन की घरेलू राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. इसका एक कारण चुनाव को भी माना जा रहा है. जिनपिंग ने अपने दूसरे कार्यकाल में सभी राजनीतिक विरोधियों को किनारे लगा दिया, मीडिया पर सेंसरशिप का सहारा लेकर विरोध की हर आवाज को कुचल दिया, मकसद था तीसरा टर्म हासिल करना और रास्ते भी साफ थे, लेकिन चुनाव करीब आते उनकी गद्दी डगमगाने लगी.
बता दें कि जिनपिंग कई मुद्दों को लेकर घरेलू मोर्चे पर घिरे हुए हैं, इसलिए ये भी माना जा रहा है कि वो जनता का ध्यान बांटने के लिए ताइवान के खिलाफ कोई सैन्य एक्शन भी शुरू कर सकते हैं. लॉकडाउन में जनता पर जुल्म, कोरोना पर अंतरराष्ट्रीय छवि खराब, आर्थिक विकास सुस्त, बैंकों से निकासी पर रोक, रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे संकट, कोयला संकट, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर जिनपिंग बुरी तरह घिरे हुए हैं.
जंग हुई तो भुगतने होंगे गंभीर नतीजे
चुनाव को देखते हुए जिनपिंग ने ताइवान के खिलाफ अगर कोई सैन्य अभियान छेड़ा तो इसके गंभीर नतीजे को सकते हैं, क्योंकि ताइवान पर तनातनी भले ही चीन और अमेरिका की है, लेकिन इसमें दुनिया की कई महाशक्तियां कूद चुकी हैं. पुरानी कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इसी बुनियाद पर चीन और रूस कंधे से कंधा मिलाए खड़े हैं, क्योंकि यूक्रेन की जंग में जब अमेरिका और पूरा यूरोप रूस के खिलाफ है तो चीन रूस के साथ खड़ा है और अब इस दोस्ती बुनियाद ही अमेरिका से दुश्मनी पर टिक चुकी है. रूस ने अमेरिका को घेरते हुए कहा है कि, "ताइवान में अमेरिकी राजनयिक का दौरा किसी एक राजनेता का गैर जिम्मेदाराना कदम नहीं है, बल्कि ये दुनिया को अस्थिर करने की अमेरिकी की रणनीति का हिस्सा है."
चरमरा जाएगा इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का सिस्टम
हालांकि ऐसा नहीं है कि ताइवान पर सिर्फ रूस-चीन और अमेरिका में ही तनातनी है. अगर जंग के शोले भड़के तो कई देशों तक इसकी आंच पहुंचनी तय है. ऐसे में दुनिया दो खेमों में बंटेगी और एक तऱफ होंगे, चीन, रूस और ईरान जैसे देश और दूसरी ओर अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय देश होंगे. चीन और ताइवान दुनिया के इतने बड़े सप्लायर हैं कि अगर ये जंग में उलझे तो पूरी दुनिया की आयात निर्यात और सप्लाई का सिस्टम चरमरा जाएगा, ऐसे में बहुत से देशों के लिए तटस्थ रह पाना मुश्किल हो जाएगा, इसलिए ताइवान पर चीन अमेरिका की तनातनी को रूस-यूक्रेन की जंग से ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है.
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