नई तालिबानी सरकार के एलान के एक दिन बाद ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी बलिंकन और जर्मन विदेश मंत्री हेइको मास ने अफगानिस्तान पर चर्चा के लिए तमाम देशों के विदेश मंत्रियों के साथ विडियो कांफ्रेस पर बैठक की. गौरतलब है कि अमेरिकी और जर्मन विदेश मंत्री द्वारा बुलाई गई इस बैठक मे भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों सहित करीब 23 देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए. इस बैठक में चीन, रूस और ईरान के विदेश मंत्री शामिल नहीं हुए.


ABP News को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सबसे अहम बात ये कि इस बैठक में ज़्यादातर देशों का मानना था कि नई तालिबानी सरकार तालिबानी दावों के विपरीत व्यापक नहीं है. ये अपने आप में बड़ी बात है कि तमाम देशों के विदेश मंत्री तालिबानी सरकार को व्यापक नहीं मानते हैं.


हालांकि, सूत्रों के मुताबिक सभी देश अब ये देखना चाहते हैं कि आगे चल कर इस अंतरिम सरकार को स्थाई रूप देते वक्त तालिबान और पक्षों को भी शामिल कर सरकार को और व्यापक बनाता है या नहीं.


गौरतलब है कि भारत की तरफ से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बैठक में शिरकत की और बाद में ट्वीट करके कहा कि तालिबान को किए वायदे पूरे करने चाहिए और किसी भी आतंकी गुट द्वारा अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करे कबूल नहीं किया जाएगा. 


महत्वपूर्ण बात ये कि इस विडियो कांफ्रेस में तालिबानी सरकार के समर्थक पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी शामिल थे मगर अमेरिका से अपने मतभेदों की वजह से चीन, रूस और ईरान के विदेश मंत्री शामिल नहीं हुए.


बैठक में शामिल ज़्यादातर विदेश मंत्रियों के रूख से ये साफ दिखाई देता है कि दुनिया भर के तमाम देश जल्दिबाजी में तालिबान सरकार को मान्यता देने कि बजाय कुछ अरसे इंतजार करेंगे.


गौरतलब है कि सरकार गठन से पहले तालिबानी नेता पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला जैसे नेताओं से बात कर ये दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि तालिबान एक व्यापक सरकार बनाने का इरादा रखता है पर ऐसा फिलहाल हुआ नहीं.


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