नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत यात्रा के लिए एक खास मगर ज़रा अनोखे अतिथि बन रहे हैं. एक ऐसा मेहमान जो आने से पहले मेज़बान के आगे अपनी अपेक्षाओं का बड़ी बेबाकी से इज़हार करने में ज़रा भी नहीं हिचकते. मामला अपने स्वागत में आने वाले लोगों की संख्या का हो या फिर कारोबार के पेचीदा मुद्दे सुलझाने के लिए चल रही कवायद का, ट्रम्प न तो दिल की बात कहने में हिचकते हैं और न बात बदलने में ठिठकते हैं.
ज़ाहिर है ऐसे मेहमान की मेज़बानी में मेजबान की जान भी ज़रा हलकान रहती है. ट्विटर पर कई बार अपनी आज़ाद ख्याली के इज़हार से विवादों का बवंडर खड़ा कर चुके ट्रम्प के साथ इस बात की जोखिम बनी रहती है कि वो कभी भी खीर में नींबू निचोड़ सकते हैं. हालांकि भारत के लिए संतोष की बात रही है कि एक गैर पारंपरिक और लीक से हटकर अक्खड़ राजनीति के खिलाड़ी साबित हुए ट्रम्प के साथ सम्बंध साधने में वो अब तक कामयाब साबित हुआ है.
इस बीच खास मेहमान ट्रम्प की स्वागत व्यवस्था में लगे लोग यही मना रहे हैं कि कहीं एक ट्वीट सारे किए पर पानी न फेर दे. राष्ट्रपति ट्रम्प जिस तरह अहमदाबाद में होने वाले अपने स्वागत को लेकर उत्सुकता और अपेक्षा जता रहे हैं. साथ ही कारोबारी रिश्तों में ट्रेड डील को लेकर बयान दे रहे हैं उससे जोखिम की खिड़की अभी पूरी तरह बंद भी नहीं है.
बीते एक हफ्ते के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प ने अहमदाबाद में अपने स्वागत के लिए आने वाले लोगों की संख्या को पहले 5-7 मिलियन यानी 50-70 लाख बताया. फिर उसे 70 लाख कहा और अब कोलराडो की एक चुनावी सभा में सीधे एक करोड़ कर दिया. वहीं इन संख्याओं के साथ वो हर बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं. सरकारी सूत्रों की मानें तो राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोन वार्ता में मेहमान नेता के भव्य स्वागत और उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में लोगों के आने का जिक्र तो था मगर कोई निश्चित आंकड़ा ऐसे संवाद हमें नहीं दिया जाता. यानी जाहिर है ट्रम्प लाखों लोगों की भीड़ जैसे मुहावरे को सीधे 10 मिलियन के आंकड़े में बदल रहे हैं.
बहरहाल, चुनावी प्रचार के बीच आ रहे. ट्रम्प के यह बयान भी चुनावी एजेंडा का ही हिस्सा हैं. ऐसे में जबकि उन्हें हाल ही में महाभियोग की परीक्षा से गुजरना पड़ा हो, ट्रम्प अमेरिकी जनता को भी यह दिखाना चाहते हैं कि वो अलोकप्रिय नहीं बल्कि लोकप्रिय नहीं. उनके स्वागत के लिए भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बहुत बड़ी संख्या में भीड़ आ रही है.
इतना ही नहीं, भारत दौरे और 'नमस्ते ट्रम्प' जैसे आयोजन में शिरकत के बहाने राष्ट्रपति ट्रम्प की कोशिश उस भारतीय अमेरिकी समुदाय को साधने की है जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी मतदाताओं की संख्या ज्यादा रही है. साथ ही यह तबका बीते कुछ सालों में ट्रम्प सरकार की प्रवासियों को लेकर नीतियों और H1B वीज़ा जैसी सहूलियतों पर कैंची चलाए जाने से कुछ खफा भी है. ऐसे में दूसरे कार्यकाल के लिए व्हाइट हाऊस पहुंचने की तैयारी में जुटे ट्रम्प और उनकी टीम की कोशिश भारत दौरे के बहाने इस तबके को साधने की है. उनके लिए अहमदाबाद की अहमियत भी इस बात से बखूबी समझी जा सकती है कि अमेरिका में 40 लाख की आबादी वाले भारतीय अमेरिकी समुदाय में करीब 20 फीसद गुजराती मूल के हैं और अधिकतर उन इलाकों में बसे हैं जो पारंपरिक तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ माने जाते रहे हैं.
कारोबार विवाद को लेकर यूं तो डोनाल्ड ट्रम्प काफी बोलते रहे हैं. साल 2016 के चुनावी अभियान और फिर राष्ट्रपति बनने के बाद कई बार भारत के साथ व्यापार घाटे और ऊंचे टैरिफ बैरियर को लेकर सवाल भी उठाते रहे हैं. वहीं भारत ट्रम्प को चुनावी मौसम में छोटे व्यापार समझौते के बाज़ाए एक व्यापक व्यापार समझौता करने और फिलहाल इसे 6 महीने के लिए टालने पर राजी कर लेता है तो यह भी अहम कूटनीतिक क़ामयाबी होगा. ध्यान रहे कि अपने पने पिछले चुनावी अभियान में ट्रम्प ने जिस चीन, मेक्सिको और कनाडा पर सवाल उठाए थे उनमें से अधिकतर के साथ अमेरिका नया वाणिज्य समझौता कर चुका है.
दरअसल, ट्रम्प की शिकायत की बड़ी वजह दोनों देशों के बीच का करीब 20 अरब डॉलर का वस्तु और व्यापार क्षेत्र का व्यापार घटा है. भारत और अमेटिक के बीच यूं तो करीब 150 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार होता है. मगर इसमें निर्यात का पलड़ा भारत की तरफ झुका हुआ है. मसाले, फार्मास्युटिकल, हीरे समेत कई समान हैं जिनका भारत से निर्यात होता है. साथ ही आउटसोर्सिंग के कारण सेवा क्षेत्र में भी भारत का निर्यात अधिक है.
भारतीय खेमे के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक भारत की कोशिश एक ऐसे कारोबार समझौते की है जो दोनों मुल्कों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो. इस कड़ी में भारत जहां हार्ले डेविडसन जैसी मोटरबाइक पर आयात शुल्क करने को तैयार है जिसकी मांग ट्रम्प कई बार उठाते रहे हैं. मगर अपने कृषि या डेयरी उत्पाद क्षेत्र के दरवाजे अमेरिका के लिए पूरी तरह खोलना भारत के लिए सम्भव नहीं है.
दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ता की जानकारी रखने वाले सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी उत्पादों के लिए भारत की शुल्क सीमाएं कोरिया, जापान या जर्मनी जैसे मुल्कों से अलग नहीं हैं जिनके साथ उसका करोबार काफी ज्यादा है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि भारत एक विकासशील मुल्क है और उसकी अपनी आर्थिक चिंताएं हैं.
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ऐसा नहीं है कि अमेरिका की शिकायतों को कम करने की बीते कुछ समय में कोशिश नहीं हुई है. ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद 2017 से लेकर अब तक भारत ने द्विपक्षीय करोबार घाटे को आधा करने की कोशिश की है. इसके लिए अमेरिका की तेल कंपनियों के साथ कई बड़े खरीद सौदे किए गए. इसके अलावा सितंबर 2019 की अपनी अमेरिका यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की बड़ी तेल व गैस ऊर्जा कम्पनियों को इओऊखरीद के साथ साथ भारतीय निवेश का भी भरोसा दिया. यही वजह है कि अमेरिका अब भारत के लिए ऊर्जा का छठा सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है. दिल्ली में 25 फरवरी को होने वाली बातचीत के बाद ऊर्जा क्षेत्र में भी कई अहम समझौते होने की उम्मीद है.
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