नई दिल्ली: अमेरिका से हाल ही में ली गई सिग-सोर 716 राइफल्स भारतीय सेना की फ्रंटलाइन हथियार बनने जा रही है. भारतीय सेना को अमेरिका से 72 हजार अतिरिक्त सिग-716 राइफल्स मिलनी शुरू हो गई हैं, जो सेना की पश्चिमी कमान की इंफेंट्री बटालियन को मिलनी शुरू हो गई हैं. इससे पहले उत्तरी कमान के अंतर्गत आने वाली एलओसी, एलएसी और कश्मीर घाटी में तैनात सैनिकों को पहले से ही 72 हजार शूट टू किल राइफल्स मिल चुकी हैं. इन दिनों उत्तराखंड के चौबटिया में भारत और उज्बेकिस्तान की सेनाओं के बीच साथ चल रहे दस्तलिक एक्सरसाइज में भी दोनों देशों के सैनिक इसी सिगसोर राइफल से अभ्यास कर रहे हैं.


जानकारी के मुताबिक, चंडीमंदिर (चंडीगढ़ के करीब) स्थित भारतीय सेना की पश्चिमी कमान को भी अमेरिका की सिग-716 राइफल्स मिलनी शुरू हो गई हैं. इस कमान की हरेक इंफेंट्री यानि पैदल सैनिकों वाली बटालियन को सिग सोर राइफल मिल रही है. पश्चिमी कमान का एरिया ऑफ रेस्पोंसेबेलिटी यानि जिम्मेदारी-क्षेत्र हिमाचल प्रदेश से सटी एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल) और जम्मू सहित पंजाब से सटी पाकिस्तानी सीमा है. फ्रंटलाइन पर तैनात सभी सैनिकों को सिगसोर राइफल मिल चुकी है. इसके अलावा शांति-क्षेत्र में तैनात बटालियन की भी कम से कम दो कंपनियों (यानी करीब करीब 50 प्रतिशत) सैनिकों भी अमेरिकी राइफल्स मिल रही हैं.


उत्तराखंड के चौबटिया (रानीखेत) में चल रही दस्तलिक एक्सरसाइज में पश्चिमी कमान की 13 कुमाऊं बटालियन भारतीय सेना का नेतृत्व कर रही है. इस बटालियन के सैनिक सिगसोर राइफल के साथ ही युद्धभ्यास में हिस्सा ले रहे हैं. क्योंकि उज्बेकिस्तान सेना की टुकड़ी इस युद्धभ्यास में अपने हथियार लेकर नहीं आई है, इसलिए उज्बेक सैनिक भी भारतीय सेना की सिगसोर राइफल इस्तेमाल कर रही हैं.


बता दें कि चीन से चल रहे टकराव के दौरान भारतीय सेना ने अगस्त 2020 में अमेरिका से 72 हजार अतिरिक्त 'सिग-716' राइफल खरीदने का सौदा किया था. अमेरिका की ससोर कंपनी इन 'शूट टू किल' राइफल्स को बनाती है.‌ इससे पहले फरवरी 2019 में भी भारत ने 72400 सिग716 राइफल का करीब 700 करोड़ में सौदा किया था. इस डील की कुल कीमत करीब 700 करोड़ थी. यानि भारत के पास अब कुल 1.44 लाख सिगसोर राइफल्स हो गई हैं.


7.62 x 51 एमएम सिग716 राइफल अमेरिका के अलावा दुनियाभर की करीब एक दर्जन देशों की पुलिस और सेनाएं इस्तेमाल करती हैं. भारतीय सेना में सबसे पहले इन राइफल्स को जम्मू कश्मीर के उधमपुर स्थित उत्तरी कमान को दी गई थीं. इन राइफल्स को एंटी-टेरर ऑपरेशन्स और 'फ्रंट लाइन' सैनिकों को इस्तेमाल करने के लिए दिया गया है. इन राइफल्स की रेंज करीब 600 मीटर है जिनका उद्देश्य होता है 'शूट टू किल'.


करीब 20 साल बाद भारतीय सेना को कोई नई असॉल्ट राइफल मिली है. इससे पहले करगिल युद्ध के दौरान यानि 90 के दशक के आखिर में स्वदेशी इनसास राइफल मिली थीं, जो 5.56 x 45 बोर की थी. लेकिन इन राइफल्स में शुरूआत से ही चलाने में दिक्कत आती थी. यही वजह है कि करीब दो साल पहले यानि मार्च 2018 में रक्षा मंत्रालय ने करीब साढ़े सात लाख (7.40 लाख) असॉल्ट राइफल खरीदने की मंजूरी दी थी.


इन असॉल्ट राइफल्स की कुल कीमत करीब 12,280 करोड़ रूपये थी. इन राइफल्स को ‘बाई एंड मेक इंडियन’ (BUY AND MAKE INDIAN) कैटेगरी के तहत सेनाओं के लिए मुहैया कराया जाना था. इसके लिए सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां इस खरीद प्रक्रिया में हिस्सा ले सकती थीं. यानि कोई भी भारतीय कंपनी कुछ गन्स को किसी विदेशी कंपनी से सीधे खरीदकर बाकी भारत में ही तैयार करेगी. ये राइफल्स 7.62 एमएम की होंगी. लेकिन क्योंकि इस प्रक्रिया में काफी लंबा वक्त लगता है, इसलिए फॉस्ट-ट्रैक तरीके से 1.44 लाख एसॉल्ट राइफल्स को सीधे अमेरिकी कंपनी, सिग-सौर से खरीदने का फैसला लिया गया था.


बता दें कि इसी कड़ी में भारत के सरकारी रक्षा संस्थान, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) ने रूस के साथ सात लाख एके-203 राइफल्स अमेठी को कोरबा में तैयार करने का सौदा किया है. पिछले साल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एके203 बनाने वाले प्लांट का कोरबा में उद्घाटन किया था. उस दौरान रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए वहां मौजूद थे. माना जा रहा है कि अब भारतीय सेना की इनसास राइफल की जगह ये सिग-सौर और एके203 राइफल्स ले लेंगी. भारतीय‌ सेना एके47 राइफल्स का इस्तेमाल भी करती है.


कैमरामैन राजेश कुमार के साथ नीरज राजपूत की रिपोर्ट


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