Ground Report: म्यांमार में सेना के तख्तापलट और जनता के विद्रोह के बीच जानिए भारत-म्यांमार बॉर्डर का हाल
नदी-नाले होने के चलते इस बॉर्डर की रखवाली करना असम राईफल्स के लिए एक बड़ी चुनौती है. असम राईफल्स के जवान यहां नदीं-नालों में पैट्रोलिंग कर रहे हैं. जवान नदी में गश्त लगा रहे हैं. इसके अलावा पैट्रोलिंग के लिए बोट्स का इस्तेमाल भी किया जाता है. असम राईफल्स में महिला जवान भी म्यांमार बॉर्डर पर तैनात हैं और पुरूष जवानों से कंधे से कंधा मिलाकर देश की सीमा कई निगहबानी करती हैं.
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नई दिल्ली: सेना के तख्तापलट के बाद से ही म्यांमार ने अपने आप को पूरी तरह दुनिया के लिए बंद कर लिया है. लोकतांत्रिक आंदोलन को दबाने की लगातार खबरें आ रही हैं. फौजी हुकूमत के डर से म्यांमार के आम लोगों के साथ साथ पुलिस के जवान भी शरण लेने के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में म्यांमार सीमा का सूरतेहाल जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम पहुंची है मिज़ोरम से सटे भारत-म्यांमार बॉर्डर पर.
एबीपी न्यूज की टीम पहुंची मिज़ोरम के ज़ोरिनपुई में, जहां असम-राईफल्स की म्यांमार सीमा पर आखिरी बॉर्डर पोस्ट यानि चौकी है. एबीपी न्यूज की टीम का सफर राजधानी दिल्ली से ज़ोरिनपुई से कैसे रहा, ये हम आपको बताएंगे आगे, लेकिन उससे पहले जाने लेते हैं कि आखिर हमने वहां देखा क्या. दरअसल, भारत और म्यांमार के बीच करीब 1643 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है, जो अरूणाचल प्रदेश से शुरू होकर नागालैंड और मणिपुर से होती हुई मिजोरम तक जाती है. म्यांमार सीमा की रखवाली की जिम्मेदारी देश के सबसे पुराने और एकमात्र पैरा-मिलिट्री फोर्स, असम राईफल्स के हवाले है.
ज़ोरिनपुई पहुंच कर हमने देखा कि ये पहाड़ और बेहद ही गहने जंगल वाला इलाका है. नदी-नाले होने के चलते इस बॉर्डर की रखवाली करना असम राईफल्स के लिए एक बड़ी चुनौती है. असम राईफल्स के जवान यहां नदीं-नालों में पैट्रोलिंग कर रहे हैं. जवान नदी में गश्त लगा रहे हैं. इसके अलावा पैट्रोलिंग के लिए बोट्स का इस्तेमाल भी किया जाता है.
असम राईफल्स के स्थानीय कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) कर्नल बिजोए के मुताबिक, वैसे तो दिन-रात इस सीमा की निगहबानी रखी जाती है, लेकिन साल में एक बार लॉन्ग रेंज पैट्रोलिंग की जाती है, जो 72 घंटे की होती है. इस 72 घंटे के दौरान एक अधिकारी के नेतृत्व में करीब आधा दर्जन जवान बीपी-वैरिफिकेशन यानि बॉर्डर-पिलर की जांच के लिए जाते हैं, जो दोनों देशों की सीमाओं के बीच हैं.
खास बात ये है कि असम राईफल्स में महिला जवान भी म्यांमार बॉर्डर पर तैनात हैं और पुरूष जवानों से कंधे से कंधा मिलाकर देश की सीमा कई निगहबानी करती हैं. एक ऐसी ही बहादुर राईफल-वूमैन जागृति से एबीपी न्यूज की मुलाकात हुई जो इस पैट्रोलिंग टुकड़ी का हिस्सा थी. मूलत: गुजरात की रहने वाली जागृति पिछले चार सालों से असम राईफल्स में अपनी सेवाएं दी रही हैं और अपने फौजी चाचा से प्रेरणा पाकर देश की रक्षा-सुरक्षा करने के लिए ऑलिव-यूनिफॉर्म पहनी है. इसके अलावा असम राईफल्स के जवान क्यूआरटी व्हीकल यानी क्विक रिएक्शन टीम के जरिए भी म्यांमार सीमा की रखवाली करते हैं.
म्यांमार सीमा की रखवाली करना इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि कुछ समय पहले तक यहां कई उग्रवादी संगठन सक्रिए थे. इन उग्रवादी संगठनों को चीन का भरपूर समर्थन मिलता आया है. वर्ष 2015 में भारतीय सेना की म्यांमार में हुई क्रॉस बॉर्डर रेड (सर्जिकल स्ट्राइक) और ऑपरेशन सनराइज ने म्यांमार में सक्रिए उग्रवादी संगठनों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है.
लेकिन अब मिजोरम से सटी म्यांमार सीमा पर एक नया खतरा आतंकी संगठन, 'अराकान-आर्मी' खड़ी हो गई है. मिजोरम के आखिरी गांव, ज़ोरिनपुई में ही भारत और म्यांमार के बीच इंटरनेशनल बॉउंड्री यानि आईबी के बीच से एक छोटा सा नाला गुजरता है. उसपर एक लकड़ी का ब्रिज है. इस ब्रिज के तरफ असम राईफल्स के जवान अपनी लकड़े की एक छोटी सी चौकी पर तैनात रहते है. ब्रिज पर ही म्यांमार देश का पीला, हरा और लाल रंग पर एक स्टार वाला झंडा लगा है. साथ ही ब्रिज पर ही बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है 'आईबी म्यांमार'. ब्रिज से आगे किसी को जाने की इजाजत नहीं है.
मिज़ोरम के ज़ोरिनपुई के दूसरी तरफ म्यांमार का राखिन (रखाईन) प्रांत है, जो हाल ही में रोहिंगया मुस्लिमों के नरसंहार और बड़े पलायन के कारण सुर्खियों में आया था. 'आराकान आर्मी' को चीन से हथियार और पैसों की मदद मिलने की खबरें भी लगातार आती रहती हैं. भारत के लिए आराकान आर्मी इसलिए परेशानी का सबब है क्योंकि कुछ समय पहले आराकान आर्मी के आतंकियों ने मिजोरम को कोलकता (पश्चिम बंगाल) से जोड़ने वाले भारत और म्यांमार के साझा मल्टी मॉडल ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, कालाडान प्रोजेक्ट पर हमला किया था और वहां काम कर रहे इंजीनियर्स को अगवा तक कर लिया था.
ज़ोरिनपुई का मिजो भाषा में अर्थ होता है 'मिजोरम की सबसे बड़ी उम्मीद. कालाडान प्रोजेक्ट, मिजोरम और असम के कचर इलाके यानि सिलचर और करीमगंज के लोगों के लिए देश से जोड़ने की एक बड़ी उम्मीद है.
मिजोरम की राजधानी आईज़ोल से म्यांमार बॉर्डर की दूरी करीब 250 किलोमीटर है. बॉर्डर पर ज़ोरिनपुई इंटीग्रेटेड चैक पोस्ट है. यहां से पासपोर्ट और वीजा के जरिए आप म्यांमार में दाखिल हो सकते हैं. लेकिन पहले कोविड महामारी और अब म्यांमार में तख्तापलट के चलते दोनों देशों के बीच आवाजाही फिलहाल बंद है. लेकिन आईज़ोल से ज़ोरिनपुई तक पहुंचने का बेहद ही कठिन रास्ता है.
आईज़ोल से लुंगलई का रास्ता बेहद ऊंचाई वाला जरूर है लेकिन अच्छा है. लेकिन लुंगलई से जोरिनपुई की सड़क खस्ता हाल है. कई जगह सड़क की चौड़ाई का काम चल रहा है जिसके चलते जगह जगब पहाड़ तोड़े गए हैं और उसका मलबा सड़क पर पड़ा है. इस इलाके में साल में एक लंबे समय तक बारिश होने के चलते भी काम की रफ्तार धीमी पड़ जाती है. करीब 280 किलोमीटर का ये सफर तय करने में 15 घंटे लगते हैं.
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