चीन से टकराव के बीच रक्षा मंत्रालय ने 72 हजार अतिरिक्त अमेरिकी सिगसोर राइफल खरीदने की मंजूरी दी
72 हजार अतिरिक्त अमेरिकी सिगसोर राइफल खरीदने को मंजूरी दी गई है. ये राइफल फ्रंटलाइन सैनिकों को दी जाएंगी.
नई दिल्ली: चीन से चल रही तनातनी के बीच रक्षा मंत्रालय ने 'फ्रंटलाइन' सैनिकों के लिए 72 हजार अतिरिक्त अमेरिकी सिगसोर राइफल खरीदने की मंजूरी दे दी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई वाली रक्षा अधिग्रहण (खरीद) कमेटी ने आज इस खरीद की मंजूरी दी. इसके साथ ही देश में रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश के साथ साथ आत्मनिर्भर बनाने के लिए आज रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया-2020 जारी की गई.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, रक्षा अधिग्रहण परिषद ने फ्रंटलाइन पर तैनात सैनिकों के लिए आज अमेरिकी सिग-सोर राइफल खरीदने की मंजूरी दी है . 7.62x51एमएम बोर की इन राइफल्स की कुल कीमत 780 करोड़ रूपये है. हालांकि, रक्षा मंत्रालय ने ये नहीं बताया है कि इस सौदे में कितनी राइफल खरीदी जाएंगी. लेकिन पिछले साल यानि 2019 में 72400 सिगसोर राइफल्स का सौदा करीब 700 करोड़ में किया गया था.
2019 में हुए सौदे वाली राइफल्स भारतीय सैनिकों को मिल चुकी है. अमेरिकी की सिगसोर कंपनी इन 'सिग716' शूट टू किल राइफल का निर्माण करती है.
रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इसके अलावा थलसेना और वायुसेना के लिए आज एचएफ रेडियो ट्रांसमीटर सिस्टम खरीदने की मंजूरी दी जिनकी कीमत करीब 540 करोड़ है. इसके साथ साथ वायुसेना और नौसेना के लिए स्मार्ट एंटी एयरफील्ड वैपन की भी मंजूरी दी जिनकी कुल कीमत 970 करोड़ रूपये है.
डीआरडीओ द्वारा तैयार किए गया ये एंटी एयरफील्ड वैपन दरअसल एक हाई प्रेशसियन गाईडेड बम है जो दुश्मन के रनवे, बंकर और एयरक्राफ्ट-हैंगर को तबाह करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
रक्षा मंत्री की अगुवाई में आज ही नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डिफेंस एक्युक्जिशन प्रोसिजर यानि डीएपी-2020) जारी की गई. इस नई प्रक्रिया में रक्षा क्षेत्र में एफडीआई यानि सीधे विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के साथ साथ मेक इन इंडिया के तहत हथियारों और सैन्य साजो सामान में आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया गया है. इस डीएपी-2020 को बनाने में थलसेना वायुसेना और नौसेना के साथ साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सचिवालय (नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल सेक्रेटेरियट) का भी अहम योगदान है.
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