प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार सुबह करेंगे दुनिया की सबसे लंबी हाईवे टनल का उदघाटन
भारत- चीन सीमा पर तनाव के बीच प्रधानमंत्री मोदी शनिवार सुबह दुनिया की सबसे लंबी हाईवे टनल का उद्घाटन करेंगे. सर्दियों में पूर्वी लद्दाख को पूरे भारत से जोड़ने वाले इस टनल का नाम 'अटल टनल' रखा गया है.
लद्दाख. एलएसी पर चीन से चल रही तनातनी के बीच देश के लिए एक बड़ी और अच्छी खबर है. पूर्वी लद्दाख को पूरे देश से जोड़ने वाली सामरिक महत्व की रोहतांग टनल बनकर तैयार हो चुकी है. शनिवार सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस टनल का उदघाटन करने वाले हैं. हिमाचल प्रदेश के कुल्लु मनाली और लाहौल-स्पिति जिले में बनी 9 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का काम पिछले 10 सालों से चल रहा था.
पीएम के उदघाटन से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, जयराम ठाकुर और बीआरओ के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल भाटिया के साथ टनल का निरीक्षण कर शनिवार की तैयारियों का जायजा लिया. रोहतांग टनल के उदघाटन से पहले ही इस सुरंग का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर 'अटल टनल' दिया गया है क्योंकि वर्ष 2002 मे अटल बिहारी वाजपेयी ने ही इस टनल के काम का शुभारंभ किया था. लेकिन टनल का असल काम शुरू हुआ 2010 में.
इस टनल के बनने से हिमाचल प्रदेश का लाहौल-स्पिति इलाका और पूरा लद्दाख अब देश के बाकी हिस्सों से 12 महीने जुड़ा रहेगा. क्योंकि रोहतांग-पास (दर्रो) सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी के कारण बंद हो जाता था, जिससे लाहौल-स्पिति के जरिए लद्दाख जाने वाला हाईवे छह महीने के लिए बंद हो जाता था. लेकिन अब अटल टनल बनने से इससे निजात मिल जाएगी.
अटल टनल बनने से सेना की पूर्वी लद्दाख को जाने वाली सप्लाई लाइन भी अब 12 महीने खुली रहेगी. क्योंकि पूर्वी लद्दाख पहुंचने के लिए एक ये अलग एक्सेस है. दूसरा एक्सेस जो श्रीनगर के जरिए जोजिला पास से आता है वो भी भारी बर्फबारी के जरिए सर्दियों में बंद हो जाता है. उदघाटन से पहले एबीपी न्यूज टीम दुनिया की इस सबसे लंबी हाईवे टनल पर पहुंची थी जो दस हजार फीट से भी ज्यादा उंचाई पर बनाई गई है. आज आपको इस टनल की खासयित बता दें जिससे भारतीय सेना की पूर्वी लद्दाख में तैनाती और अधिक मजबूत हो जाएगी.
इंजीनीयरिंग-मार्वल हिमाचल प्रदेश की पीर-पंजाल पर्वत श्रृंखला में करीब 9 किलोमीटर लंबी अटल-टनल इंजीनियरिंग-मार्वल है जिसे बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानि बीआरओ ने तैयार किया है. बीआरओ को देश की सरहद पर सड़क, ब्रिज और टनल बनाने में महारत हासिल है. लेकिन इस टनल बनाने में बीआरओ के पसीने छूट गए क्योंकि पीर पंजाल की ये रेंज हार्ड-रॉक यानि पत्थर को काटकर इस टनल को बनाना आसान काम नहीं था.
बीआरओ के एग्जीक्युटिव इंजीनियर, लालमणि सिंह ने एबीपी न्यूज को बताया कि टनल की शुरूआत दो तरफ के निर्माण-कार्य से हई थी, लाहौल स्पिती की तरफ से नार्थ पोर्टल और कुल्लु मनाली की तरफ से साऊथ पोर्टल. लेकिन जब दोनों तरफ से टनल का काम बीच में पहुंचा तो करीब 600 मीटर के स्ट्रेच से लगातार पानी और कीचड़ आने लगाा. लालमणि सिंह के मुताबिक, टनल के ठीक ऊपर एक सिरा-नाला है. इस वॉटर फॉल का पानी लगातार सुरंग के अंदर आने लगा.
इससे टनल के भीतर बाढ़ जैसी स्थिति बन गई. लेकिन बीआरओ ने अपने आदर्श-वाक्य, श्रमेम सर्वम साध्यम' यानि कड़ी मेहनत से असंभव कार्य भी पूरा हो सकता है. बीआरओ के इंजीनियर्स और प्राईवेट कांट्रेक्टर्स ने दिन-रात कड़ी मेहनत और अपनी तकनीक से इस टनल को पूरा कर लिया. लेकिन इस 600 मीटर के स्ट्रेच को पूरा करने के लिए पूरे चार साल लग गए. यानि प्रोजेक्ट पूरे चार साल देर हो गया, क्योंकि प्रोजेक्ट को छह साल में पूरा होना था.
सामरिक महत्व अटल टनल भारत के लिए एक रिकॉर्ड से ज्यादा सामरिक महत्व रखती है. बीआरओ को 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर कुल 73 सामरिक महत्व की सड़क और टनल बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. पिछले कुछ सालों में बीआरओ ने 61 सड़कें और टनल बनाकर तैयार कर ली हैं. दरअसल, इस वक्त पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर भारत और चीन के बीच पिछले चार महीने से तनातनी चल रही है. लेकिन सर्दियों के मौसम में लद्दाख की कनेक्टिवेटी देश के अन्य इलाकों से कट जाता है.
(पूर्वी) लद्दाख तक पहुंचने के लिए दो एक्सेस (हाईवे) हैं. पहला 'एनएच-वन ए' जो श्रीनगर से सोनमर्ग और जोजिला-पास (दर्रा) के जरिए करगिल होते हुए लेह पहुंचता है. दूसरा है हाईवे नंबर-3 जो कुल्लु मनाली से रोहतांग-पास होते हुए सरचू, उपसी और कारू के जरिए लेह जाता है. लेकिन सर्दियों में भारी बर्फबारी से दोनों ही हाईवे चार-छह महीने के लिए बंद हो जाते हैं.
बीआरओ के चीफ इंजीनियर, के पी पुरूषोत्तमन ने एबीपी न्यूज को बताया कि रोहतांग टनल बनने से लद्दाख के लिए सप्लाई लाइन सर्दियों में भी बंद नहीं होगी. यानि सेना की मूवमेंट सर्दियों में भी जारी रहेगी. साथ ही ये टनल इतनी बड़ी है कि इसमें टैंक, तोप और दूसरी हेवी मशीनरी भी पार हो सकती है. एबीपी न्यूज ने खुद कुल्लु मनाली से पुराने रोहतांग दर्रे के लिए जाने वाली सड़क का रिएलटी-चैक किया तो पाया कि ये बेहद ही संकर रास्ता है. यहां से बामुश्किल ही ट्रक और टैंकर निकल पाते हैं. लेकिन रोहतांग (अटल) टनल की चौड़ाई पूरे साढ़े दस मीटर है. ऐसे में सेना की गाड़ियां यहां से आसानी से निकल सकती है.
अटल टनल की खासयित ये है कि इसकी सिंगल ट्यूब और डबल लेन से गाड़ियां 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकेंगी. जबकि पुराने रोहतांग-दर्रे से गाड़ियां रेंग रेंग कर चलती हैं. साथ ही कुल्लु-मनाली और लाहौल स्पिति (और लेह लद्दाख) की दूरी पूरे 46 किलोमीटर कम हो गई है, जो पहाड़ी रास्तों के हिसाब से तीन-चार घंटे बचा सकती है. मिलिट्री-परलेंस में ये काफी महत्व रखता है.
बर्फीले तूफान से सुरक्षित पीर पंजाल रेंज की इस श्रृंखला में सर्दियों के मौसम में काफी एवलांच यानि बर्फीले तूफान आते हैं. इसके लिए बीआरओ ने कुल्लु मनाली से रोहतांग टनल कए बीच खास एवलांच एंड मेट्रोलोजिकल-प्रोन छोटी छोटी सुरंग बनाई हैं ताकि वे एवलांच का भार सह सकें और आवाजाही पर कोई प्रभाव ना पड़े.
टनल के अंदर टनल (एस्केप टनल) दुनिया की इस सबसे लंबी हाईवे-टनल में सेफ्टी एंड सिक्योरिटी पर खासा ध्यान दिया गया है. ये दुनिया की तीसरी और देश की पहली ऐसी सुरंग है जिसमें टनल के अंदर टनल है. इस टनल में मुख्य सुरंग के ठीक नीचे एक 'एस्केप-टनल' है जो ठीक उतनी ही लंबी है जितनी मुख्य टनल है. किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में यहां से गुजरने वाले लोग इस एस्केप टनल में दाखिल हो सकते हैं और सुरक्षित बाहर आ सकते हैं.
मुख्य टनल के हर पांच सौ मीटर पर इस एस्केप टनल में दाखिल होने के लिए एंट्री पॉइन्ट दिए गए हैं. एबीपी न्यूज ने खुद इस एस्केप टनल में दाखिल होकर सुरक्षा का जायजा लिया. बीआरओ के लेफ्टिनेंट कर्नल, विनोद शर्मा खुद इस दौरान एबीपी न्यूज की टीम के साथ थे और बताया कि किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में लोगों में भगदड़ मच जाती है क्योंकि उन्हें ये नहीं पता होता कि करना क्या है. इसीलिए मुख्य टनल के हर 50 मीटर पर साइन बोर्ड लगे हैं जिसपर साफ तौर से लिखा है कि अगला एस्केप-टनल आपसे कितनी दूरी पर है.
सेफ्टी एंड सिक्योरिटी: सीसीटीवी, लाउडस्पीकर और इमरजेंसी फोन टनल के हर 150 मीटर पर सीसीटीवी और लाउडस्पीकर लगे हैं. टनल के नार्थ-पोर्टल पर एक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया गया है जहां से पूरी टनल को मोनिटर किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर लाउडस्पीकर पर एनाउंसमेंट के जरिए जरूरी दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं. साथ ही हर 160 मीटर पर एक इमरजेंसी फोन लगाया गया है ताकि कंट्रोल सेंटर से संपर्क किया जा सके.
4-जी कनेक्टिवेटी उदघाटन के बाद से ही टनल के अंदर मोबाइल यूजर्स को फॉर-जी कनेक्टिवेटी मिल सकेगी. इसके लिए बीएसएनएल के साथ बीआरओ ने खास इंतजाम किए हैं.
रोहतांग टनल एफएम बीआरओ ने खुद टनल के लिए अपना एफएम रेडियो स्टेशन बनाया है ताकि जब भी जरूरत हो टनल से गुजरने वाली गाड़ियों के एफएम रेडियो पर अपना संदेश प्रसारित कर सकें.
फायर-हाड्रेंट और ऑक्सीजल लेवल का खास ध्यान
टनल को अंदर किसी गाड़ी में आग लग जाती है या किसी और कारण से आग लग जाती है उसके लिए फायर-एक्सटिंयुगर के पूरे इंतजाम किए गए हैं. इसके लिए पूरी टनल में फायर-एक्सटिंयुगर पाइप औप कनेक्शन लगे है जिनसे पानी की बौछार की जा सकती है. हर एक किलोमीटर पर एयर कंट्रोल मोनिटर लगे हैं. जैसी ही ऑक्सीजन लेवल कम होगा, हर 50 मीटर पर बने वेंटीलेटर खुद बे खुद खुल जाएंगे और बाहरी की ताजा हवा अंदर आ सकेगी.
उदघाटन की तैयारियां टनल के भीतर और बाहर जगह जगह पीएम मोदी के स्वागत के लिए फ्लोरेसेंट साइन-बोर्ड लगे हैं. तब तक टनल के अंदर आवाजाही बंद रहेगी और सामान्य ट्रैफिक पुराने रोहतांग दर्रे से ही गुजरेगा. पीएम के उदघाटन से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, जयराम ठाकुर और बीआरओ के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल भाटिया के साथ टनल का निरीक्षण कर शनिवार की तैयारियों का जायजा लिया.