कौन थे 1857 संग्राम के नायक Veer Kunwar Singh, जिनके विजयोत्सव में शिरकत करेंगे अमित शाह
वीर कुंवर सिंह को 1857 की क्रांति का महानायक कहा जाता है. सन 1985 में वीर कुंवर ने जगदीशपुर में अंग्रेजों का झंडा हटाकर अपना झंडा लहराया था.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज एक दिवसीय बिहार दौरे पर रहेंगे. इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री भोजपुर जिले के जगदीशपुर में वीर कुंवर सिंह की जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम में शामिल होंगे. वीर कुंवर सिंह को 1857 की क्रांति का महानायक कहा जाता है.
आइये जानते हैं कौन हैं वीर कुमार सिंह?
वीर कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के जगीशपुर में हुआ था. कुंवर सिंह के पिता साहबजादा सिंह थे जिन्हें राजा भोज का वंशज बताया जाता है. कुंवर के दो भाई थे जिनका नाम हरे कृष्णा और अमर सिंह था. साल 1826 में उनके पिता की मौत के बाद कुंवर सिंह जगदीशपुर के तालुकदार बन गए थे. कहा जाता है कि कुंवर ने 1857 के युद्ध में अंग्रेजों को चने जबवा दिए थे.
वीर कुंवर की जिस बात का आज भी जिक्र होता है वो ये कि उन्होंने 80 साल की उम्र में भी अपनी वीरता को कायम रखा और अंग्रेजों से अपनी लड़ाई जारी रखी. बताया जाता है कि, साल 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के दौरान उन्होंने बिहार में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. साल 1848 से लेकर 1849 के दौरान जब अंग्रेजों ने विलय नीति अपनाई थी जो कुंवर सिंह को पसंद नहीं आयी और उनके खिलाफ वो खड़े हो गए. उन्होंने रामगढ़ के सिपाहियों और बंगाल के बैरकपुर के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला बोला और अपने साहस, कुशव सैन्य नेतृत्व से वो अंग्रेजों को घुटनों पर ले आए. वीर कुंवर सिंह ने आरा, जगदीशपुर समेत आजामगढ़ को आजाद कराया.
खुद कांट दी थी अपनी बांह
सन 1985 में वीर कुंवर ने जगदीशपुर में अंग्रेजों का झंडा हटाकर अपना झंडा लहराया था. बताया जाता है कि बलिया के पास शिवपुरी में वो अपनी सेना के साथ गंगा नदी पार कर थे कि अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया और गोलीबारी कर दी. जानकार बताते हैं कि, इस दौरान उनके हाथ पर गोली लग गई थी और गोली का जहर उनके शरीर में फैल रहा था. कुंवर नहीं चाहते थे कि वो जिंदा या मुर्दा हालत में अंग्रेजों के हाथ लगे जिस कारण उन्होंने तलवार से अपनी बांह काट दी थी.
23 अप्रैल 1858 को कुंवर सिंह अंग्रेजों से लड़कर अपने महल पहुंचे थे. इस दौरान उन्हें काफी चोटें आयी थी. उनका घाव इतना गहरा था कि उन्हें बचाया नहीं जा सका और 26 अप्रैल 1858 को उनकी मौत हो गई. वहीं, 23 अप्रैल को पूरे बिहार में कुंवर सिंह विजयोत्सव दिवस मनाया जाता है.
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