नई दिल्ली: 'तन्हाई का जश्न मनाता रहता हूं, ख़ुद को अपना शेर सुनाता रहता हूं' डाक्टर नावाज़ देवबंदी के इस शेर को चरितार्थ करती हैं अमित शेखर का व्यक्तित्व और उनकी कविताएं. अमित शेखर पेशे से पत्रकार थे लेकिन मूलत, वो एक संवेदनशील कवि थे. उन्होंने अंग्रेजी के बड़े प्रतिष्ठानों में क़रीब बीस साल तक नौकरी की लेकिन कविताएं लिखने की बात आई तो वह हिन्दी में लिखते रहे.
अमित शेखर पिछले कुछ साल से अस्वस्थ थे और इसी कारण वह दिल्ली की नौकरी छोड़ कर पटना में जा बसे. पटना में रहते हुए अमित शेखर तन्हाई का जश्न मनाते रहे और अपनी हर जज़्बात को शायरी और कविताओं में ढालते रहे. वो लिखते थे और फिर अपना लिखा खुद को सुनाते थे. पिछले 5 जून को अमित शेखर 50 साल की उम्र में अचानक दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसे.
कहते हैं कि लेखक कभी नहीं मरता वह अपने शब्दों से हमेशा पढ़ने वालों के दिल में जिंदा रहता है. शेखर के साथी उनकी कविताओं से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने उनकी कविताओं को “अमिट शेखर” में संकलित कर प्रकाशित किया है. 'अमिट शेखर' का लोकार्पण 23 अक्टूबर को उनके 51वें जन्मदिन पर डाक्टर नवाज़ देवबंदी ने उनके परिवार, दोस्त और कविता प्रेमियों के बीच दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किया.
संकलन का लोकार्पण करते हुए डा. देवबंदी ने कहा कि अमित शेखर “एक शमा थे जिन्होंने कई चिराग़ों को रौशन किया और उनके दोस्त वो चिराग़ हैं जो इस शमा को जलाए हुए हैं, और उनके ज़िन्दगी के बाद भी उनकी कविताओं और शायरी को सामने लाकर उन्हें एक नई ज़िन्दगी दी है, जो सालों साल चलती रहेंगी." इस मौक़े पर आए लोगों को देख डा. देवबंदी ने अपना मशहूर शेर “ज़िन्दगी ऐसी जियो कि दुश्मनों को भी रश्क़ हो, और मौत हो ऐसी कि दुनिया देर तक मातम मनाए” पढ़कर अमित शेखर के श्रद्धांजलि दी.
अमित शेखर की पुस्तक के प्रस्तावना में मशहूर शायर ज्ञान प्रकाश विवेक लिखते हैं कि “शेखर की कविताएं गज़लनुमा हैं. या यूं कहें कि उनकी ग़ज़लें कवितानुमा है. इनकी कविताओं में नए समय की गूँज सुनाई देती है. इसमें समाज है और उसका तलछट! समय है और उसका विद्रूप! मनुष्य है, और उसका मुठभेड़.”