एमनेस्टी इंडिया के पूर्व प्रमुख आकार पटेल मामले में बड़ी अदालत का रुख करेगी सीबीआई, निचली अदालत ने दिया था ये आदेश
अदालत ने आदेश दिया था कि एजेंसी की ओर से सीबीआई निदेशक पटेल से लिखित में माफी मांगकर अपने अधीनस्थ की चूक को स्वीकार करें जिससे जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद मिलेगी.
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दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)को विदेशी योगदान नियमन अधिनियम के कथित उल्लंघन के एक मामले में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया बोर्ड के अध्यक्ष आकार पटेल के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC)को वापस लेने और उनसे माफी मांगने का निर्देश दिया था. अब सीबीआई इस फैसले के खिलाफ उससे बड़ी अदालत में अपील करने की योजना बना रही है.
गौरतलब है कि इस सर्कुवर के कराण आकार पटेल को अमेरिका जाने वाले जहाज में बैठने से बेंगलुरु एयरपोर्ट पर रोक दिया गया था. इस मामले में सीबीआई का दावा है कि आकार पटेल और एमेनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के खिलाफ फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट एफसीआरए के तहत एक मुकदमे की जांच की जा रही है और इसमें एक आरोपपत्र भी कोर्ट के सामने पेश किया जा चुका है.
सीबीआई ने लिखित माफी मांगने का दिया था आदेश
आपको बता दें कि इस मामले को सुनने के बाद अदालत ने आदेश दिया था कि एजेंसी की ओर से सीबीआई निदेशक पटेल से लिखित में माफी मांगकर अपने अधीनस्थ की चूक को स्वीकार करें. अदालत ने कहा कि इससे प्रमुख संस्थान में जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद मिलेगी.
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पवन कुमार ने यह आदेश पारित किया और जांच एजेंसी को 30 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि आर्थिक नुकसान के अलावा, अर्जीकर्ता को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा क्योंकि वह निर्धारित समय पर नहीं पहुंच सके.
जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है ये कदम
न्यायाधीश ने कहा कि अर्जीकर्ता मौद्रिक मुआवजे के लिए अदालत या अन्य मंच का दरवाजा खटखटा सकता है. इस अदालत का सुविचारित मत है कि इस मामले में सीबीआई के प्रमुख अर्थात निदेशक सीबीआई द्वारा अर्जीकर्ता को अपने अधीनस्थ की ओर से चूक को स्वीकार करते हुए लिखित माफी न केवल उनके घावों को भरेगी बल्कि इस प्रमुख संस्थान में जनता के विश्वास को बनाए रखेगी.
अदालत ने कहा कि पटेल एक बार जांच में शामिल हुए थे और उनकी पेशी के लिए उनके खिलाफ कोई अन्य प्रक्रिया या वारंट जारी नहीं किया गया था. न्यायाधीश ने कहा कि एलओसी आरोपी के मूल्यवान अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए जांच एजेंसी का एक जानबूझकर किया गया कार्य है.
जांच के दौरान ही क्यों नहीं किया गिरफ्तार
अदालत ने यह भी कहा कि अगर जांच या सुनवाई के दौरान आरोपी के भाग जाने का खतरा होता तो उसे जांच के दौरान ही गिरफ्तार कर लिया जाता. अदालत ने कहा कि सीबीआई द्वारा अपनाया गया रुख एक अंतर्निहित विरोधाभास है, एक तरफ सीबीआई का दावा है कि एलओसी जारी किया गया क्योंकि अर्जीकर्ता के विदेश भागने की आशंका थी और इसके विपरीत आरोपी को जांच और आरोपपत्र के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया तथा गिरफ्तारी के बिना आरोपपत्र दाखिल किया गया.
सीबीआई के आरोपपत्र में कई तरह की समस्याएं
अदालत ने कहा कि सीबीआई ने यह भी नहीं बताया कि जांच के दौरान या आरोपपत्र दाखिल करते समय क्या सावधानियां या उपाय किए गए ताकि मुकदमे के दौरान आरोपियों की उपस्थिति सुनिश्चित हो सके. अदालत ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि जैसा कि जांच अधिकारी (IO)ने सूचित किया था कि एलओसी जारी करने के लिए अर्जी उस दिन दी गई जब आरोपपत्र पूरा हो गया और अदालत में दाखिल करने के लिए भेज दिया गया था.
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