Amrita Pritam Birth Anniversary: अमृता प्रीतम, जो उंगलियों से इमरोज की पीठ पर इश्क में साहिर का नाम लिखती थीं
Amrita Pritam Birth Anniversary: साहिर, अमृता और इमरोज़ का प्यार जमाने से अलहदा था. इश्क की पहले से खिंची लकीरों से जुदा था.
Amrita Pritam Birth Anniversary: किसी ने सही कहा है कि प्रेम को सरहदों, मज़हबों और वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. अमृता का इश्क़ भी ऐसा ही था. जब अमृता के नन्हें हाथों में कलम थामा तो कौन जानता था कि एक दिन यही अमृता प्रीतम खुद 'इश्क' की परिभाषा बन जाएंगी. किसी ने अमृता को लेकर एक बार कहा था कि लोग कविता लिखते हैं और जिंदगी जीते हैं लेकिन अमृता जिंदगी लिखती थीं और कविता जीती थीं.
इश्क़ लिखने वाली अमृता को भी किसी से इश्क़ हुआ और किसी और को भी अमृता से इश्क़ हुआ लेकिन इश्क़ के इतने पास होते हुए भी अमृता ताउम्र उसके लिए तरसती रहीं. अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होते हुए भी पूरी थी.
साहिर, अमृता और इमरोज़ का प्यार जमाने से अलहदा था. इश्क की पहले से खिंची लकीरों से जुदा था. अधूरी मोहब्बत का ये वो मुकम्मल अफसाना है जिसकी मिसाल इश्क करने वाले आज तक देते हैं.
6 साल की उम्र में हुई थी शादी
31 अगस्त 1919 में आज ही के दिन गुजरांवाला जो अब पाकिस्तान में है वहां अमृता का जन्म हुआ था. आपको जानकर हैरानी होगी कि उनकी शादी सिर्फ 6 साल की उम्र में व्यापारी प्रीतम सिंह से कर दी गई. हालांकि उनका गौना बाद में हुआ था. मगर इससे पहले ही नन्हें हाथों ने कलम थाम ली थी. इसका नतीजा ये हुआ कि महज 16 साल की उम्र में ही उनकी पहली किताब ‘अमृत लहरें’ प्रकाशित हुई.
हालांकि फिर जल्द उनका गौना हो गया और उन्हें ससुराल जाना पड़ा. लेकिन छोटी उम्र में वो शादी जैसी जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त रखती थीं और लगातार लिखती थीं. उन्होंने इस दौरान कई शेर भी लिखना शुरू कर दिया था.
साहिर से पहली मुलाकात
इश्क़ कब किससे हो जाए कौन कह सकता है. अमृता को भी कहां मालूम था कि शादी शुदा होते हुए भी वो साहिर को दिल दे बैठेंगी. बात साल 1944 की है जब लाहौर में स्थित प्रीत नगर में एक मुशायरे का आयोजन हुआ था. यही वो मुशायरा था जहां साहिर और अमृता पहली बार मिले थे. इश्क़ होने के लिए एक मुलाकात भी काफी है. अमृता भी इसी एक मुलाकात में साहिर को दिल दे बैंठीं. इसके बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन जो कुछ अमृता की आंखों और दिल में था उसको ज़बान पर आने में वक्त लग रहा था. दोनों घंटों एक दूसरे के पास बैठे रहते, मगर बिल्कुल खामोश होकर.
दोनों के बीच का रिश्ता कैसा और कितना गहरा था अगर ये जानना हो तो अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट जरूर पढ़िएगा. उसमें अमृता लिखती हैं,''
"वो (साहिर) चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूँ. इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी."
जब देश का हुआ बंटवारा
इसी बीच हिन्दुस्तान दो हिस्सों में बंट गया. भारत और पाकिस्तन दो देश बन गए. यह बंटवारा साहिर और अमृता के हिस्से भी आया. साहिर लाहौर के हिस्से आए तो अमृता पति के साथ दिल्ली की हो गईं. अब दो दिलों के बीच की दूरी को सिर्फ खतों का सहारा था. इन दिनों अमृता दो बच्चों की मां बन गईं थीं लेकिन साहिर के लिए उनके प्यार में ज़रा भी कमी नई आई थी.
अब वो वक्त आ गया जब साहिर से नजदिकियों के बारे में अमृता के पति को पता चला और ये बात उसे नगावर गुजरी. इसका परिणाम ये हुआ कि उनके रिश्तों में तनाव आ गया. साहिर इसी बीच फिल्मों में लिखने के लिए मुंबई आ गए. अमृता दिल्ली में रह रही थी. अब साहिर और अमृता में दूरियां आने लगी थी. खत भी अब लिखे जाने लगभग बंद हो गए थे. साहिर एक कामयाब गीतकार बन गए थे और उनका नाम कई मशहूर गायिकाओं के साथ जुड़ने लगा था.
इस बीच अमृता पति से अलग हो गई थीं और दिल्ली में ही किराए के मकान में रहने लगीं थीं. उन्हें 1958 में इमरोज़ मिले. दोनों के बीच एक खामोश इश्क़ रहा. इमरोज अमृता को बेहद चाहते थे. अमृता प्रीतम को रात के समय लिखना पसंद था और इसलिए इमरोज लगातार कई सालो तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रख देते थे.
हालांकि अंत तक अमृता इमरोज के इश्क़ के जज्बात से वाकिफ होते हुए भी साहिर को न भुला सकीं. एक बार बीबीसी उर्दू को इमरोज ने एक इंटरव्यू में जो शब्द कहे वो काफी हैं ये बताने के लिए कि साहिर अमृता के दिल और दिमाग में अंतिम वक्त तक रहे.
इमरोज़ ने उस इंटरव्यू में कहा था,''अमृता की उंगलियां हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. चाहे उनके हाथ में कलम हो या न हो. उन्होंने कई बार पीछे बैठे हुए मेरी पीठ पर उंगलियों से साहिर का नाम लिख दिया. लेकिन फ़र्क क्या पड़ता है. वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं. मैं भी उन्हें चाहता हूं."
अमृता ने जिंदगी में क्या कुछ नहीं सहा. कम उम्र में मां की मृत्यु हो या एक ऐसी शादी जिसमें वो बरसों घुट कर रहीं या साहिर को न पाने का दर्द या फिर इमरोज को हां न कह पाने की कसक, अमृता की जिंदगी से दुखों का खास रिश्ता रहा और शायद यही कारण है कि उन्होंने जो भी लिखा वो लोगों के दिलों तक सीधा पहुंचा.