(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
जब अमृता प्रीतम से बेटे ने पूछा- मां.. क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं? जानिए क्या मिला था जवाब
साहिर कहते हैं कि अमृता मानती थी कि अगर वो मेरे चेहरे का हर वक्त ध्यान करेगी तो उसका बेटा मेरे जैसा होगा. अमृता ने जो जिंदगी में नहीं पाया था ये उसे पा लेने की उसकी जादुई कोशिश थी.
''मुहब्बत और वफा ऐसी चीज़ें नहीं हैं, जो किसी बेगाना बदन के छूते ही खत्म हो जाएं.. हो सकता है पराए बदन से गुज़र कर वह और मज़बूत हो जाए जिस तरह इन्सान मुश्किलों से गुज़र कर और मज़बूत हो जाता है..’’
‘एरियल’ नॉवल की किरदार ऐनी के मुंह से यह शब्द जब निकलते हैं तो कोई भी पाठक प्रेम को सच्चे अर्थों में समझने लगता है. प्रेम सिर्फ साथ होना भर नहीं है..प्रेम सिर्फ पा लेना भर नहीं है..प्रेम दो जिस्मों का मिलना भर नहीं है.. प्रेम तो बिना किसी शर्त के किया जा सकता है..ऐसा ही कुछ अलहदा इश्क़ साहिर, अमृता और इमरोज़ के बीच था.. जहां साहिर और अमृता का लव प्लेटोनिक लव था तो वहीं इमरोज़ और अमृता का प्रेम 'अनकहा' था जिस प्रेम में दोनों एक-दूसरे के साथ थे मगर इतने आजाद कि कोई एक दूसरे का दावेदार नहीं था.
अमृता इमरोज़ और साहिर के तो कई किस्से हैं, लेकिन आज आपको बताएंगे वो किस्सा जब अमृता प्रीतम के बेटे नवरोज ने उनसे पूछा था- मां क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं...
चंदर वर्मा और डॉ सलमान आबिद की किताब 'मैं साहिर हूं" में साहिर और अमृता को लेकर कई बातें लिखीं गई हैं. साहिर कहते हैं- ''हमारी मुलाकातों का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा था और एक-दूसरे के लिए चाहत में भी इजाफा हो रहा था. इस दौरान मैंने बहुत सी नज़्में अमृता के लिए लिखी. उधर अमृता का भी यही हाल था. उसने भी मेरी विरह में कई नज़्में लिखीं.
मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख्वाबों में कहीं मेरा गुजर है कि नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुकद्दर में सहर है कि नहीं
साहिर आगे कहते हैं- ये सिलसिला लगभग दो सालों तक चलता रहा, जबतक कि मैं 1946 में मुंबई नहीं चला गया. ये मेरे बेहतरीन दिनों में से थे. अब मुंबई में मेरे लिए रोजगार की तलाश वो भी फिल्मी दुनिया में इक चुनौती थी. सुबह-शाम फिल्मी दुनिया के तरह-तरह के लोगों से मिलना, दर-दर दस्तक देना और फिर कुछ उम्मीद और न-उम्मीद के एहसासात के साथ घर लौट आना. यही मेरा रोज का काम हो गया था. ऐसे में रह-रहकर मोहब्बत याद आने लगी थी. एक दिन मैंने याद भरा खत अमृता को लाहौर भेजा. कुछ दिन बाद अमृता का जवाब आया. खत पर सबसे ऊपर लिखा था- मेरे महबूब और सबसे नीचे-तुम्हारी अमृता....
अमृता चाहती थी साहिर जैसा दिखे उनका बच्चा
साहिर अमृता जुड़ा एक किस्सा बताते हैं और कहते हैं- अमृता हमेशा से जादू, तिलस्म, ज्योतिष में विश्वास रखती थी. उसे लगता था वो जिस किसी शख्स का तसव्वुर करेगी, होने वाले बच्चे की शक्ल उस शख्स जैसी हो जाएगी. उसका ये जूनून उसे यह सोचने पर मजबूर कर रहा था कि अगर वो मेरे चेहरे का हर वक्त ध्यान करेगी तो उसका बेटा मेरे जैसा होगा. अमृता ने जो जिंदगी में नहीं पाया था ये उसे पा लेने की जादुई कोशिश थी. जब बहुत बाद के सालों में अमृता ने मुझे ये बात बताई तो मैंने कहा- Very Poor Taste''
मां क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं
आपको बता दें कि जब अमृता का तलाक हो चुका था और उनके बेटे नवरोज 13 साल के हो गए थे तो उन्होंने अमृता से एक दिलचस्प सवाल पूछा था. 'मैं साहिर हूं' किताब में साहिर के शब्दों में लिखा है- नवरोज एक रोज निहायत मासूमियत से अमृता से पूछने लगा- ममा...एक बात पूछूं..सच-सच बताओगी...अमृता ने हामी भर दी. नवरोज़ ने पूछा- क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं? और अगर हूं तो बता दो मुझे साहिर अंकल पसंद हैं..
अमृता ने कहा- बेटे... साहिर अच्छे तो मुझे भी लगते हैं लेकिन अगर ये सच होता तो मैं तुम्हें बता चुकी होती... साहिर लिखते हैं- ये सच न अमृता की जिंदगी का हो पाया न मेरे जिंदगी का......