Amritpal Singh Tried To Be Bhindranwale 2.0: खालिस्तान समर्थक और 'वारिस पंजाब दे' प्रमुख अमृतपाल सिंह को रविवार (23 अप्रैल) सुबह पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, अमृतपाल की ओर से गिरफ्तारी को आत्मसमर्पण दिखाने की कोशिश की गई. 


रोडे गांव से अमृतपाल के गिरफ्तार किए जाने और उसकी पिछली कुछ गतिविधियों को देखता हुए अंदाजा लगाया जा रहा है कि वह दूसरा जरनैल सिंह भिंडरावाले यानी 'भिंडरावाले 2.0' बनने की कोशिश में था. गौरतलब है कि भिंडरावाले खालिस्तान समर्थक था और 6 जून 1984 को खालिस्तानी आतंकियों के साथ सेना के 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के दौरान वह मारा गया था. आखिर कैसे अमृतपाल सिंह भिंडरावाले बनने की कोशिश में था, आइए समझते हैं.


भिंडरावाले के पैतृक गांव से ही हुई अमृपाल की गिरफ्तारी


करीब पांच हफ्ते की कड़ी मशक्कत के बाद अमृतपाल सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ा. इससे पहले वह कई गाड़ियां, हुलिया और राज्य बदलते हुए पुलिस को चकमा दे रहा था. ऐसे में यह बात गौर करने वाली है कि जिस रोडे गांव से वह गिरफ्तार किया गया है, वह जरनैल सिंह भिंडरावाले का पैतृक गांव है. आखिर इसी गांव से वह गिरफ्तार कैसे हुआ!


बताया जा रहा है कि गिरफ्तारी के पहले अमृतपाल सिंह ने रोडे के गुरुद्वारे में एक भाषण भी दिया था और उसके आत्मसमर्पण में जरनैल सिंह भिंडरावाले के भतीजे जसवीर सिंह ने मदद की.


'वारिस पंजाब दे' की कमान संभालने से पहले किया ये काम


अमृतपाल सिंह का जन्म 1993 में अमृतसर जिले के जल्लूपुर खेड़ा गांव में हुआ था. उसने होली हार्ट पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की और बाद में कपूरथला के लॉर्ड कृष्णा पॉलिटेक्निक कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद अमृतपाल दुबई में पारिवार कार्गो ट्रांसपोर्ट बिजनेस से जुड़ गया और ऑपरेशंस मैनेजर के तौर पर काम किया. वह 2012 में दुबई गया था और करीब एक दशक तक पारिवार के ट्रांसपोर्ट बिजनेस में काम किया. उसके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब पंजाबी सिंगर और एक्टर दीप सिद्धू की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. 


दीप सिद्धू वारिस पंजाब दे संगठन का संस्थापक और प्रमुख था. वही दीप सिद्धू जो किसान आंदोलन के दौरान लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने से सुर्खियों में आया था. पिछले साल फरवरी में दिल्ली से पंजाब लौटते वक्त सोनीपत जिले के कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर खरखौदा टोल प्लाजा के पास उसकी स्कॉर्पियो गाड़ी एक ट्राला से भिड़ गई थी, जिससे उसकी मौत हो गई थी. वहीं, उसकी मंगेतर को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 


दीप सिद्धू की मौत के बाद अमृतपाल सिंह ने वारिस पंजाब दे की बागडोर संभाली थी. इसके लिए वह पिछले साल अगस्त में भारत लौटा था लेकिन स्वदेश वापसी से पहले उसने भिंडरावाले जैसा दिखने के लिए एक उपाय किया था. 


भिंडावाले जैसा दिखने के लिए कराई आंखों की सर्जरी


इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, असम की ड्रिबूगढ़ जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंद अमृतपाल के सहयोगियों ने खुलासा किया था कि 2022 में भारत लौटने से पहले अमृतपाल ने भिंडरावाले जैसा दिखने के लिए जॉर्जिया में आंखों की सर्जरी कराई थी. 


वहीं, वारिस पंजाब दे का प्रमुख बनने से पहले अमृतपाल ने अपने हुलिया में भी काफी बदलाव किया था. पहले वह 'मोना' (एक ऐसा सिख जो दाढ़ी-बाल ट्रिम कर लेता है) हुआ करता था. उसने सिख बैपटिज्म सेरेमनी (अमृत चखना) में हिस्सा लिया. जिसके जरिये प्रार्थना करने और सख्त अनुशासन वाला जीवन बिताने को स्वीकार किया जाता है. 


उसने पश्चिमी पहनावे के उलट लंबी बाना शर्ट और एक दुमला पगड़ी पहन ली. वास्तव में उसकी पगड़ी बांधने की रस्म (दस्तारबंदी) भिंडरावाले के प्रैतृक गांव में आयोजित की गई थी. वहीं, पगड़ी को स्टाइल करने और भारी हथियारों से लैस निहंग सिखों के साथ घूमने के तरीके से यह साफ हो गया था कि अमृतपाल सिंह भिंडरावाले 2.0 बनने की कोशिश कर रहा था. रोडे के कनेक्शन से यह बात और साफ हो गई.


...लेकिन भिंडरावाले नहीं बन सका अमृतपाल


अमृतपाल सिंह भिंडरावाले की तरह ही खालिस्तान का समर्थक है लेकिन दोनों में काफी असमानता है. 1947 में जन्मा भिंडरावाले एक टकसाली सिख था. एक राजनीतिक प्रकिया के हिस्से के रूप में उसका उभार हुआ था. वह जब महज सात साल का था, तब उसके पिता ने उसे सिख पाठशाला दमदमी भेज दिया था. उसने गुरु ग्रंथ साहिब पढ़ा और दमदमी टकसाल में एक प्रभावी व्यक्ति रूप में विकसित हुआ. 1971 में उसे दमदमी का प्रमुख चुना गया था.


आपातकाल के बाद चुनाव में हार मिलने के बाद इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी शिरोमणि अकाली दल को तोड़ना चाहते थे, जो 1975 से 1977 तक विरोध प्रदर्शनों में शामिल था. तब संजय गांधी ने अकाली नेतृत्व को ध्वस्त करने के लिए भिंडरावाले को चुना. भिंडरावाले को पंजाब में लोकप्रियता हासिल थी और उसने कांग्रेस के लिए प्रचार भी किया था. 


वहीं, अमृतपाल के पास अनुयायियों की बड़ी फौज नहीं है और न ही उसे किसी बड़े राजनीतिक दल से समर्थन प्राप्त है. वहीं, गुरु ग्रंथ साहिब की एक कॉपी लेकर अजनाला पुलिस थाने पर हथियारबंद समर्थकों के साथ धावा बोलने पर अमृतपाल को कड़ी आलोचना से गुजरना पड़ा.


अजनाला की घटना के बाद पुलिस अमृतपाल सिंह के खिलाफ 18 मार्च को ऑपरेशन शुरू किया था. भारत में उसके खिलाफ पुलिस की कार्रवाई के विरोध में ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान समर्थकों ने प्रदर्शन किया, लंदन में भारतीय उच्चायोग के सामने हिंसक प्रदर्शन तक देखा गया लेकिन भारत में अमृतपाल की अपील पर उसे समर्थन नहीं मिला.


सिख संगठनों पर नहीं हुआ अमृतपाल की अपील का असर


पुलिस से भागते हुए अमृतपाल ने बीच में संदेश जारी कर बैसाखी पर सरबत खालसा (सिख मंडली) का आह्वान करते हुए कहा था कि स्वर्ण मंदिर के जत्थेदार को एक स्टैंड लेना चाहिए और सभी जत्थेदारों और टकसालों को भी सरबत खालसा में भाग लेना चाहिए. उसके आह्वान अकाल तख्त, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, दल खालसा और कई अन्य संगठनों का समर्थन नहीं मिला था. बैसाखी 14 अप्रैल को थी और कोई सरबत खालसा नहीं हुआ.


भिंडरावाले की मौत के बाद भी उसके नाम पर ध्रुवीकरण किए जाने की स्थिति बनी हुई थी. माना जाता है कि संयोग से भिंडरावाले कुख्यात हुआ और पंजाब में उसकी वजह से उग्रवाद को बढ़ावा मिला लेकिन 1980 और 2023 के पंजाब में बहुत अंतर है.


शनिवार (22 अप्रैल) को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खालिस्तानी लहर और अमृतपाल को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ''पंजाब में कोई खालिस्तानी लहर नहीं है. सरकार अपना काम कर रही है. स्थिति पर बेहद बारीकी से नजर रखी जा रही है. कोई भी भारत की एकता और संप्रभुता पर हमला नहीं कर सकता है.''


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