अमृतसर: 71 बरस पहले आजादी के साथ ही देश के नक्शे पर खिंची गई एक अनदेखी लकीर की वजह से अपने ही देश में परदेसी हो गए. लाखों लोगों के इतिहास के सबसे बड़े पलायन और उससे जुड़े घटनाक्रम को यहां एक गेरूआ इमारत की चंद दीवारों में सहेजा गया है. जो यादों के ऐसे पन्ने खोलती हैं, जिसके लफ्ज कहीं आंसुओं से धुले हैं तो कहीं खून से तरबतर.
अखबारों की कतरने पार्टिशन की कैफियत बताती हैं
पंजाब के इस ऐतिहासिक शहर में स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग से कुछ ही दूरी पर स्थित ‘पार्टिशन म्यूजियम’ के गलियारों में देश के बंटवारे से जुड़े घटनाक्रम को बयान करने की कोशिश की गई है. अखबारों की बहुत सी कतरने और तस्वीरें उस वक्त की कैफियत बताती हैं. अखंड भारत का एक नक्शा बंटवारे से पहले के स्वरूप का गवाह है.
संग्रहालय की दीवारों पर लगी तस्वीरों में कहीं अपने घरबार छोड़कर पैदल और बैलगाड़ी पर आते लोगों के रेले हैं, तो कहीं पहले से लदी रेलगाड़ी पर सवार होने की जिद में मशक्कत करते लोगों की भीड़. कोई बूढ़ी मां को कंधे पर बिठाए महफूज जगह की तलाश में निकल पड़ा है तो कहीं कोई मां भीड़ में अपने बिछड़े बच्चों को ढूंढ रही है. कुछ तस्वीरें अपना सब कुछ गंवा चुके लोगों की बेबसी बयां करती हैं.
लाखों लोगों को एक अनदेखी सीमा ने दो हिस्सों में बांट दिया
तमाम तस्वीरों में मंजर भले जुदा है, लेकिन बंटवारे का दर्द और अपनों को खोने की बेबसी लगभग एक ही जैसी है. देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली, लेकिन उसके बाद लाखों लोगों को एक अनदेखी सीमा ने दो हिस्सों में बांट दिया. लाखों लोगों के लिए उनका अपना देश पराया हो गया. पंजाब और बंगाल में रातोंरात लोग अपने ही देश में परदेसी हो गए और फिर शुरू हुआ इतिहास का सबसे बड़ा पलायन. यह संग्रहालय उन्हीं अभागों की दास्तां बयां करता है.
‘पार्टिशन म्यूजियम’ की हर दीवार बंटवारे के दर्द से बोझिल है
अमृतसर के टाउन हाल की गेरूआ इमारत में आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा बनाए गए इस संग्रहालय को ‘पार्टिशन म्यूजियम’ का नाम दिया गया है. इमारत की हर दीवार जैसे बंटवारे के दर्द से बोझिल है. संग्रहालय की सीईओ मल्लिका अहलुवालिया ने कहा, ‘‘बंटवारे पर यह अपनी तरह का पहला संग्रहालय है. दुनिया में कहीं ऐसा कोई और संग्रहालय नहीं है.’’ उन्होंने बताया कि संग्रहालय में 5000 से अधिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं. इनमें मौखिक इतिहासगाथाएं, दस्तावेज और उस वक्त का सामान शामिल है. यहां एक कुआं बनाया गया है, जो है तो पंजाब के परंपरागत कुएं जैसा ही, लेकिन इसे उन तमाम महिलाओं की याद में बनाया गया है, जिन्होंने आतताइयों से अपनी लाज बचाने की कोशिश में ऐसे ही किसी कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. मल्लिका बताती हैं कि यहां एक युवा जोड़े से जुड़ा कुछ सामान रखा गया है जो बंटवारे की अफरातफरी में बिछड़ गए, लेकिन अमृतसर के एक शरणार्थी शिविर में फिर मिल गए और 1948 में उन दोनो ने विवाह कर लिया.
17 अगस्त को होगा 'पार्टिशन म्यूजियम' का उद्घाटन
इसी तरह एक ताला भी यहां रखा गया है, जिसे एक शरणार्थी परिवार ने अपने ट्रंक पर लगाया था ताकि उसमें रखे कीमती सामान की हिफाजत हो सके. संग्रहालय को यादगार बनाने के लिए लोगों ने भी योगदान दिया है. एक महिला ने अपनी मां की साड़ी दी है, जो उन्होंने बंटवारे से पहले अपनी शादी में पहनी थी. एक ब्रीफकेस है, जिसमें उस समय के जमीन जायदाद के कागजात हैं. 17 अगस्त को होने वाले इस संग्रहालय के औपचारिक उद्घाटन के मौके पर एक ऑनलाइन अभियान चलाया जाएगा, जिसका शीषर्क होगा ‘चलो अमृतसर-17 अगस्त, बंटवारा स्मृति दिवस मनाने.’ इसका मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को इतिहास के इन पन्नों की जानकारी देना है.
म्यूजियम के ट्रस्ट से जुड़े हैं कई बड़े नाम
ट्रस्ट के अध्यक्ष किश्वर देसाई ने बताया कि संग्रहालय के उद्घाटन के अवसर पर बहुत से जाने माने लोगों के मौजूद रहने की संभावना है. इनमें बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय होंगे, जो बंटवारे से प्रभावित परिवारों से हैं. देसाई ने कहा कि यह संग्रहालय बंटवारे से उपजी बेबसी और हताशा को भूलकर नये सिरे से उम्मीद के सहारे जीवन की गाड़ी को पटरी पर लाने के संघर्ष की कहानी सुनाता है. ट्रस्ट और इसके समर्थकों में कई बड़े नाम हैं जैसे पत्रकार कुलदीप नैयर, डिजाइनर रितु कुमार, लार्ड मेघनाद देसाई और पटकथा लेखक प्रसून जोशी.