नई दिल्ली: देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में शुमार TISS की एक छात्रा को दिल्ली के एक एनजीओ 'दिल्ली ऑर्फेनेज' ने नौकरी देने से इनकार कर दिया. मना करने के पीछे तर्क ये दिया गया है कि छात्रा को एक किलोमीटर दूर से देखकर भी कोई ये बता देगा कि वे एक मुस्लिम महिला हैं.


दरअसल, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज यानि TISS से पास आउट निदाल ज़ोया ने 'दिल्ली ऑर्फेनेज' में जॉब के लिए अप्लाई किया था. एनजीओ के सीईओ हरीश वर्मा से ई-मेल पर उनकी कई बार बातचीत हुई. हरीश वर्मा ने निदाल को अपने लिए योग्य और उपयुक्त कैंडिडेट पाया, लेकिन आखिर में ये कहते हुए नौकरी देने से इनकार कर दिया कि वे हिजाब पहनती हैं. हरीश वर्मा ने नौकरी देने से इनकार करते हुए लिखा, "आपके पहनावे की वजह से कोई एक किलोमीटर दूर से भी ये बता देगा कि आप एक मुस्लिम महिला हैं."


अप्लाई करने से लेकर नौकरी ना मिलने तक की कहानी


DevNet India नाम की एक वेबसाइट पर 'दिल्ली ऑर्फेनेज' में नौकरी की जानकारी मिलने के बाद बिहार के पटना से ताल्लुक रखने वाली 27 साल की निदाल ज़ोया ने अपना रेज़्यूमे एनजीओ को भेजा.


एनजीओ के सीईओ हरीश वर्मा ने रेज़्यूमे स्वीकार करते हुए निदाल को प्रोजेक्ट प्रपोज़ल भेजने को कहा. निदाल ने वैसा ही किया. हरीश वर्मा ने अपने ई-मेल के जवाब में निदाल के अंग्रेजी लिखने की शैली की तारीफ भी की.


बाद के ई-मेल में हरीश ने लिखा कि उनका एनजीओ रिलिजन फ्री होगा जिसकी वजह से वे चाहते हैं कि बाकी धर्म के लोग उसमें ज़रूर आएं और अपनी योग्यता साबित करें. जब हरीश वर्मा ने निदाल के बारे में लिखा कि आपके पहनावे की वजह से कोई एक किलोमीटर दूर से भी ये बता देगा कि आप एक मुस्लिम महिला हैं, तब जवाब में निदाल ने हरीश वर्मा से पूछा कि इस रिलिजन फ्री अनाथालय में एडिमिशन पाने वाली लड़कियों को पूजा करने या नमाज़ पढ़ने की इजाज़त होगी या नहीं?


इसके जवाब में हरीश ने लिखा कि इससे उन्हें सदमा लगा है कि निदाल की प्राथमिकता रूढ़िवादी इस्लाम है ना कि इंसानियत. वे आगे लिखते हैं कि वे अपने अनाथालय में किसी तरह की धार्मिक गतिविधि नहीं होने देंगे.


इसके साथ हरीश वर्मा ने ये भी लिखा कि उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक मुस्लिम छात्रा को ये नौकरी दी है जो बटला हाउस में जन्म लेने के बावजूद आधुनिक ख्यालों की है.


ABP न्यूज़ ने जब हरीश से इस बारे में बात करने की कोशिश कि तो उन्होंने बिना बात समझे ये कहकर फोन काट दिया कि उनके खिलाफ जो लीगल एक्शन लिया जाना है लिया जाए, जबकि ये बातचीत की कोशिश उनका पक्ष जानने के लिए की गई थी. उनका पक्ष जानने के लिए उन्हें टेक्स्ट मैसेज भी किया गया, लेकिन कोई जबाव नहीं आया.


निदाल का इस पूरे मसले पर कहना है कि ये अपनी तरह का इकलौता मामला नहीं है जिसमें धर्म की वजह से किसी के साथ भेदभाव किया गया है, ऐसे कई मामले हैं और ये सिर्फ किसी निदाल की कहानी नहीं है बल्कि ऐसी कई कहानियां मिल जाएंगी.