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'आप कैसे रोक सकते हैं, वो किसी के साथ भी लिव-इन में रहें', समलैंगिक जोड़े के लिए पिता को हाईकोर्ट ने खूब सुनाई

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह और उनकी पार्टनर एक साल से लिव-इन रिलेशनशिप में हैं और वे दोनों हमेशा साथ रहना चाहती हैं.

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक समलैंगिक जोड़े के साथ रहने के अधिकार को बरकरार रखा है और अपना साथी चुनने की उनकी स्वतंत्रता पर मुहर लगाई है. जस्टिस आर रघुनंदन राव और जस्टिस के महेश्वर राव की पीठ कविता (बदला हुआ नाम) की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कविता ने आरोप लगाया है कि उसकी साथी ललिता (बदला हुआ नाम) को उसके पिता ने उसकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लिया हुआ है और उसे नरसीपटनम स्थित अपने आवास पर रखा है.

हाईकोर्ट ने मंगलवार (17 दिसंबर, 2024) को ललिता के माता-पिता को दंपति के रिश्ते में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया और कहा कि उनकी बेटी बालिग है और अपने निर्णय स्वयं ले सकती है. यह कपल पिछले एक साल से विजयवाड़ा में एक साथ रह रहा है. कविता की ओर से पहले दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत के आधार पर पुलिस ने ललिता को उसके पिता के घर से बरामद किया और उसे मुक्त कराया. उसके बाद उसे 15 दिनों तक एक कल्याण गृह में रखा गया, हालांकि उसने पुलिस से गुहार लगाई कि वह बालिग है और अपने साथी के साथ रहना चाहती है.

ललिता ने सितंबर में अपने पिता के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके माता-पिता रिश्ते और अन्य मुद्दों को लेकर उसे परेशान कर रहे हैं. पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ललिता विजयवाड़ा वापस आ गई और काम पर जाने लगी और अक्सर अपने साथी से मिलने लगी. हालांकि, ललिता के पिता एक बार फिर उसके घर आए और बेटी को जबरन ले गए. कविता ने अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आरोप लगाया कि उन्होंने उसे अवैध रूप से अपनी हिरासत में रखा है.

पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उनकी बेटी का कविता और उसके परिवार के सदस्यों ने अपहरण कर लिया है. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि उनकी मां और पार्टनर एक ही अस्तपाल में काम करते थे इसलिए पार्टनर उनके घर आती रहती थीं. समय के साथ-साथ उनका रिश्ता मजबूत होता गया. दोनों अपने रिश्ते को और आगे बढ़ाना चाहते थे इसलिए उन्होंने साथ रहने का फैसला किया और वे परिवार से अलग रहने लगे. याचिकाकर्ता का आरोप है कि पार्टनर के पिता जबरदस्ती उन्हें अपने साथ ले गए और गैरकानूनी तरीके से कैद में रखा. याचिकाकर्ता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई और नरसीपटनम में उसे ढूंढ लिया गया और पुलिस ने उनकी पार्टनर को 15 दिनों के लिए पेंदुरति में एक वेल्फेयर होम में शिफ्ट कर दिया, लेकिन वहां भी पार्टनर को उनके पिता ने ढूंढ लिया और वह अपने साथ ले गए.

कविता के वकील जदा श्रवण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए दलील दी कि बंदी ने याचिकाकर्ता के माता-पिता के साझा घर में याचिकाकर्ता के साथ रहने के लिए अपनी स्पष्ट सहमति व्यक्त की है और वह कभी भी अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के पास वापस नहीं जाना चाहेगी. जदा श्रवण कुमार ने अदालत को यह भी बताया कि ललिता ने भी अपने माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत को वापस लेने की इच्छा व्यक्त की है, अगर उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने की अनुमति दी जाए.

विजयवाड़ा पुलिस ने मंगलवार को अदालत के निर्देश के बाद ललिता को हाईकोर्ट में पेश किया. पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए यह भी टिप्पणी की कि ललिता के परिवार के सदस्यों के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वह शिकायत वापस लेने को तैयार हैं. 

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