Andhra Pradesh Sankranti Cockfights: आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांत‍ि के त्‍यौहार पर मुर्गों की लड़ाई की प्रत‍िस्‍पर्धा सालों से चली आ रही है. यह देश और दुन‍िया में काफी प्रस‍िद्ध भी है. इस अवैध प्रत‍ियोग‍िता में करोड़ों रुपए की सट्टेबाजी भी होती है, लेक‍िन इस बार प्रत‍ियोग‍िता में ह‍िस्‍सा लेने को तैयार क‍िए गए तेजतर्रार और लड़ाकू मुर्गों का स्‍वास्‍थ्‍य ठीक नहीं है. 


दरअसल, आंध्र प्रदेश के पोल्ट्री उद्योग में वायरल बीमारी 'रानीखेत' के फैलने से मुर्गें कमजोर पड़ गए हैं. इनको ताकतवर बनाने के ल‍िए आयोजक वियाग्रा और अन्य स्टेरॉयड-युक्त दवाएं देकर उनके जोश को बरकरार रखने के प्रयास कर रहे हैं. 


आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में होता है आयोजन


आमतौर पर मुर्गों की लड़ाई ग्रामीण आंध्र प्रदेश में संक्रांत‍ि उत्‍सव का एक अभिन्‍न अंग माना जाता है. आयोजकों की ओर से इस द‍िन पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी, गुंटूर और कृष्णा जिलों में बड़े पैमाने पर मुर्गों की लड़ाई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है.


मुर्गे की लड़ाई पर बड़ा दांव लगाने वाले इसके जर‍िए करोड़ों का कारोबार भी करते हैं. हालांक‍ि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2018 में इसको प्रतिबंधित कर दिया गया था. बावजूद इसके अवैध तरीके से आंध्र प्रदेश के कई ह‍िस्‍सों में इसका आयोजन क‍िया जाता रहा है. 


मुर्गों के लड़ाई में द‍िलचस्‍पी वाले लगाते हैं बड़ा दांव  


टाइम्‍स ऑफ इंड‍िया की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक, इस साल संक्रांति 14, 15 और 16 जनवरी को है. इस उत्सव को लेकर राज्य के अंदरूनी हिस्सों में हजारों अवैध मुर्गों की लड़ाई के अखाड़े पहले से ही खुल गए हैं. इन अखाड़ों में ट्रेंड मुर्गे 'मौत की लड़ाई' में लगे रहते हैं. इस आयोजन में लोगों की बड़ी भागीदारी भी नजर आती है. इसमें लोग जीतने वाले पक्षी पर बड़ा दांव लगाने का जोख‍िम उठाते हैं. 


'रानीखेत' बीमारी की चपेट में आने से चैंप‍ियन मुर्गे हुए सुस्‍त 


इस बार 'रानीखेत' नामक बीमारी की चपेट में आने से चैंप‍ियन मुर्गे की हालत भी कमजोर हो गई है. वह इस बार लड़ने की स्‍थ‍िति में नहीं है. बावजूद इसके उनको अखाड़े में उतारने के भरसक प्रयास आयोजकों की तरफ से क‍िए जा रहे हैं. दरअसल, संक्रांति के लिए बहुत कम समय बचा है. इस कारोबार से  जुड़े कई एंटरप्रेन्‍योर ब्रीडर्स ने पक्षियों को शिलाजीत, वियाग्रा 100 और विटामिन खिलाकर 'ताकतवर' बनाने का 'शॉर्ट कट' रास्ता अपनाया है. इस तरह की खुराक से यह पक्षी थोड़े समय के ल‍िए ज्‍यादा ताकतवर हो सकते हैं, लेक‍िन स्‍वास्‍थ्‍य के ल‍िहाज से यह उनके ल‍िए अच्‍छा नहीं है.  


'हार्मोन-बढ़ाने वाली दवाएं पक्ष‍ियों को बना देंगी अपंग' 


पशु चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि हार्मोन-बढ़ाने वाली दवाएं न केवल लंबे समय में पक्षियों को अपंग कर देंगी, बल्कि इसका म्‍यूटेशन भी करेंगी. इन मुर्गों को खाने वाले मनुष्यों के स्‍वास्‍थ्‍य को भी बड़ा नुकसान हो सकता है.  


लड़ाकू मुर्गों को ताकतवर व उत्तेजक बनाने की स्थ‍ित‍ि स्‍पष्‍ट नहीं 


एसटीओआई की जांच में पाया गया कि कई ब्रीडर्स मनुष्यों की तरफ से प्रयोग की जाने वाली कामोत्तेजक दवाओं को इन मुर्गों को ताकत देने के ल‍िए कर रहे हैं. हालांकि, इस तरह की हार्मोन-उत्तेजक दवाएं पहली बार पक्षियों को दी जा रही हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ऐसी दवाएं वास्‍तव में लड़ाकू मुर्गों को लड़ाई में ताकतवर व उत्तेजक बनाने में कारगर होंगी.  


'बीमारी की वजह से आयोजकों को नहीं म‍िल पा रहे ताकतवर मुर्गे' 


वियाग्रा जैसी दवाओं का सहारा लेने के सवाल पर एक ब्रीडर का कहना है, 'रानीखेत' और पुरानी सांस की बीमारियों के पोल्ट्री इंडस्‍ट्री में इसके फैलने से उनको बेहतर गुणवत्ता और ताकत के साथ लड़ने वाले मुर्गे नहीं मिल पाए हैं. उनका कहना है क‍ि हमने पक्षियों की लड़ाकू नस्ल को बीमारी से बचाने के लिए बहुत पैसा भी खर्च किया है. बावजूद इसके पक्षियों में अब भी ताकत की कमी बनी हुई है.   


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