Keshari Nath tripathi Passed Away: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी का रविवार (8 जनवरी) को निधन हो गया. उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर रहे केशरी नाथ त्रिपाठी को प्रयागराज के एक निजी अस्पताल में सांस लेने में परेशानी होने के चलते भर्ती कराया गया था. जहां एक हफ्ते तक इलाज के बाद उन्हें घर वापस ले जाया गया था. केशरी नाथ त्रिपाठी ने 88 साल की उम्र में रविवार सुबह करीब 5 बजे अंतिम सांस ली.


उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम स्थान रखने वाले केशरी नाथ त्रिपाठी सूबे में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे थे. 2017 में राज्यपाल के तौर पर बिहार का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे केशरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार की जेडीयू को तीसरे नंबर पर आने के बावजूद सरकार बनाने का मौका दिया था. ऐसे कई सियासी किस्से केशरी नाथ त्रिपाठी की राजनीतिक यात्रा का हिस्सा हैं. आइए जानते हैं केशरी नाथ त्रिपाठी की सियासत से जुड़ा हुआ ऐसा ही एक सियासी किस्सा, जब कल्याण सिंह की सरकार बचाने के लिए वो पेशाब रोक विधानसभा में ही बैठे रहे थे.


रातोंरात मुख्यमंत्री बन बैठे थे जगदंबिका पाल 


1998 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. रोमेश भंडारी ने लोकतांत्रिक कांग्रेस के सदस्य जगदंबिका पाल को रातोंरात मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. जब बीजेपी को जगदंबिका पाल के सीएम बनने की खबर लगी, तो आनन-फानन में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी तक सूचना पहुंचाई गई. वाजपेयी ने कल्याण सिंह को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी. इस पर अमल हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया.


बहुमत परीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रखे थे सख्त नियम


सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से कल्याण सिंह को राहत देते हुए बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दे दिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कुछ सख्त नियम भी तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि विधानसभा की कार्यवाही को बहुमत परीक्षण शुरू होने के बाद स्थगित नहीं किया जा सकेगा. आसान शब्दों में कहें, तो बहुमत परीक्षण पूरा किए बिना विधानसभा स्थगित नहीं होगी. इसके साथ ही यूपी विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी को कार्यवाही के दौरान पूरे समय अपनी सीट पर मौजूद रहने का भी आदेश दिया गया था.


पेशाब रोक बैठने को मजबूर हुए केशरी नाथ त्रिपाठी


बताया जाता है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लंबे समय से पेशाब से जुड़ी बीमारी से ग्रसित थे. जिसकी वजह से उन्हें बार-बार पेशाब करने जाना पड़ता था. तिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने के लिए विधानसभा की पूरी कार्यवाही के दौरान कुर्सी पर ही मौजूद रहने का नियम बना दिया था. इस स्थिति में किसी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना से बचने के लिए केशरी नाथ त्रिपाठी ने पानी को लगभग त्याग दिया था. जिससे उन्हें बार-बार पेशाब करने की जरूरत ही महसूस न हो.


कार्यवाही शुरू होते ही बवाल हुआ चालू


केशरी नाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता में विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष की सीटों पर बैठने को लेकर बवाल छिड़ गया. इसे खत्म करने के लिए स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी के बगल में दो कुर्सियां लगाई गईं. जिनमें से एक पर कल्याण सिंह और दूसरी पर जगदंबिका पाल बैठे. ये भारतीय लोकतंत्र में पहला ऐसा मौका था, जब विधानसभा में स्पीकर की कुर्सी के बगल में दो कुर्सियां लगाकर लोगों को बैठाया गया हो. हालांकि, जगदंबिका पाल केवल 31 घंटे के लिए ही सीएम रह पाए थे.


बहुमत परीक्षण में जीते कल्याण सिंह


26 फरवरी 1998 को यूपी विधानसभा में हुए इस शक्ति परीक्षण में कल्याण सिंह को 225 विधायकों का समर्थन मिला और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले थे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए सदन में 16 वीडियो कैमरे लगाए गए थे. बीजेपी नेता कल्याण सिंह को बहुमत के लिए केवल 213 मत चाहिए थे, लेकिन उन्हें बहुमत के आंकड़े से 12 वोट ज्यादा मिले थे. दिलचस्प बात ये भी थी कि उस दौरान पांच विधायकों पर एनएसए लगाकर जेल भेज दिया गया था. जिन्हें सदन में आकर वोटिंग करने की अनुमति मिल गई थी.


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